आया सावन झूम के
झमाझम बरस रही है बदरिया सावन की जैसे रुत आई है मनभावन की। भीनी खूशबू के साथ खिल उठी हैं कलियां, बारिश की भी बढ़ गई है सरगोशियां।
सावन के सुहाने मौसम में मन मयूर नाच उठता है। खिल जाने को दिल करता है। खुशी जैसे टपकने लगती है। काले बादल साल भर बाद जब धरती से मिलते हैं तो दिलों में प्रेम की चरम की अनुभूति होती है। गायकों के सुर रस घोलने लगते हैं और चित्रकारों की कूची रंगों से खेलने को मचल उठती है। कवि की नई रचना जन्म लेती है और कलाकारों की नृत्य भंगिमाएं थिरकने को मजबूर कर देती हैं। यह मन-भावन मौसम ही है क्रिएटिविटी, उत्साह और परंपराएं निभाने का।
सावन बना देता है बोल्ड
'सावन के साथ वातावरण खुशनुमा बनने लगता है। मन में खुशी का संचार होता है। सावन का मतलब सुंदर चीजों का आना भी होता है। सुंदर कविताएं और रोमानी चित्र मन में खिंचते चले जाते हैं। लेखक हूं तो इस मौसम से प्रेरित होकर कुछ खूबसूरत रचनाएं लिख लेना चाहती हूं।
सावन प्रेम का संदेश लेकर आता है। जब पहली बारिश होती है तो मैं उसमें भीगना पसंद करती हूं। इस बार भी मैं पहली बारिश में बाहर भागी और जमकर भीगी। बच्चों से कहा कि खींचो मेरी तस्वीर। सावन मुझे बोल्ड भी बना देता है। अंदर की हर परेशानी से उबरकर बिंदास जीने के लिए कहता है।'
सावन के महीने में उत्साह के साथ बोल्डनेस भी महसूस करती हैं लेखिका वंदना राग। उनकी
कहानियों में भी सावन के रंग नजर आते हैं। वह कहती हैं, मेरी एक कहानी है, 'आज रंग है...', उसमें नायक नायिका को बारिश में भीगते देखता है तो उसके मन में भाव आता है कि वह प्रेम के जंगल में भटक गया है और नायिका उसे नाचती मोरनी का प्रतिबिंब लग रही है। वह उसके प्रेम में पड़ जाता है।'
नृत्य में भी है खूशबू
शिव और पार्वती के प्रणय बंधन का महीना भी है सावन। शिवभक्ति के इस मौसम के बारे में कथक नृत्यांगना पद्मश्री शोभना नारायण कुछ इस तरह से अपने विचार व्यक्त करती हैं, 'तीज पार्वती और शिव के प्रणय बंधन का
द्योतक है। यही कारण है कि हमारे यहां ब्याहता औरतें हरतालिका तीज मनाती हैं। रीति-रिवाज के अनुसार इस त्योहार में अपने पति की लंबी आयु के लिए ब्याहता स्त्री निर्जल उपवास करती है। खानपान में 'पेडकिया' यानी 'गुझिया' बनाई जाती है।' चूंकि शिव और नृत्य का अटूट संबंध है इसलिए शोभना नारायण कथक नृत्य में भी शिव के प्रिय मौसम सावन की खूशबू महसूस करती हैं।
फैशन में आ जाती है फ्रेशनेस
'सावन में राजस्थान में लहरिया और मुठड़ा बहुत चलता है। तीज राजस्थान का बहुत बड़ा त्योहार है। सावन में हम लहरिया और मुठड़ा में डिजाइनिंग कर उन्हें फैशनेबल बनाते हैं। सावन में ब्राइट कलर्स पहनने का काफी मजा आता है। गुलाबी, ऑरेंज, पीले और हरे रंग सहित हम शेड्स और कंस्ट्रक्शन टेक्निक्स को मिलाकर
खूबसूरत साडिय़ां व टेक्सटाइल बनाते हैं। सावन के रंगों की मस्ती हमारे क्रिएशन में भी नजर आती है।' फैशन डिजाइनर पल्लवी जयपुर अपने कलेक्शन में ट्रेडीशन को साथ लेकर चलती हैं। पारंपरिक प्रिंट्स को आधुनिक स्टाइल देने वाली पल्लवी जहां फैशन में फ्रेशनेस महसूस करती हैं वहीं खुद के दिल में भी। वह कहती हैं, 'सावन में एक फ्रेशनेस आती है और राजस्थान में तो पानी की बूंदें सभी को उत्साहित कर देती हैं। बड़ी खुशी होती है। जमकर बारिश होने का खूब मजा लेती हूं।'
बचपन की यादें
अपने बचपन का जिक्र करते हुए लोकगायिका मालिनी अवस्थी कहती हैं, 'कटहल की पकौड़ी और अरवी के पत्ते के पतौड़े बहुत याद आते हैं। वंदना राग कहती हैं, 'बचपन में रस्सी वाला झूला लगता था। हरी चूडिय़ों का बहुत शौक था। जिद करके खरीदती थी मैं।'
समंदर और सावन
नवीना बोले, अभिनेत्री
समंदर के साथ सावन का मजा दोगुना हो जाता है। बांद्रा में बैंड स्टैंड पर समंदर की लहरों के साथ-साथ बारिश में भीगना, भुट्टा ाना और अदरक वाली चाय पीना मेरा मनपसंद शगल है।
कजरी, झूला और सावन
पद्मश्री मालिनी अवस्थी, लोकगायिका
इस समय गाई जाने वाली राग-रागिनियां एक संपूर्णता का अहसास देती हैं। कजरी और झूले में सावन का जिक्र आता है। पेड़ों की डाल पर पड़े झूले में झूला झूलते हुए गोरी गाती है 'गोरी झूल गई झुलवा... सावन की बहार में ...।' 'नन्हीं-नन्हीं बूंदियां रे, सावन का मेरा झूलना...।'
'अम्मा मेरे बाबा को भेजो जी कि सावन आया...', जैसे गाने इसी मौसम पर बने हैं।वर्षा ऋतु के कई राग हैं, लेकिन लगता है कि धुनें पहले आईं और फिर इन्हें विद्वानों ने निखार कर राग-रागिनियों का रूप दे दिया।
इस मौसम में कई बार बाजा लेकर बैठ जाती हूं तो लगता है जैसे गाते ही जाओ। ऐसे मौसम में हर कलाकार की कला सिर्फ अपने लिए होती है। एक चित्रकार जैसे अपने मन के चित्र उकेरता है वैसे ही जब हम अकेले अपने लिए गाते हैं तो हमारा गाना सच्चा होता है। इस समय राम और कृष्ण को भी झूला झुलाने की परंपरा है। सावन में श्रृंगार के गीत भी गाए जाते हैं। यह श्रृंगार, संबंधों, और सखियों के साथ खेलने का मौसम है।
पहाड़ों पर हरी चादर
अस्मिता सूद, अभिनेत्री
सावन के मौसम में मेरे होम टाउन शिमला की खूबसूरती देखने लायक होती है। पहाड़ों पर जैसे हरी चादर बिछ जाती है। ऐसे में हल्की बूंदाबांदी के बीच दोस्तों के चिल करना मुझे बहुत पसंद है।
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बारिश में सरपट दौड़े मेरी कार
ऐश्वर्या सखूजा, अभिनेत्री
सावन के मौसम में मैं ड्राइविंग बहुत एंजॉय करती हूं। बारिश होती रहे और मेरी कार सरपट दौड़ती रहे। इस बीच कुल्हड़ की चाय के साथ गरमा-गरम पकौड़े मिल जाएं तो क्या ही कहने।
सावन के आइल महिनवा, ओ सखी गावा कजरिया
शारदा सिन्हा, लोकगीत गायिका
कॉलेज के जमाने में हम एक कजरी गाते थे, 'सावन के आइल महिनवा, ओ सखी गावा कजरिया...।' इस पर मैं डांस भी करती थी। इसमें सावन का बहुत अच्छा वर्णन था जैसे, 'दिन भर के थकल मंदल घर जब आइब, रुसल पिया के जियरवा रिझाइब...।' इसी तरह से मिथिलांचल में झूला गीत का भी रिवाज रहा है। 'झूला लागे कदम की डाली, झूले कृष्ण मुरारी रे...।' सावन मुझे भी बहुत अच्छा लगता है। मैं जब पन्नादेवीजी से ठुमरी, दादरा की गायन शैली सीख रही थी, वे झूला दादरा शैली में गातीं और कहतीं, यही सावन है बेटा जब मैं और बेगम अख्तरी
बाई झूले में गाते थे कि, 'सावन की ऋतु आई रे...।' सावन में महिलाओं के झूला झूलने की परंपरा रही है। अब लोग दूर हो गए हैं, लेकिन झूला भूलते नहीं। मुझे भी कजरी पसंद है। मैंने काफी कजरी गाई हैं, जैसे 'सखी री श्याम नहीं घर आए, बदरा घिर-घिर आए...।' सावन के गीत ऐसे होते हैं जो विरह में भी गाए जाते हैं और खुशनुमा मूड में भी। जिन नायिकाओं के प्रियतम उनके पास नहीं हैं, वे विरह में गाती हैं और जिनके प्रिय निकट हैं, वे खुशी और प्रेम में कजरी गाती हैं। सखियों के साथ तो उनका मन ज्यादा उल्लासित होता है। विरह में महाकवि विद्यापति ने भी लिखा है, 'सखी हे हमर दुखत नहीं गोर...।'
मिथिलांचल में इन्ही दिनों मल्हार भी गाए जाते हैं, जैसे आली रे प्रीतम..., इसमें नई नवेली दुल्हन का वर्णन है। कजरी में हर भावना को छुआ गया है। यह हमारी परंपरा है और सावन ऋतु में इन्हें गाने की परंपरा को और आगे बढ़ाना चाहिए।
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