यही कारण है कि इस दिन सरस्वती पूजा का विधान किया गया
14 विद्याएं, 64 कलाएं वाग्देवी की उपासना से ही मिलती हैं। इसलिए सरस्वती ही हमारे जीवन का मूल हैं। वह संगीत शास्त्र की अधिष्ठात्री देवी भी हैं।
भारतीय चिंतन परंपरा में वसंत को ऋतुओं का राजा माना गया है और जैसे राजा की आगवानी पर उत्सव मनता है, ठीक वैसे ही ऋतुराज के स्वागत को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। असल में भारतीय ऋतु चक्र में चैत्र-वैशाख वसंत के मास हैं, किंतु सृष्टि में वसंत अपनी निर्धारित तिथि से 40 दिन पहले आता है। 'मत्स्य सूक्त' के अनुसार अन्य पांच ऋतुओं ने अपने राजा के सम्मान में स्वयं के कालखंड से आठ-आठ दिन समर्पित कर दिए हैं। इसीलिए धरती पर वसंत ऋतु का पदार्पण चैत्र कृष्ण प्रथमा के स्थान पर 40 दिन पूर्व माघ शुक्ल पंचमी को होता है। इस बार एक फरवरी को यह संयोग बन रहा है।
बागों में बहती बयार प्रकृति से अठखेलियां कर रही हैं। हरे-हरे खेतों में सरसों के पीले-पीले फूलों को देख हृदय फूला नहीं समा रहा। आमों पर बौर आने लगे हैं। पेड़ों एवं लताओं के पोर-पोर से हरियाली फूट रही है। कोयल की कूक मन को उद्वेलित कर वातावरण में मादकता घोलती प्रतीत होती है। सभी दिशाओं में नया रंग, नई उमंग, उल्लास एवं उत्साह का माहौल है।
सच में ऋतुचक्र के परिवर्तन का इससे रंगीन पड़ाव और कोई नहीं। तभी तो 'ऋतुसंहार' में कालिदास ने इसे 'सर्वप्रिये चारुतर वसंते' कहकर अलंकृत किया है। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं 'ऋतूनां कुसुमाकर:' अर्थात् 'मैं ऋतुओं में वसंत हूं'।
ब्रह्मवैवर्त्त पुराण के अनुसार वसंत पंचमी विद्या की देवी सरस्वती के पूजन का पर्व है। 'मत्स्य सूक्त' में उल्लेख है कि वसंत पंचमी रति एवं कामदेव के पूजन का दिवस भी है। कामदेव को 'वसंतसेन' भी कहा गया है। ब्रज में इस पर्व को 'मदनोत्सव' तो देवभूमि में 'माघ पंचमी' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न स्थानों पर 'वसंतोत्सव' की भी शुरुआत होती है।
वसंत के आगमन का उत्सव है वसंत पंचमी। वसंत में हर ओर प्रकृति अपने उल्लासमयी रूप में रहती है। शीत का प्रभाव कम होते ही वायु आनंदमयी हो जाती है। खेतों में लहरा रही हरी-हरी फसलें पीतांबर ओढ़ लेती हैं।
विभिन्न रंगों के पुष्प वाटिकाओं में खिल कर चारों तरफ अपनी सुगंध से हर किसी को मदमस्त कर देते हैं। प्रकृति द्वारा प्रदत्त यह ऊर्जा हर किसी में अपना प्रभाव दिखाने लगती है। हमारे भीतर संपूर्ण प्रकृति के प्रति प्रेम का स्फुरण होने लगता है और हर किसी कार्य में उत्साह के साथ प्रवृत्त होने लगते हैं। संपूर्ण सृष्टि में काम का संचरण प्रतीत होने लगता है। इस दिन कामदेव की पूजा भी होती है। वस्तुत: यह ऋतु हमारे भीतर असीम ऊर्जा का संचार करने लगती है। ऐसे में हमें आवश्यकता पड़ती है अपनी इस ऊर्जा के सही प्रबंधन की, ताकि हम इस ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग कर सकेें और यह व्यर्थ कार्र्यों में व्यय न हो पाए। ऐसे में वसंत पंचमी का पर्व हमें अपनी ऊर्जा को ज्ञान और विवेक की ओर मोड़ देने के लिए प्रेरित करता है। यही कारण है कि इस दिन सरस्वती पूजा का विधान किया गया। इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा का निहितार्थ यही है कि हम ज्ञान और विवेक का संबल अपने कार्र्यों में बनाए रखें, ताकि अनीति के रास्ते पर जाने से बच जाएं और जो भी करें, वह सभी के हित में हो। माता सरस्वती विद्या, कला और संगीत की देवी हैं। हम अपनी ऊर्जा को ज्ञान प्राप्त करने में, कला और संगीत के संवद्र्धन में लगाएं, तो हम गलत रास्ते पर जाने से बच सकते हैं और अपने सद्गुणों का विकास कर सकते हैं।
वसंत पंचमी का यही संदेश है कि हमें निराशा, नीरसता एवं निष्कि्रयता को त्यागकर सदैव प्रसन्न रहना चाहिए, ताकि जीवन में यौवन, सौंदर्य एवं Fेह का संचार हो। तभी तो प्रकृति के चितेरे कवि चंद्रकुंवर बत्र्वाल कह गए 'अब छाया में गुंजन होगा वन में फूल खिलेंगे, दिशा-दिशा से अब सौरभ के धूमिल मेघ उठेंगे, जीवित होंगे वन निद्रा से निद्रित शैल जगेंगे, अब तरुओं में मधु से भीगे कोमल पंख उगेंगे'।
वसंत पंचमी को 'श्रीपंचमी' भी कहते हैं। श्री का अर्थ 'संपन्न' व 'शोभा' दोनों है। डॅा.संतोष खंडूड़ी बताते हैं कि प्राचीन काल में वेद अध्ययन का सत्र श्रवणी पूर्णिमा से आरंभ होकर इसी तिथि को संपन्न होता था। उलाराखंड में तो पंचमी के दिन बच्चों के 'अक्षरारंभ', उनके 'कर्णवेध' संस्कार करने की भी परंपरा है।-
वसंत पंचमी को विद्या एवं वाणी की देवी सरस्वती का आविर्भाव माना गया है। सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान एवं वाणी की अधिष्ठात्री देवी और सत्वगुण स्वरूपा हैं। 14 विद्याएं, 64 कलाएं वाग्देवी की उपासना से ही मिलती हैं। इसलिए सरस्वती ही हमारे जीवन का मूल हैं। वह संगीत शास्त्र की अधिष्ठात्री देवी भी हैं।