हर व्यक्ति में हैं श्रीकृष्ण
अन्याय का विरोध कर तथा समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर हर इंसान बन सकता है श्रीकृष्ण। डॉ. प्रणव पण्ड्या का चिंतन
जब भी समाज में प्रेम, त्याग और परोपकार जैसे मानवीय गुणों का ह्रास होता है और अन्याय-अत्याचार जैसे दुर्गुणों की वृद्धि होने लगती है, तो इससे संपूर्ण मानवता प्रभावित होती है। बुराइयां अधिक समय तक टिकती नहीं हैं और इन पर अच्छाई की ही जीत होती है। यह जीत सर्वश्रेष्ठ मानव सुनिश्चित करते हैं, जो ईश्वर के प्रतिनिधि माने जाते हैं। इन्हें ही अवतार पुरुष भी कहा जाता है।मान्यता है कि आज से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व कुछ ऐसी ही घटना घटी। उस समय गणतांत्रिक राज्यों के स्थान पर बड़े-बड़े साम्राज्यों की स्थापना का सूत्रपात हो चुका था। कुचक्र रचने में निपुण शक्तिशाली राजागण स्थानीय शासन को ध्वस्त कर अपना साम्राज्य स्थापित करने में लगे थे। शक्ति के मद में चूर सत्तालोलुप मगध नरेश जरासंध ने कई छोटे राजाओं को कैद कर उनके राज्यों पर कब्जा कर लिया था।
मथुरा के राजकुमार कंस की दुष्टता और राज्य लोलुपता इतनी बढ़ गई कि उसने अपने वृद्ध पिता महाराजा उग्रसेन तक को बंदी बनाकर उनके सिंहासन पर अधिकार कर लिया। दुर्योधन की घोर उद्दंडता और स्वार्थपरता भी चरम पर थी। विलास-वैभव के आगे उसे नीति-न्याय की जरा भी परवाह नहीं थी। स्वभावत: ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई कि उससे धर्म का चारों ओर ह्रास होने लगा। लोगों की रुचि गलत कार्यों में अधिक होने लगी। समाज में बुराइयां बढ़ने से सज्जन लोगों की परेशानियां बढ़ गईं। खुद को सुरक्षित करने के लिए लोग अत्याचारियों से संधि करने लगे। द्रोणाचार्य जैसे विद्वान और ज्ञानी भी कौरवों के पक्ष में हो गए। इससे सबसे बड़ी क्षति यह हुई कि अन्याय का विरोध करना लोगों ने छोड़ दिया। संकट की ऐसी स्थिति में संपूर्ण समाज एक ऐसे महापुरुष की राह देख रहा था, जो अधर्म का नाश कर पुन: धर्म की स्थापना करे। लोगों की यह अभिलाषा पूर्ण हुई और भाद्रपद की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उनका जन्म कैसी कठिन परिस्थितियों में कंस के कारागार में हुआ, किस प्रकार उनका गुप्त रूप से पालन-पोषण गोकुलाधिपति नंद के यहां हुआ और किस प्रकार छोटी अवस्था में ही उन्होंने अपूर्व तेजस्विता व वीरता का परिचय दिया, यह कथा सर्वविदित है।
यदि हम श्रीकृष्ण के संपूर्ण जीवन पर गौर करें, तो बाल्यावस्था ही नहीं, उनका समस्त जीवन ही अन्याय के प्रतिकार और न्याय की रक्षा करने में बीता। उनके चरित्र से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को कभी भी प्रलोभन या भय के वशीभूत नहीं होना चाहिए और न ही अन्याय के सम्मुखकभी सिर झुकाना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने कार्यों के माध्यम से आमजनों को अन्याय का प्रतिरोध करना सिखाया, शान से जीना सिखाया और प्यार से रहना सिखाया। उन्होंने राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, कला आदि कई क्षेत्रों में कार्य किया और लोगों को सन्मार्ग पर चलना सिखाया। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के माध्यम से जो उपदेश दिया, वह आज भी प्रासंगिक है। बिना सोचेविचारे अपनी राय कहीं भी प्रकट नहीं करनी चाहिए। संभव है कि मित्र के वेश में कोई शत्रु हो। यदि आपके बोलने या कोई कार्य करने से समाज का भला हो रहा हो, तो वह कार्य करने से कभी न हिचकें। अन्याय का प्रतिरोध तो अवश्य करें।
यह सच है कि सभी लोग सभी तरह की परिस्थितियों का सामना नहीं कर सकते। यदि आप बढ़िया उद्देश्य के साथ कोई कार्य करना चाहते हैं, तो सहयोग में कई सारे कदम अवश्य उठेंगे। यदि साहस और समूह का साथ मिले, तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है। पानी की सहस्र धाराएं जब एक साथ गिरती हैं, तो उस सामूहिक शक्ति के बल पर ही नदियां और तालाब भरते हैं। श्रीकृष्ण ने फल की चिंता किए बिना कर्म करने की शिक्षा दी। तत्काल सफलता न भी मिले, तो भी सच्चे मन से किया गया कार्य निष्फल नहीं होता। समय आने पर किसी न किसी रूप में बढ़िया परिणाम सामने लाता है। श्रीकृष्ण के उपदेशों का अनुसरण किया जाए, तो कोई भी व्यक्ति उनकी तरह महान बन सकता है।
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