हर शहर में होगी गणेशोत्सव की धूम
मराठी समुदाय में यह पर्व सिर्फ गणेश जी की स्थापना का ही नहीं, बल्कि गौरी जी की स्थापना का भी होता है। शहर इन दिनों रंग जाता है मराठी समाज के रस्मों-रिवाजों और परंपराओं के रंग में।
गणेश जी की स्थापना और प्रार्थना का पर्व है गणेशोत्सव। गणेश जी के विग्रह की स्थापना के साथ ही ये पर्व पूरे दस दिन तक चलता है पूजन, भंडारा और सांस्कृतिक आयोजनों का दौर। आस्था का ऐसा सैलाब उमड़ता है कि दिनभर शहर के चौराहों में गणेश स्तुति और भजनों की गूंज सुनाई देती है।
मराठी समुदाय में यह पर्व सिर्फ गणेश जी की स्थापना का ही नहीं, बल्कि गौरी जी की स्थापना का भी होता है। शहर इन दिनों रंग जाता है मराठी समाज के रस्मों-रिवाजों और परंपराओं के रंग में।
ब्राह्मण भोज व स्थापना
गणेश जी को मोदक बहुत पसंद हैं, इसलिए उनकेभोग में महिलाएं मावा, गुड़ और शक्कर के मोदकतैयार करती हैं। इसके साथ ही स्थापना में भगवान गणेश को पारंपरिक मराठी व्यंजनों का भी भोग लगाया जाता है। खलासी लाइन की प्रतिभा फाल्के बताती हैं, 'स्थापना वाले दिन परिवार के सभी सदस्य नए कपड़े धारण कर गणपति का श्रंगार करते हैं और नए कपड़ों से उन्हें सजाकर मंत्रोच्चारण के साथ घर में स्थापित करते हैं।
इस दिन मोदक, वरणभात (दाल-चावल), सफेद कढ़ी (बिना हल्दी की कढ़ी), कोशिंबीर (दही, शक्कर और केले की खीर) व रायता आदि व्यंजन बनाए जाते हैं। इस दिन हर घर में पहले ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है और इसके बाद घर केलोग भोजन गृहण करते हैं। मान्यता है कि भगवान गणेश को स्वादिष्ट व्यंजन बहुत प्रिय हैं, इसलिए कोशिश होती है कि ब्राह्मण को लजीज व्यंजन कराकर तृप्त कर दिया जाए। ब्राह्मण के आशीर्वाद के बिना गणेश स्थापना अधूरी मानी जाती है।"
सुहाग रक्षा की प्रार्थना मराठी समुदाय में गणेश स्थापना के साथ ही देवी गौरी की स्थापना का भी बहुत महत्व है। समुदाय की महिलाएं गणेश स्थापना के तीसरे दिन गौरी जी की स्थापना कर सुहाग रक्षा का आशीर्वाद मांगती हैं। देवनगर की कुंदा वेरूलकर बताती हैं, 'गणेश स्थापना के तीसरे दिन गौरी जी का बुलावा लगता है। इस दिन घर में गौरी जी की पीतल की प्रतिमा स्थापित की जाती है। प्रतिमा को श्रंगार और वस्त्रों से सजाकर घर की सुहागिन महिला द्वारा स्थापित कराया जाता है। गौरी को घर आमंत्रित करना होता है, इसलिए स्थापना के स्थान से लेकर घर के मुख्यद्वार तक कुमकुम और हल्दी से रंगोली व पावले (देवी के पैर) बनाए जाते हैं। घर की
महिला प्रतीक रूप में देवी का मुकुट दरवाजे से पावले के ऊपर चावल छोड़ती हुई लेकर घर में प्रवेश करती है। दूसरी सुहागिन उसके पैरों में दूध की धार छोड़ती है। देवी को मुकुट पहनाकर उनकेघर आगमन में मंगलगान होता है और सुहागिन महिलाओं को भोजन कराया जाता है। मान्यता है कि बिना गौरी स्थापना के गणेश स्थापना अधूरी रहती है।'
मान्यता के मोदक
किदवई नगर की सुनीता करंदीकर बताती हैं, 'मराठी समुदाय में गणेश जी को मनौती में मोदक चढ़ाने की परंपरा बहुत प्रचलित है। किसी मांगलिक कार्य या संकट के समाधान के लिए प्रार्थना करके संख्या में मोदक चढ़ाने की मनौती मानी जाती है।
जब मनौती पूरी होती है तो लोग उसी संख्या में मोदक चढ़ाते हैं। मनौती में हजार मोदक चढ़ाने का चलन बहुत पुराना है। इसी तरह जो लोग घर पर गणेश जी की स्थापना नहीं करते वे अपने घर में डेढ़, तीन, सात और दस दिन की स्थापना की भी मनौती मानते हैं। '
घर में ही गौरी विसर्जन
देव नगर की स्वाती वेरूलकर बताती हैं, 'गणेश जी का विसर्जन बहते हुए जल में किया जाता है जबकि गौरी जी का विसर्जन घर पर ही होता है। इनका विसर्जन महिलाएं विदाई गीत गाते हुए उन्हें स्थापना के स्थान से हटाकर करती हैं। देवी से प्रार्थना की जाती है कि हम पर आशीर्वाद बनाए रखना।'
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