नवरात्र का आध्यात्मिक दृष्टि से है अपना महत्व
चैत्र नवरात्र के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थी, ब्रह्मा जी सृष्टि निर्माण का काम शुरु किया । इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरु होता है।
पुराणों के अनुसार पूरे साल में चार नवरात्र मनाए जाते हैं सभी नवरात्र का आध्यात्मिक दृष्टि से अपना महत्व है। इस दौरान देवी की पूजा होती है। नवरात्र के नौ दिनों में लोग व्रत रख अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए भगवान से वरदान मांगते हैं। शारदीय नवरात्र वैभव और भोग प्रदान देने वाले है। गुप्त नवरात्र तंत्र सिद्धि के लिए विशेष है जबकि चैत्र नवरात्र आत्मशुद्धि और मुक्ति के लिए।
चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवां अवतार जो भगवान राम का है वह भी चैत्र नवरात्र में हुआ था। इसलिए धार्मिक दृष्टि से चैत्र नवरात्र का बहुत महत्व है।
ज्योतिषशास्त्र में चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व है क्योंकि इस नवरात्र के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्नि तत्व वाले हैं इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है।चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। चैत्र नवरात्र की तो धार्मिक दृष्टि से इसका खास महत्व है क्योंकि चैत्र नवरात्र के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थी और देवी के कहने पर ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण का काम शुरु किया था। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरु होता है।