बड़े चाव से आप खाते होंगे खिचड़ी, पर इसका ये मजेदार इतिहास भी जान लें
ये जहां जैसे गई, उसी माहौल में ढल गई। हर जगह नया रूप लिया, नया स्वाद। सादगी से भरपूर और शाही भी। बनाने में बेहद आसान।
'बीरबल की खिचड़ी' भले ही कभी न पकी हो, पर हर किसी की पसंद सदाबहार सादी खिचड़ी का स्वाद बढ़ाने के लिए मुगल शासकों ने जहां इसमें शाही तड़का लगवाया, तो वहीं अंग्रेजों ने क्त्रीम तक मिलाया.. खिचड़ी..शाही खिचड़ी, गुजराती खिचड़ी, बंगाली खिचड़ी, मुगलई खिचड़ी..। यह एक ऐसा व्यंजन है, जो सैकड़ों सालों से हमारी संस्कृति में है। इसने लंबी यात्रा ही नहीं की बल्कि समय के साथ तमाम प्रयोगों से भी गुजरी है। ये जहां जैसे गई, उसी माहौल में ढल गई। हर जगह नया रूप लिया, नया स्वाद। सादगी से भरपूर और शाही भी। बनाने में बेहद आसान।
मुगल बादशाहों के शहंशाही दस्तरखान में ये सजी तो सिकंदर की सेना और अबुल फजल के भी सिर चढ़कर बोली। रसोई की कोई किस्सागोई इस भारतीय उपमहाद्वीप में खिचड़ी कथा के बगैर अधूरी है। कहा तो ये भी जाता है सीधा और आसान सा ये व्यंजन अब सीमाओं, भाषाओं और जातीय बाधाओं को कब का लांघ चुका है। भारतीय उपमहाद्वीप में विदेशी आक्रमणकारी आए, नई खोजें हुईं, साम्राज्यवाद पनपा, विदेशी जब यहां से लौटे तो खिचड़ी भी साथ ले गए। सभी ने इसे अपने तरीके से समृद्ध भी किया, अपने मसालों और सामग्रियों से युक्त किया।
मूल रूप से खिचड़ी का मतलब है दाल और चावल का मिश्रण। चावल, मूंग की दाल, घी, नमक, लौंग, जीरा के साथ पानी की संतुलित मात्रा में इसे पकाएं तो वाह क्या स्वाद आता है। असल में ये हानिरहित शुद्ध आयुर्वेदिक खाना है, जायके और पोषकता से भरपूर। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो जब चावल और दालों को संतुलित मात्रा में मिलाकर पकाते हैं तो एमिनो एसिड तैयार होता है, जो शरीर के लिए बहुत जरूरी है। कहा जाता है कि एक बार बादशाह जहांगीर गुजरात की यात्रा पर गए हुए थे। वहां उन्होंने एक गांव में लोगों को खिचड़ी खाते देखा। बादशाह को भी ये व्यंजन परोसा गया तो उन्हें ये बहुत अच्छा लगा। हालांकि इस खिचड़ी में चावल की जगह बाजरे का इस्तेमाल किया गया था। तुरंत एक गुजराती रसोइया शाही पाकशाला के लिए नियुक्त किया गया। फिर मुगल पाकशाला में इस पर और प्रयोग किए गए।
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कुछ लोग कहते हैं कि खिचड़ी को दरअसल शाहजहां ने मुगल किचन में शामिल किया। मुगल बादशाहों को कई तरह की खिचड़ी सर्व की जाती थी। इसमें एक बेहद विशेष थी जिसमें ड्राइ फ्रूट्स, केसर, तेज पत्ता, जावित्री, लौंग और अन्य मसालों का इस्तेमाल किया जाता था। जब ये पकने के बाद दस्तरखान पर आती थी, तो इसकी लाजवाब सुगंध गजब ढाती थी। भूख और बढ़ जाती थी। जीभ पर पानी आने लगता था। तब इसके आगे दूसरे व्यंजन फीके पड़ जाते थे। हालांकि कहा ये भी जाता है कि मुगल पाकशाला में खिचड़ी पर तमाम प्रयोग हुए। आमतौर पर खिचड़ी विशुद्ध शाकाहारी व्यंजन है लेकिन मुगलकाल में मांसाहारी खिचड़ी का भी सफल प्रयोग हुआ, जिसे हलीम कहा गया।
बंगाल में त्योहारों के दौरान वितरित होने वाली बनने वाली खिचड़ी तो बहुत ही खास जायका लिए होती है। इसमें बादाम, लौंग, जावित्री, जायफल, दालचीनी, काली मिर्च आदि मिलाकर इसे इतना स्वादिष्ट बना दिया जाता है कि पूछना ही क्या। आइने अकबरी में अबुल फजल ने खिचड़ी बनाने की सात विधियों का जिक्र किया है। दुनियाभर में शाकाहारी व्यंजनों को पसंद करने वाले हरे कृष्ण आंदोलन की पाकशाला संबंधी किताब 'हरे कृष्ण बुक ऑफ वेजिटेरियन कुकिंग' भी पढ़ सकते हैं। इसके जरिए दुनियाभर में बड़ी संख्या में लोगों ने शाकाहारी भोजन बनाना-खाना सीखा। 1973 में ये किताब पहली बार प्रकाशित हुई। फिर इस कदर लोकप्रिय हुई कि पूछिए मत। किताब के मुताबिक वैदिक डाइट में दालें आयरन और विटामिन बी के साथ प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत होती थीं।
माना जाता है कि खिचड़ी की शुरुआत दक्षिण भारत में हुई थी। कुछ यह भी कहते हैं कि इसे मिस्त्र की मिलती-जुलती डिश खुशारी से प्रेरणा लेकर बनाया गया था। गुजरात से लेकर बंगाल तक कहीं भी चले जाइए या दक्षिण एशिया में घूम आइए, हर जगह खिचड़ी जरूर मिलेगी लेकिन अलग स्वाद वाली। महाराष्ट्र में झींगा मछली डालकर एक खास तरह की खिचड़ी बनाई जाती है। गुजरात के भरौच में खिचड़ी के साथ कढ़ी जरूर सर्व करते हैं। इस खिचड़ी में गेहूं से बने पतले सॉस, कढी पत्ता, जीरा, सरसों दाने का इस्तेमाल किया जाता है। इसे शाम के खाने के रूप में खाया जाता है।
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अंग्रेजों ने भी खिचड़ी को अपने तरीके से ब्रितानी अंदाज में रंगा। उन्होंने इसमें दालों की जगह उबले अंडे और मछलियां मिलाईं। साथ ही क्त्रीम आदि मिलनी शुरू कर दी। फिर इस बदली हुई डिश को नाम दिया गया केडगेरे-खास ब्रिटिश नाश्ता। एंग्लो इंडियन इसे ताजी मछलियों के साथ नाश्ते के रूप में परोसते थे। एलन डेविडसन अपनी किताब आक्सफोर्ड कम्पेनियन फार फूड में लिखते हैं कि सैकड़ों सालों से जो भी विदेशी भारत आता रहा, वो खिचड़ी के बारे में बताता रहा। अरब यात्री इब्ने बबूता वर्ष 1340 में भारत आए। उन्होंने लिखा, मूंग को चावल के साथ उबाला जाता है, फिर इसमें मक्खन मिलाकर खाया जाता है। खिचड़ी के इतने रूप, संस्करण और बनाने की विधियां हैं कि पूछिए मत (अलग दालों और सब्जियों के साथ), जनवरी का समय खासतौर पर गरमा-गरम, लज्जतदार खिचड़ी खाने के लिए सबसे अनुकूल होता है।
रत्ना श्रीवास्तव