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हाय वो होली हवा हुई

By Edited By: Published: Sat, 03 Mar 2012 11:01 PM (IST)Updated: Sat, 03 Mar 2012 11:01 PM (IST)
हाय वो होली हवा हुई

दो साल पूर्व होली से 10-12 दिनों पहले एक उभरते स्टार के पीआर का फोन आया। बाद में उक्त स्टार से भी बात हुई। उन्होंने अपनी तरफ से ऑफर किया कि अगर दैनिक जागरण में अच्छी कवरेज मिले तो वे अपनी प्रेमिका के साथ होली खेलने की एक्सक्लूसिव तस्वीरें और बातचीत मुहैया करवा सकते हैं। होली के मौके पर पाठकों को कुछ अंतरंग तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ भरी बातचीत भी मिल जाएगी। जागरण में स्टार की इच्छा पूरी नहीं हो सकी, लेकिन सुना कि उनकी चाहत किसी और अखबार ने पूरी कर दी।

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पोज बना कर होली

फिल्मी इवेंट के पेशेवर फोटोग्राफर कई सालों से परेशान हैं कि उन्हें होली के उत्सव और उमंग की नैचुरल तस्वीरें नहीं मिल पा रही हैं। सब कुछ बनावटी हो गया है। रंग-गुलाल लगाकर एक्टर पोज देते हैं और ऐसी होली होलिकादहन के पहले ही खेल ली जाती है। मामला फिल्मी है तो होली का त्योहार भी फिल्मी हो गया है। हवा की फगुनाहट से थोड़े ही मतलब है। स्विमिंग पूल में बच्चों के लिए बने पौंड में रंग घोल दिया जाता है या किसी सेटनुमा हॉल में होली मिलन का नाटक रच दिया जाता है।

मुमकिन है मेगा इवेंट

मुमकिन है कुछ सालों में कोई कारपोरेट या इवेंट मैनेजमेंट कंपनी होली के इवेंट का आयोजन करे। उस होली में शामिल होने के लिए लाखों-करोड़ों रूपए स्टार को दिए जाएं और बाद में किसी चैनल से उसका प्रसारण कर करोड़ों का मुनाफा बटोरा जाए। होली के रंग-गुलाल, त्योहार की मौज-मस्ती और उसमें फिल्म स्टारों के ठुमकों और मौजूदगी से पूरा कार्यक्रम रंगारंग हो जाएगा। ऐसे इवेंट के लिए अमिताभ बच्चन को 'रंग बरसे' परफार्म करने के लिए विशेष ऑफर दिया जा सकता है या रणबीर कपूर को लेकर आरके की होली रीक्रिएट की जा सकती है।

गजब था आरके का रंग

पिछली सदी तक ऐसी स्थिति नहीं थी। सदी के करवट लेने के बाद भी कुछ सालों तक फिल्म इंडस्ट्री में रंगों की पिचकारियां चलती रहीं, लेकिन धीरे-धीरे उमंग और उत्साह ठंडा पड़ता गया। आज भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में होली की बात चलते ही सबसे पहले आरके की होली याद की जाती है। उन होलियों में शरीक रहे लोगों से बातें करें तो अनेक मजेदार किस्से सुनने को मिलते हैं। राज कपूर अपनी देखरेख में सारी व्यवस्था करते थे। होली के लिए एक स्थायी हौज आरके में बना हुआ था। उसमें रंग घुला रहता था। मस्ती तो माहौल में रहती थी। बताते हैं कि सुबह ग्यारह बजे से अपराह्न चार बजे तक होली चलती थी। राज कपूर खुद ढोलक लेकर बैठ जाते थे। शंकर जयकिशन अपने बैंड के साथ मौजूद रहते थे। होली के फिल्मी और लोकगीतों से समां बंधा रहता था। राज कपूर को सितारा देवी का नृत्य बहुत पसंद था। कभी गोपीकृष्ण भी आ जाते थे। फिर तो शास्त्रीय नृत्य और बोलों की थाप से गुंजायमान आरके में उपस्थित सभी जन थिरकने लगते थे।

कहा तो यह भी जाता है कि यश चोपड़ा को 'रंग बरसे' का क्लासिक आइडिया यहीं से मिला था, जिसमें दो प्रेमी होली के बहाने अपने मन की भावनाओं को सार्वजनिक करने से नहीं हिचकते। एक और जानकारी मिली कि कपूर परिवार में बहुओं के आने के पहले तक अभिनेत्रियों को भी रंगों के हौज में डुबकी दिलवाई जाती थी। बेटों की शादी के बाद यह सिलसिला थम गया। लाज-लिहाज की वजह से राज कपूर भी थोड़ी कम मस्ती करने लगे थे। यह भ्रम है कि आरके की होली में खूब खानपान होता था। आरके की होली खेल चुके लोग बताते हैं कि चेंबूर के प्रसिद्ध मिष्ठान भंडार झामा से जलेबी, गुलाब जामुन और समोसे आते थे। झामा के गुलाब जामुन की खासियत थी कि अमिताभ बच्चन रहते तो जुहू में थे, लेकिन गुलाब जामुन चेंबूर के झामा से मंगवाते थे।

बिग बी की निराली होली

राज कपूर अस्वस्थ रहने लगे तो उन्होंने होली का आयोजन बंद कर दिया। इस बीच फिल्म इंडस्ट्री का केंद्र भी बदल चुका था। अमिताभ बच्चन की 'प्रतीक्षा' में होली की हुल्लड़ होने लगी। इंडस्ट्री के तमाम लोग प्रतीक्षा में निमंत्रित किए जाने की आस लगाए रहते थे। इरफान ने एक बार बताया था कि जब उन्हें प्रतीक्षा का निमंत्रण मिला था तो वे फूले नहीं समाए थे। यह हाल छोटे-बड़े सभी स्टारों का था। होली के इस आयोजन में अमिताभ बच्चन बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे और उनकी मंडली की जमात जमी रहती थी। प्रतीक्षा की होली में पहला गैप मुंबई बम धमाकों के साल आया था। दूसरी बार सारी तैयारियां हो गई थीं कि पिता बच्चन को हर्ट अटैक हुआ और वे ब्रीच कैंडी अस्पताल में भरती हो गए।

खेमेबंदी का दौर

हालांकि इस दरम्यान नए शोमैन सुभाष घई और यश चोपड़ा ने भी होली का आयोजन किया, लेकिन वे आरके या प्रतीक्षा की मस्ती नहीं अपना या दोहरा सके। उनके आयोजन में निरंतरता भी नहीं रही। जोश में दो-तीन बार शाहरूख खान ने भी होली का आयोजन किया, लेकिन किंग खान की बादशाहत होली नहीं जमा सकी। यही वह दौर था जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में गुट और ग्रुप तेजी से बन रहे थे। गिले-शिकवे भूल कर दुश्मनों को गले लगाने की बात तो दूर रही..अब तो दोस्तों से भी सुरक्षित दूरी बनाए रखने का रिवाज चल पड़ा था।

दशकों से फिल्म इंडस्ट्री के करीबी और यहां की गतिविधियों के जानकार तरण आदर्श के मुताबिक, ''इन दिनों ग्रुप बन गए हैं। पहले जैसा भाईचारा नहीं रहा। दूसरे मुझे लगता है कि सुरक्षा कारणों से भी होली जैसे सार्वजनिक आयोजन बंद हो गए। एक डर का माहौल समाज में है। उसका असर इंडस्ट्री में भी दिखता है।'' डर और अलगाव ने ही होली की सामाजिकता नहीं रहने दी। सभी अलग-थलग और निजी कामों में ज्यादा व्यस्त रहने लगे हैं। अब ग्रुप जमा भी होते हैं तो देर रात की पब पार्टियों के लिए। यहां तेज संगीत के साथ मदिरा छलकती है। पिछले दशक की बात करें तो एक तथ्य और नजर आता है कि फिल्म इंडस्ट्री को कोई सर्वमान्य स्टार नहीं रहा। खानों का त्रिकोण फिल्म इंडस्ट्री को कई खेमों में बांट चुका है।

रंगों की रस्म अदायगी

अमिताभ बच्चन ने पिता हरिवंश राय बच्चन की मृत्यु के बाद कभी होली का आयोजन नहीं किया। इस साल वे स्वयं बीमार हैं। होली के आयोजन आज भी छिटपुट रूप से होते हैं, लेकिन उनमें वह रंग, चमक, उल्लास और धमक नहीं है। उम्मीद है कि इस साल भी जावेद अख्तर और शबाना आजमी होली का प्रतीकात्मक आयोजन करेंगे। टीवी निर्माता अपने होली एपीसोड के लिए होली का रस्मी आयोजन कर लेते हैं। और फिल्म इंडस्ट्री की क्या बात करें ़ ़ ़अब तो फिल्मों से भी होली गायब हो गई है। पिछली बार विपुल शाह की फिल्म 'एक्शन रिप्ले' में ऐश्वर्या राय होली खेलती नजर आई थीं।

[अजय ब्रह्मात्मज]

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