आज फिर जीने की तमन्ना है..
कल के अंधेरों से निकल के, देखा है आंखें मलते मलते.. कुछ इसी गीत के बोल की तरह हिंदी फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री वहीदा रहमान का फिल्मों की सपनीली दुनिया में आगमन हुआ और उन्होंने गुरूदत्त से लेकर अमिताभ बच्चन तक हर बड़े अभिनेता के साथ काम किया। तीखे नैन नक्श और खजुराहो की मूर्तियों सी सांचे में ढली कमनीय काया की मलिका वहीदा को फिल्म जगत की सबसे हसीन अभिनेत्रियों में शामिल किया जाता है।
14 मई : वहीदा रहमान के जन्मदिन पर विशेष..
नई दिल्ली। कल के अंधेरों से निकल के, देखा है आंखें मलते मलते.. कुछ इसी गीत के बोल की तरह हिंदी फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री वहीदा रहमान का फिल्मों की सपनीली दुनिया में आगमन हुआ और उन्होंने गुरूदत्त से लेकर अमिताभ बच्चन तक हर बड़े अभिनेता के साथ काम किया। तीखे नैन नक्श और खजुराहो की मूर्तियों सी सांचे में ढली कमनीय काया की मलिका वहीदा को फिल्म जगत की सबसे हसीन अभिनेत्रियों में शामिल किया जाता है। उन्होंने अपने सशक्त अभिनय से पर्दे पर कई किरदारों को अमर बना दिया। प्यासा, कागज के फूल, साहिब बीबी और गुलाम, गाइड, सीआईडी और चौहदवीं का चांद सहित कई फिल्मों में वहीदा ने यादगार अभिनय किया।
14 मई 1936 को तमिलनाडु के चेंगलपट्टू में जन्मी वहीदा की इच्छा डॉक्टर बनने की थी, लेकिन परिस्थितियां उन्हें फिल्मों की जगमगाती दुनिया में ले आईं। भरतनाट्यम में पारंगत वहीदा रहमान के फिल्मी करियर की शुरुआत तमिल और तेलुगू फिल्मों से हुई। हैदराबाद में फिल्म रोजुलू माराई की सफलता पर दी गई पार्टी में गुरुदत्त ने उन्हें देखा और बंबई ले आए। उन्होंने अपने प्रोडक्शन की फिल्म सीआईडी (1956) में उन्हें खलनायिका का रोल ऑफर किया।
वहीदा बचपन में ही अपने पिता को खो चुकी थीं और हिंदी फिल्मों में आगमन के कुछ ही सालों में उन्होंने अपनी मां को भी खो दिया। कहते हैं वहीदा अपनी मां को याद कर इतनी भावुक हो उठती थीं कि वह अपनी भूमिकाओं में मां से जुड़े डायलॉग भी ठीक से नहीं बोल पा रही थीं। इसी तरह का उनका एक डायलॉग था तुम्हारे पास तो मां है मेरे पास तो वह भी नहीं.. इस डायलॉग के लिए वहीदा को 17 टेक देने पड़े। आखिरकार गुरुदत्त के समझाने के बाद वह डायलॉग ठीक तरह से बोल पाईं।
वहीदा रहमान के फिल्मी करियर में जितना स्थान गुरुदत्त का रहा उतना ही देव आनंद का भी रहा। गुरुदत्त के साथ उनकी प्यासा, कागज के फूल, साहब बीवी और गुलाम, चौदहवीं का चांद सीआईडी जैसी फिल्में आज भी क्लासिक फिल्मों की श्रेणी में आती हैं। देव आनंद के साथ उन्होंने गाइड, बाजी और सीआईडी जैसी हिट फिल्में दीं। वहीदा ने बच्चन परिवार के लगभग सभी सदस्यों के साथ काम किया है।अमिताभ बच्चन के साथ वे अदालत, कभी कभी, त्रिशूल, नमक हलाल जैसी फिल्मों में नजर आइ, तो अमिताभ बच्चन के पुत्र अभिषेक बच्चन के साथ ओम जय जगदीश और दिल्ली 6 में नजर आइ। यह वहीदा ही थीं जिन्होंने फिल्म फागुन में जया भादुड़ी की मां की भूमिका निभाई फिल्म रेशमा और शेरा के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, तो गाइड, नील कमल के लिए फिल्म फेयर का पुरस्कार मिला। पद्मश्री से सम्मानित वहीदा को रंग दे बसंती में सशक्त भूमिका में बेहद पसंद किया गया।
साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता मंगलेश डबराल वहीदा रहमान के अभिनय के बारे में कहते हैं, वहीदा जी का अभिनय स्थूल अभिनय से परे था। उनके जैसे अभिनय की झलक बाद की अभिनेत्रियों में सिर्फ स्मिता पाटिल में ही दिखती है। बांग्ला में माधवी मुखर्जी और हिंदी में नूतन जैसी अभिनेत्रियां उनके समकक्ष मानी जा सकती हैं। उनके संवेदनशील अभिनय को उनके चेहरे की भाव भंगिमाओं से ही देखा जा सकता है।
फिल्म समीक्षक और स्तंभकार भूपेन सिंह कहते हैं कि वहीदा जी अपनी पीढ़ी की आज एकमात्र ऐसी अभिनेत्री हैं, जो फिल्मों में सक्रिय हैं। गाइड की विद्रोही रोजी और दिल्ली 6 की दादी के चरित्र में कभी यह महसूस नहीं हुआ कि उनके अभिनय में नाटकीयता हो। वह हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम दौर का एक सशक्त अध्याय हैं।
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