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अब शुद्ध बिजनेस है बॉलीवुड

इन दिनों फिल्मों की गुणवत्ता की चर्चा कम ही होती है। नतीजतन ज्यादा बिजनेस के लिए तौर-तरीके बदले जा रहे हैं। कोशिश की जा रही है कि वीकएंड के तीन दिनों में ही अधिकतम कमाई से बॉक्स ऑफिस को झंकृत कर दिया जाए। यह भी देखने में आ रहा है कि दर्शक उन फिल्मों का कलेक्शन बढ़ाने में मददगार होते हैं, जिन फि

By Edited By: Published: Wed, 19 Dec 2012 02:47 PM (IST)Updated: Wed, 19 Dec 2012 03:05 PM (IST)
अब शुद्ध बिजनेस है बॉलीवुड

इन दिनों फिल्मों की गुणवत्ता की चर्चा कम ही होती है। नतीजतन ज्यादा बिजनेस के लिए तौर-तरीके बदले जा रहे हैं। कोशिश की जा रही है कि वीकएंड के तीन दिनों में ही अधिकतम कमाई से बॉक्स ऑफिस को झंकृत कर दिया जाए। यह भी देखने में आ रहा है कि दर्शक उन फिल्मों का कलेक्शन बढ़ाने में मददगार होते हैं, जिन फिल्मों को अच्छी ओपनिंग मिलती है। इस लिहाज से अगले पांच-दस सालों में फिल्मों का वीकएंड कलेक्शन ही 100 करोड़ से अधिक हो जाएगा। तब 500 करोड़ का क्लब होगा और बातें की जाएंगी कि रणबीर कपूर, इमरान हाशमी, इमरान खान और रणवीर सिंह में से किस की फिल्म का बिजनेस सबसे पहले 1000 करोड़ पहुंच जाएगा। रूपए के अवमूल्यन और टिकट दरों में इजाफा भी इस रकम तक पहुंचने में सहायक होगा।

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भविष्य की हिंदी फिल्मों के संभावित परिवर्तनों को संक्षेप में समेट पाना मुश्किल है। यहां हमने कुछ परिवर्तनों की बातें की हैं। आप सोचेंगे तो पाएंगे कि परिवर्तन के और भी पहलू हैं।

वही रहेगा फार्मूला

अगले दस सालों में हिंदी फिल्मों में किसी गुणात्मक परिवर्तन की सोच अकल्पनीय है। पिछले सौ सालों में हिंदी फिल्मों के निहित तत्वों की जड़ें इतनी मजबूत हो गई है, कि उनमें ऊपरी बदलाव तो परिलक्षित होगा, लेकिन अंदरूनी स्वभाव पूर्ववत रहेगा। हिंदी फिल्मों का इमोशनल पक्ष पहले की तरह ही भावुक, नाटकीय और आबाद रहेगा। प्रस्तुति और निर्वाह में आया परिवर्तन भी कॉस्मेटिक ही रहेगा।

हॉलीवुड का अलग स्पेस

हिंदी फिल्मों के मूलभूत गुणों को रेखांकित करना मुश्किल काम है। इन गुणों की वजह से ही हिंदी फिल्में दशकों से टिकी हुई है। हॉलीवुड की फिल्मों ने दुनिया भर की सभी भाषाओं की फिल्मों का बिजनेस छीना, लेकिन भारत में हिंदी समेत सभी प्रमुख भाषाओं की फिल्मों के बिजनेस में ज्यादा फर्क नहीं आया। विचारों की तरह भारतीय समाज में व्यापार को भी समाहित कर लेने की क्षमता है। इन दिनों हॉलीवुड की कुछ फिल्मों के वीकएंड कलेक्शन हिंदी फिल्मों से अधिक होते हैं। पर उनकी अधिकता ने हिंदी फिल्मों के दर्शक नहीं छीने हैं। दरअसल, हॉलीवुड की फिल्में अपने लिए नए दर्शक समूह पैदा कर रही हैं।

ग्लोबल हो रहे हैं दर्शक

पिछले दिनों भविष्य के सिनेमा के संबंध में कई फिल्मकारों से बातें हुई। कोई भी निराश या हताश नहीं दिखा। सभी आश्वस्त थे कि हिंदी फिल्में विकसित होगी और उनका बाजार बढ़ेगा। हॉलीवुड की फिल्मों की तरह इंटरनेशनल स्तर पर हिंदी फिल्में भी बिजनेस करेंगी। दुनियाभर के कुल एंटरटेनमेंट व्यापार में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं की फिल्मों का उल्लेखनीय शेयर होगा। लक्षण अभी से दिख रहे हैं। हिंदी फिल्में अपने ट्रैडिशनल मार्केट इंग्लैंड और अमेरिका से बाहर निकल रही हैं। हिंदी फिल्मों के दर्शक सिर्फ भारतवंशी नहीं रह गए हैं। यह तथ्य भी रोचक है कि ये दर्शक सिर्फ मेनस्ट्रीम की मसाला फिल्में ही नहीं देख रहे हैं। वे भारत में निर्मित शॉर्ट और डॉक्युमेंट्री फिल्मों में भी रुचि दिखा रहे हैं।

मुंबई से बाहर निकलेगा सिनेमा

भविष्य में देश के अंदर हिंदी फिल्में मैट्रो और मल्टीप्लेक्स पर ही निर्भर नहीं रहेंगी। उत्तर भारत में आ रही आर्थिक समृद्धि और कानून एवं व्यवस्था की सुधरती हालत से फिल्मों का कारोबार बढ़ेगा। अभी हिंदी फिल्में हिंदीभाषी प्रदेशों में बमुश्किल 10 से 15 प्रतिशत व्यापार कर पाती हैं। यह अनुमान अगले दस सालों में कम से कम पच्चीस प्रतिशत हो जाएगा। उत्तर भारतीय परिवेश की फिल्मों का बिजनेस 50 प्रतिशत तक जा सकता है। मुंबई में हिंदी फिल्मों का संकेंद्रण है। भविष्य में इसका विकेंद्रीकरण स्वाभाविक है। हिंदी प्रदेशों में राज्य सरकारों की मदद से एंटरटेनमेंट का उद्योग बढ़ेगा। स्थानीय प्रॉडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। एक संभावना और दिख रही है कि हिंदी की क्षेत्रीय फिल्मों का निर्माण आरंभ होगा। प्रदेश विशेष की फिल्में होंगी और वे क्षेत्रीय स्तर पर अच्छा कारोबार करेंगी। उनमें से उम्दा और अखिल भारतीय अपील की फिल्मों का रीमेक हिंदी फिल्मों में होगा।

नैतिकता में होगी ढील

सेक्स अभी तक हिंदी फिल्मों का वर्जित विषय है। भविष्य में सेक्स विषयक फिल्मों के साथ आम फिल्मों में सेक्स संबंधित दृश्यों में झिझक कम होगी। अभी दर्शक से लेकर सेंसर तक की नैतिकता और विषयों का ख्याल रखना पड़ता है। अगले दस सालों में विषय बदले जाएंगे और नैतिकता तो बदल ही रही है। हिंदी फिल्मों में धड़ल्ले से गालियां इस्तेमाल की जा रही हैं। आम जिंदगी में प्यार और घृणा की अभिव्यक्ति को शब्द मिलेंगे। तब यह शब्द और संवाद कानों में नहीं खटकेंगे।

प्रेम में जुड़ेंगे नए आयाम

प्रेम कहानियां हमारी फिल्मों का मुख्य घटक बनी रहेंगी, लेकिन प्रेम कहानियों में नए आयाम जुड़ेंगे। हीरो-हीरोइन केंद्रित प्रेम में नए तत्व जुड़े रहेंगे। इसके साथ ही रोजमर्रा की जिंदगी की कहानियां भी हमारी फिल्मों का हिस्सा बनेंगी। एक फिल्मकार ने स्पष्ट कहा कि अभी हिंदी फिल्मों के किरदार और असल जिंदगी के किरदार एक जैसी भाषा बोलने लगे हैं। उनके बोलने और सोचने की यह समानता बढ़ रही है। हिंदी फिल्मों का यह सरलीकरण उसे जिंदगी के करीब लाएगा। नए किस्म के यथार्थवादी फिल्में हिंदी में दिखेंगी।

तकनीक से होगा कमाल

हिंदी फिल्मों का तकनीकी विकास इन्हें नई ऊंचाई पर ले जाएगा। साउंड और प्रोजेक्शन में हो रहे नित नए सुधारों और आविष्कारों से हिंदी फिल्मों के दर्शकों को इंटरनेशनल स्तर की क्वॉलिटी मिलेगी। 3डी फिल्मों का जादुई असर हमने देख लिया है। अब भविष्य में डायरेक्टर 4डी फिल्मों की तकनीक भी अपनाने लगेंगे। आईमैक्स थिएटरों की संख्या बढ़ेगी। यहां तक कि छोटे शहरों तक में मल्टीप्लेक्स कल्चर असर दिखेगा। इस असर से सिनेमा के साथ-साथ दर्शक बदलेंगे।

बना रहेगा स्टार सिस्टम

हिंदी फिल्मों में स्टार सिस्टम चलता रहेगा। स्टार बदलेंगे और नए सितारों का रोब-दाब होगा। अभी ज्यादातर मेल स्टारों की पूछ होती है। भविष्य में फीमेल स्टारों का भी दबदबा बढ़ेगा। हालांकि मेल-फीमेल स्टार के पारिश्रमिक में फर्क बना रहेगा, लेकिन यह अंतर कम होगा। फिल्म की कहानियां भी सिर्फ पुरुष प्रधान नहीं रह जाएंगी। समाज में महिलाओं की भूमिका बढ़ने के साथ हिंदी फिल्मों में उनकी पोजिशन मजबूत होगी।

फिल्में देखने के लिए थिएटर या टीवी की अनिवार्यता समाप्त हो जाएगी। सिनेमा के लिए 'बड़े पर्दे' शब्द का उपयोग निरर्थक हो जाएगा, क्योंकि फिल्में मोबाइल,टैब और आईपैड पर अपनी सुविधा से देखी जाएंगी। इससे फिल्म देखने की सामूहिकता का ह्र्रास होगा। नतीजतन फिल्मों की कहानी का चुनाव भी प्रभावित होगा। मुमकिन है कि भविष्य में फिल्में ऑनलाइन भी देखी जा सकें!

अजय ब्रह्मंात्मज

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