फिल्म रिव्यू: 'रॉकी हैंडसम', एक्शन से भरपूर (2.5 स्टार)
'रॉकी हैंडसम' एक्शसन फिल्म है। एक्शरन के लिए रॉकी और नावोमी के बीच के इमोशनल रिश्ते का सहारा लिया गया है। उस रिश्ते की प्रगाढ़ता को लेखक-निर्देशक हिंदी फिल्मों के प्रचलित तरीके से नहीं दिखा पाए हैं। नतीजतन फिल्म में इमोशन की कमी लगती है।
-अजय बह्मात्मज
प्रमुख कलाकार- जॉन अब्राहम, श्रृति हासन, निशिकांत कामत, शरद केलकर।
निर्देशक- निशिकांत कामत
संगीत निर्देशक- सनी बावरा और इंदर बावरा।
स्टार- ढाई स्टार
निशिकांत कामत निर्देशित 'रॉकी हैंडसम' 2010 में आई दक्षिण कोरिया की फिल्म 'द मैन फ्रॉम नोह्वेयर' की हिंदी रीमेक है। निशिकांत कामत के लिए रितेश शाह ने इसका हिंदीकरण किया है। उन्होंने इसे गोवा की पृष्ठरभूमि दी है। ड्रग्स, चाइल्ड ट्रैफिकिंग, ऑर्गन ट्रेड और अन्य अपराधों के लिए हिंदी फिल्म निर्देशकों को गोवा मुफीद लगता है। 'रॉकी हैंडसम' में गोवा सिर्फ नाम भर का है। वहां के समुद्र और वादियों के दर्शन नहीं होते। पूरी भागदौड़ और चेज भी वहां की नहीं लगती। हां, किरदारों के कोंकण और गोवन नामों से लगता है कि कहानी गोवा की है। बाकी सारे कार्य व्यापार में गोवा नहीं दिखता।
बहरहाल, यह कहानी रॉकी की है। वह गोवा में एक पॉन शॉप चलाता है। उसके पड़ोस में नावोमी नाम की सात-आठ साल की बच्ची रहती है। उसे रॉकी के अतीत या वर्तमान की कोई जानकारी नहीं है। वह उसे अच्छा लग्ता है। वह रॉकी से घुल-मिल गई है। उसे हैंडसम बुलाती है। नावोमी की मां ड्रग एडिक्ट है। किस्सा कुछ यों आगे बढ़ता है कि ड्रग ट्रैफिक और ऑर्गन ट्रेड में शामिल अपराधी नावोमी का अपहरण कर लेते हैं। दूसरों से अप्रभावित रहने वाला खामोश रॉकी हैंडसम रिएक्ट करता है। वह उस बच्ची की तलाश में निकलता है। इस तलाश में वह अपराधियों के अड्डों पर पहुंचता है। उनसे मुठभेड़ करता है। पुलिस को सुराग देता है। उसका आखिरी मुकाबला केविन परेरा से होता है। इस दरम्यान वह नृशंस तरीके से अपराधियों को कूटता और मारता है। उनकी जान लेने में उसे संकोच नहीं होता।
'रॉकी हैंडसम' एक्शसन फिल्म है। एक्शरन के लिए रॉकी और नावोमी के बीच के इमोशनल रिश्ते का सहारा लिया गया है। उस रिश्ते की प्रगाढ़ता को लेखक-निर्देशक हिंदी फिल्मों के प्रचलित तरीके से नहीं दिखा पाए हैं। नतीजतन फिल्म में इमोशन की कमी लगती है। 'रॉकी हैंडसम' देखते हुए लगता है कि जापानी और दक्षिण कोरियाई हिंसक और एक्शन फिल्मों का भारतीयकरण करते समय हमें भारतीय भाव-अनुभाव का पुट डालना चाहिए। सिर्फ एक्शन से दर्शक जुड़ नहीं पाते। निशिकांत कामत ने हिंदी फिल्मों की एक्शन फिल्मों के ढांचे का इस्तेमाल नहीं किया है, लेकिन वे दक्षिण कोरियाई फिल्म की थीम को तरीके से भारतीय जमीन पर रोप भी नहीं पाए हैं।
हम जॉन अब्राहम की खूबियों और सीमाओं से परिचित हैं। निशिकांत कामत ने उनका बखूबी इस्तेमाल किया है। उन्होंने जॉन को निम्नतम संवाद दिए हैं, लेकिन बाकी किरदार बोर करने की हद तक बड़बड़ करते हैं। एक्शन दृश्यों में जॉन अब्राहम की गति और चपलता देखने लायक है। बाकी हिंदी फिल्मों के एक्शन हीरो की तरह वे दुश्मनों को मार कर भी खुश नजर नहीं आते। उनके लिए यह रेगुलर मशीनी काम है। नावोमी तक पहुंचने के लिए किसी भी प्रकार की हिंसा से उन्हें गुरेज नहीं है।
फिल्म में केविन परेरा की भूमिका में फिल्म के निर्देशक निशिकांत कामत ही हैं। उनके अभिनय और मैनरिज्म में पिछली सदी के आठवें-नौवें दशक के खलनायकों की झलक है। उनकी शैली में एक साथ कुलभूषण खरबंदा, अमरीश पुरी और अजीत की झलक मिलती है। यों बाकी फिल्म की पटकथा और संरचना भी पुरानी फिल्मों जैसी है। नतीजतन, एक्शन का नयापन पुरानी फिल्मों के फार्मेट में उभर कर नहीं आ पाता। फिर भी एक्शन, मारधाड़ और पर्दे पर खून-खराबे के शौकीन दर्शकों को यह फिल्म पसंद आएगी।
हर फिल्म में लव और इमोशन की चाहत रखनेवाले दर्शक इससे निराश हो सकते हैं। निशिकांत कामत ने एक नई कोशिश जरूर की है और उन्हें जॉन अब्राहम का बराबर सहयोग मिला है।
अवधि- 126 मिनट
abrahmatmaj@mbi.jagran.com