पीजीआइ के डॉक्टरों ने खोजी ब्रेस्ट इंप्लांट की नई तकनीक
नहीं रहेगा निशान, बगल (अंडरआर्म्स) से किया जाएगा स्तन को इंप्लांट..
स्तनों को सही आकार देने के लिए महिलाएं सर्जरी का सहारा लेती हैं। अभी तक कृत्रिम स्तन बनाने के लिए चीरा लगाया जाता था, जिससे निशान रह जाता था, लेकिन अब बगल यानी कांख के जरिए इंडोस्कोपी की मदद से स्तन इंप्लांट किया जाएगा, जिससे किसी भी तरह का निशान नजर नहीं आएगा। लखनऊ स्थित संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट (एसजीपीजीआइ)के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के हेड डॉ. राजीव अग्रवाल ने इस तकनीक से सफल सर्जरी कर नई विधा स्थापित की है। अग्रवाल ने बताया कि कई महिलाओं में स्तन पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं, जिससे वह हीन भावना का शिकार हो जाती हैं। स्तन छोटे रहने का प्रमुख कारण पोषण संबंधी गड़बड़ी होती है। किशोरावस्था शारीरिक विकास की दृष्टि से अहम होती है। इस समय खानपान पर ध्यान न दिया जाए तो शरीर को पूर्ण पोषण नहीं मिलता और विकास अधूरा रह जाता है।
ब्रेस्ट इंप्लांट है सही उपाय : कास्मेटिक सर्जरी में ब्रेस्ट इंप्लांट इसका सरल, कारगर एवं त्वरित उपाय है। इससे कम विकसित या छोटे स्तनों को सही आकार दिया जाता है। यूं तो कृत्रिम ब्रेस्ट इंप्लांट कई विधियों से होता है, लेकिन इसमें स्तनों के नीचे निशान आ जाता है। इंडोस्कोपिक तकनीक से यह ऑपरेशन संभव है, जिसमें बगल से इंप्लांट को डाला जाता है। इससे कोई निशान नहीं आता है।
दो तरह के होते हैं इंप्लांट : ब्रेस्ट इंप्लांट दो तरह के होते हैं। पहला सलाइन इंप्लांट जो पानी की तरह होता है, लेकिन ब्रेस्ट के अंदर आसानी से मिक्स हो जाता है। वहीं दूसरा सिलिकॉन इंप्लांट होता है जो चिपचिपा और मजबूत होता है।
तीन जगह से हो सकती है सर्जरी : सर्जरी के लिए मरीज के ब्रेस्ट के नीचे या फिर आर्मपिट के पास चीरा लगा कर सलाइन या सिलिकॉन को इंप्लांट कर दिया जाता है। घाव भरने के लिए टांके लगा दिए जाते हैं। इस विधि से हल्का निशान रह जाता है, पर डॉ. अग्रवाल की तकनीक में निशान नहीं नजर आता है।
-जेएनएन