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करनाल की चारु दत्ता देंगी ¨पकी को किडनी

जागरण संवाददाता, अंबाला : सरकार, सरकारी तंत्र व समाजसेवी संस्थाओं के नकारापन के बावजूद अ

By Edited By: Published: Sat, 06 Aug 2016 06:14 PM (IST)Updated: Sat, 06 Aug 2016 06:14 PM (IST)
करनाल की चारु दत्ता देंगी ¨पकी को किडनी

जागरण संवाददाता, अंबाला : सरकार, सरकारी तंत्र व समाजसेवी संस्थाओं के नकारापन के बावजूद अभी भी देश में मानवता व दानवीरों की कमी नहीं है। जिस तरह महर्षि दधीची ने संसार के कल्याण के लिए अपने प्राण त्यागकर देवताओं को अपनी अस्थियां दी उसी तरह अब करनाल की महिला भी एक अन्य महिला की जान बचाने के लिए सामने आई है। इस महिला का न कोई ¨पकी से संबंध है न ही कोई जान पहचान। बस किडनियां खराब होने की खबर समाचार पत्र में पढ़ी और पढ़ कर दिल द्रवित हो उठा। करनाल शहर की चारु दत्ता ¨पकी की ¨जदगी बचाने के लिए आगे आई है।

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दरअसल अंबाला छावनी से करीब 15 किलोमीटर दूर गांव बिहटा में रहने वाली करीब 26 वर्षीय ¨पकी की दोनों किडनियां फेल हो चुकी हैं। ¨पकी के पति मजदूरी करके गुजर-बसर करते हैं। शादी के छह साल बाद ¨पकी की दोनों किडनियां फेल हो गई। दो साल से सुनील अपनी पत्नी की जान बचाने के लिए हर वह प्रयास कर चुका है जोकि उसके बस में हैं लेकिन अब वह हिम्मत हार चुका है। उसकी आर्थिक स्थिति जवाब दे चुकी है। ¨पकी की जान बचाने के लिए अब पैसे खत्म हो गए हैं। किडनी ट्रांसप्लांट के लिए ¨पकी को ढाई लाख रुपये की जरूरत है लेकिन ढाई लाख तो दूर की बात ढाई हजार रुपये भी उनके पास नहीं है। इसी कारण ¨पकी के बेटे शौर्य की पढ़ाई भी छूट गई है और अब ¨पकी का डायलिसिस भी बंद हो गया है। अलबत्ता ¨पकी की ¨जदगी का काउंटडाउन अब शुरू हो चुका है।

पैसे की अभी भी दिक्कतें

दैनिक जागरण में समाचार प्रकाशित होने के बाद करनाल की अंसल सिटी में रहने वाली चारू दत्ता जो घरौंडा में लिब्रटी कंपनी में काम करती हैं ने ¨पकी की मदद के लिए अपनी किडनी देने का निर्णय कर लिया है। बतौर चारू यदि नियमानुसार वह किसी भी तरह से ¨पकी को किडनी दे सकती हैं तो वह उसके लिए तैयार हैं। यदि कानूनी अड़चन नहीं आती है तो वह ¨पकी की जान अपनी किडनी देकर बचाना चाहती हैं। ऐसे में आज के युग में भी दानवीर दधीचियों की कमी नहीं है।

नहीं आई कोई संस्था और समाजसेवी आगे

हाल यह हैं कि मात्र ढाई लाख रुपये की मदद के लिए न तो कोई संस्था सामने आने के लिए तैयार हुई है न ही कोई समाजसेवी। जबकि गली के निर्माण, मंदिर के निर्माण या धर्मशाला के निर्माण के लिए लाखों रुपये का चंदा दे दिया जाता है। समाजसेवी संस्थाएं भी सुर्खियों में आने के लिए तरह-तरह की घोषणाएं तो करती हैं लेकिन ¨पकी की मदद के लिए कोई एक रुपया भी देने को तैयार नहीं है।


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