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अस्पताल के बनने के पीछे दिल को छू लेने वाली कहानी

डांग जिले के आहवा में 'वनबंधु आरोग्य धाम' नाम के अस्पताल बन रहा है। इसका निर्माण अमेरिका के बोस्टन में रहने वाले डेंटल सर्जन डॉ. अशोक पटेल करवा रहे हैं। इस अस्पताल के बनने के पीछे एक दिल को छू लेने वाली कहानी है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 19 May 2016 05:28 AM (IST)Updated: Thu, 19 May 2016 05:35 AM (IST)
अस्पताल के बनने के पीछे दिल को छू लेने वाली कहानी

सूरत। डांग जिले के आहवा में 'वनबंधु आरोग्य धाम' नाम के अस्पताल बन रहा है। इसका निर्माण अमेरिका के बोस्टन में रहने वाले डेंटल सर्जन डॉ. अशोक पटेल करवा रहे हैं। इस अस्पताल के बनने के पीछे एक दिल को छू लेने वाली कहानी है। अस्पताल के बनने के मूल में वह अमेरिकन सोल्जर है, जिसने मरने के पहले अपनी एक लाख डॉलर की प्रॉपर्टी डॉ. पटेल के नाम कर दी थी।

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गुजराती हैं डॉ. पटेल

डॉ. अशोक पटेल का जन्म सूरत के पास कतारगाम में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा गांव की शाला में ही हुई। इसके बाद टी एंड टीवी स्कूल और केंद्रीय विद्यालय से 12वीं तक की पढ़ाई की और फिर अहमदाबाद के डेंटल कॉलेज से बीडीएस और एमडीएस किया। सूरत के सिविल अस्पताल में डेढ़ साल तक नौकरी की। इसके बाद 1984 में वे अमेरिका के बोस्टन में स्थायी हो गए। यहां भी उन्होंने इम्प्लांट सर्जरी की पढ़ाई की। वह पेशेंट बहुत ही गंदा था

1990 में डॉ. पटेल ने बोस्टन के पास वोल्थम में प्रेक्टिस शुरू कर दी। इसके बाद 2001 में उन्होंने नोशुआ इंप्लांट सेंटर की स्थापना की। यहीं उनके यहां रिचर्ड कोंडोरेली नाम का एक व्यक्ति इलाज के लिए आया। जब वह व्यक्ति क्लिनिक में आया, तो वह इतना अधिक गंदा था कि वहां की नर्स को उल्टियां होने लगी। उसने कई दिनों से नहाया नहीं था, इसके बाद भी डॉक्टर ने पूरी संजीदगी से उसका इलाज किया। डॉक्टर के स्वभाव से रिचर्ड खुश हो गए। इसके बाद वे डॉ. पटेल के अच्छे दोस्त बन गए।

सोल्जर थे रिचर्ड

रिचर्ड मूल रूप से अमेरिकन आर्मी के सोल्जर थे। वे वियतनाम युद्ध में भी शामिल हुए थे। युद्ध के दौरान उनकी एक आंख और कान खराब हो गए। रिचर्ड थे तो क्रिश्चियन, लेकिन हिंदू धर्म को मानते थे। इतना हीं नहीं, वे नियमित रूप से बोस्टन स्थित हरेकृष्ण मंदिर भी जाया करते थे। यही क्रम डॉ. पटेल का भी था। इसलिए अक्सर दोनों की मुलाकात हुआ करती थी। डॉ. पटेल से दोस्ती का असर यह हुआ कि रिचर्ड अब जेंटलमेन की तरह रहने लगे। इससे पहले वे हमेशा फटेहाल ही नजर आते थे। वे डॉ. पटेल की हरेक सलाह मानने लगे।

रिचर्ड का अग्निसंस्कार किया गया

2011 में एक दिन डॉ. पटेल को रिचर्ड का फोन आया कि वह बहुत बीमार है। डॉ. पटेल उससे मिलने गए। उससे काफी बातें की। फिर दूसरे दिन मिलने का वादा कर अशोक पटेल घर आ गए। दूसरे दिन सुबह रिचर्ड का निधन हो गया। हिंदू धर्म का अनुयायी होने के कारण उनका दाह-संस्कार करना तय किया गया। उस समय बोस्टन की लोकल गवर्निंग बॉडी से परमिशन लेनी पड़ी। फिर बोस्टन में रिचर्ड का दाह-संस्कार कर दिया गया। डॉ. पटेल ने उनकी अस्थियां नासिक (महाराष्ट्र) में विसर्जित करने का फैसला किया। नासिक जाते समय गुजरात के डांग और सापुतारा से गुजरना हुआ। उस समय अशोक पटेल के मन में यह विचार आया कि यहां के लोगों के लिए कुछ करना चाहिए।

एक लाख डॉलर की प्रॉपर्टी डॉ. पटेल के नाम की

अस्थि विसर्जन के बाद डॉ. पटेल जब वापस बोस्टन पहुंचे, तब रिचर्ड के वकील से पता चला कि रिचर्ड ने अपनी एक लाख डॉलर की पूरी प्रॉपर्टी उनके नाम कर दी थी। डॉ. पटेल ने प्रॉपर्टी लेने से मना किया तो वकील ने बताया कि इस सम्पत्ति को वे सीड मनी के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।

रिचर्ड कोंडोरेली मेमोरियल फाउंडेशन बनाया

इसके बाद डॉ. पटेल ने बोस्टन में रिचर्ड कोंडोरेली मेमोरियल फाउंडेशन बनाकर उसे रजिस्टर्ड कराया और रिचर्ड की पूरी संपत्ति इसमें लगा दी। इसके बाद इस राशि से गुजरात में डांग जिले के आहवा में एक अस्पताल बनाने की योजना बनाई। फिर क्या था, अमेरिका के कई लोगों ने भी इसके लिए हजारों डॉलर दान में दिए। इस तरह से 2011 में यहां के डॉक्टरों की मदद से तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर प्लान पारित करवाया। अस्पताल का निर्माण कार्य जल्द ही पूरा होने वाला है।


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