Move to Jagran APP

रामकृष्ण समझते थे कि मां काली ने पकड़ा हुआ है उनका हाथ

एक बार उनकी पत्नी शारदा के सवाल के पूछा कि वो उन्हें किस रूप में देखते है तो रामकृष्ण परमहंस ने जवाब दिया कि उसी मां काली के रूप में जो दक्षिणेश्वर मंदिर में विराजमान है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 27 Feb 2017 12:53 PM (IST)Updated: Wed, 08 Mar 2017 03:35 PM (IST)
रामकृष्ण समझते थे कि मां काली ने पकड़ा हुआ है उनका हाथ

  रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत एवं विचारक थे। इन्होंने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। उन्हें बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं अतः ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन बिताया। स्वामी रामकृष्ण मानवता के पुजारी थे। साधना के फलस्वरूप वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संसार के सभी धर्म सच्चे हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं। वे ईश्वर तक पहुँचने के भिन्न-भिन्न साधन मात्र हैं।

loksabha election banner

 सतत प्रयासों के बाद भी रामकृष्ण का मन अध्ययन-अध्यापन में नहीं लग पाया। कलकत्ता के पास दक्षिणेश्वर स्थित काली माता के मन्दिर में अग्रज रामकुमार ने पुरोहित का दायित्व साँपा, रामकृष्ण इसमें नहीं रम पाए। कालान्तर में बड़े भाई भी चल बसे। अन्दर से मन ना करते हुए भी रामकृष्ण मंदिर की पूजा एवं अर्चना करने लगे। रामकृष्ण मां काली के आराधक हो गए। बीस वर्ष की अवस्था में अनवरत साधना करते-करते माता की कृपा से इन्हें परम दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ। इनके प्रिय शिष्य विवेकानन्द ने एक बार इनसे पूछा-महाशय! क्या आपने ईश्वर को देखा है? महान साधक रामकृष्ण ने उत्तर दिया-हां देखा है, जिस प्रकार तुम्हें देख रहा हूं, ठीक उसी प्रकार, बल्कि उससे कहीं अधिक स्पष्टता से। वे स्वयं की अनुभूति से ईश्वर के अस्तित्व का विश्वास दिलाते थे। आध्यात्मिक सत्य, ज्ञान के प्रखर तेज से भक्ति ज्ञान के रामकृष्ण पथ-प्रदर्शक थे। काली माता की भक्ति में अवगाहन करके वे भक्तों को मानवता का पाठ पढाते थे।

रामकृष्ण परमहंस जीवन के अंतिम दिनों में समाधि की स्थिति में रहने लगे। अत: तन से शिथिल होने लगे। शिष्यों द्वारा स्वास्थ्य पर ध्यान देने की प्रार्थना पर अज्ञानता जानकर हंस देते थे।  रामकृष्ण के परमप्रिय शिष्य विवेकानन्द कुछ समय हिमालय के किसी एकान्त स्थान पर तपस्या करना चाहते थे। यही आज्ञा लेने जब वे गुरु के पास गये तो रामकृष्ण ने कहा-वत्स हमारे आसपास के क्षेत्र के लोग भूख से तडप रहे हैं। चारों ओर अज्ञान का अंधेरा छाया है। यहां लोग रोते-चिल्लाते रहें और तुम हिमालय की किसी गुफा में समाधि के आनन्द में निमग्न रहो क्या तुम्हारी आत्मा स्वीकारेगी। इससे विवेकानन्द दरिद्र नारायण की सेवा में लग गये। रामकृष्ण महान योगी, उच्चकोटि के साधक व विचारक थे। सेवा पथ को ईश्वरीय, प्रशस्त मानकर अनेकता में एकता का दर्शन करते थे। सेवा से समाज की सुरक्षा चाहते थे। गले में सूजन को जब डाक्टरों ने कैंसर बताकर समाधि लेने और वार्तालाप से मना किया तब भी वे मुस्कराये। चिकित्सा कराने से रोकने पर भी विवेकानन्द इलाज कराते रहे। विवेकानन्द ने कहा काली मां से रोग मुक्ति के लिए आप कह दें। परमहंस ने कहा इस तन पर मां का अधिकार है, मैं क्या कहूं, जो वह करेगी मेरे लिए अच्छा ही करेगी। मानवता का उन्होंने मंत्र लुटाया। 

 उन्होंने माँ महाकाली के चरणों में अपने को उत्सर्ग कर दिया। वे भाव में इतने तन्मय रहने लगे कि लोग उन्हें पागल समझते। वे घंटों ध्यान करते और माँ के दर्शनों के लिये तड़पते। एक दिन अर्धरात्रि को जब व्याकुलता सीमा पर पहुँची, तब जगदम्बा ने प्रत्यक्ष होकर कृतार्थ कर दिया। गदाधर अब परमहंस रामकृष्ण ठाकुर हो गये।

 15 अगस्त, 1886 को तीन बार काली का नाम उच्चारण कर रामकृष्ण समाधि में लीन हो गए। रामकृष्ण समझते थे कि उन्होंने मां काली का हाथ नहीं पकड़ा हुआ है अपितु मां काली ने उनका हाथ पकड़ा हुआ है। इस कारण उनको कभी किसी के कथन की कोई चिन्ता ही नहीं रही। 

रामकृष्ण परमहंस को कौन नहीं जानता, वो एक ऐसे सिद्धयोगी पुरूष थे, जिन्होनें अपने आध्यात्मिक साधना से मां काली की भक्ति को पा लिया था और इसी कारण उन्हें रोज मां काली के दर्शन आसानी से हो जाते थे। पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव कामारपुकुर में जन्मे रामकृष्ण परमहंस मां काली के सच्चे भक्त थे।उन्होंने कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की थी, ना ही वह कभी स्कूल गए थे, ना तो उन्हें संस्कृत आती थी और ना ही अंग्रेजी जैसी भाषाओं का ज्ञान था। ना ही वो किसी सभा में भाषण देते थे, लेकिन वो सिर्फ मां काली को जानते थे, सिर्फ इसी वजह से उनका साक्षात्कार मां काली से हर रोज हो जाता था।

 बताया जाता है कि आध्यात्मिक साधना में पूरी तरह से लीन हो जाने के कारण रामकृष्ण का मानसिक संतुलन एक समय इतना बिगड़ गया था कि वे मां काली के दूर हो जानें पर रोना शुरू कर देते थे और काफी देर तक एक छोटे से बच्चे के समान रोते ही रहते थे। तब उनके परिवार वालों ने फैसला किया कि वे जल्द ही उनका विवाह कर देंगे। जिससे गृहस्थ जीवन में जानें के बाद वो ठीक हो सकें।

 उनका विवाह भी करा दिया गया, लेकिन रामकृष्ण की भक्ति-साधना में कोई परिवर्तन नहीं आया। एक बार उनकी पत्नी शारदा के सवाल के पूछा कि वो उन्हें किस रूप में देखते है तो रामकृष्ण परमहंस ने जवाब दिया कि उसी मां काली के रूप में जो दक्षिणेश्वर मंदिर में विराजमान है। वे सिर्फ अपनी पत्नि को ही नहीं बल्कि समस्त महिलाओं व बच्चियों को मां काली के रूप में ही देखते थे। आज भी वो मंदिर के साथ वो मूर्ति उसी जगह पर स्थित है जहां पर रामकृष्ण ने इनका पूजन किया था। इस जगह का नाम है काली गोदाम। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.