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Murder Mubarak Review: वेब सीरीज को बना दिया फिल्म... मुबारक हो कलाकारों की खिचड़ी!

Murder Mubarak नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गई है। यह कॉमेडी में लिपटी मर्डर मिस्ट्री थ्रिलर है। होमी अदजानिया की इस फिल्म में कई दिग्गज कलाकार हैं जिनमें पंकज त्रिपाठी डिम्पल कपाड़िया संजय कपूर और करिश्मा कपूर शामिल हैं। फिल्म में सारा अली खान भी मुख्य स्टार कास्ट का हिस्सा हैं। मगर इतनी शानदार स्टार कास्ट के बावजूद होमी की फिल्म असर पैदा करने में सफल नहीं रहती।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Published: Sat, 16 Mar 2024 12:14 PM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2024 12:14 PM (IST)
मर्डर मुबार नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम

प्रियंका सिंह, मुंबई। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज होने वाली फिल्मों को लेकर कलाकारों को बस यह तसल्ली रहती है कि इस पर बॉक्स ऑफिस के नंबर्स का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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अच्छा ही हुआ, जो मर्डर मुबारक फिल्म को नेटफ्लिक्स पर रिलीज किया गया, जहां दर्शकों को पास विकल्प है कि वह कहानी को रिवाइंड और फार्वर्ड करके देख सकें। नहीं, तो थिएटर में इस पेचीदा कहानी को समझना नामुमकिन था।

क्या है मर्डर मुबारक की कहानी?

फिल्म शुरू होती है दिल्ली के अमीरों के एक क्लब में होने वाली दिवाली तंबोला नाइट्स (एक प्रकार का खेल) से। क्लब के अध्यक्ष के चुनाव में खड़े होने वाले दोनों मेंबर्स रणविजय सिंह (संजय कपूर) और शहनाज नूरानी (करिश्मा कपूर) के साथ वहां बाकी मेंबर्स भी पहुंचते हैं।

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वहां पर क्लब का जुम्बा ट्रेनर लियो (आशिम गुलाटी) मृत पाया जाता है। एसीपी भवानी सिंह (पंकज त्रिपाठी) जांच के लिए पहुंचता है। वह बहुत जल्द इस नतीजे तक पहुंच जाता है कि यह एक्सीडेंट नहीं, बल्कि मर्डर है। क्लब का हर एक मेंबर शक के दायरे में है, क्योंकि लियो के पास हर किसी के राज छुपे थे। हर किसी के पास उसे मारने का कारण है। असली कातिल कौन है, यह बताना यहां सही नहीं होगा।

कैसा है मर्डर मुबारक का स्क्रीनप्ले?

फिल्म जब शुरू होती है और लगभग 12 मिनट तक केवल किरदारों से मिलवाया जाता है तो लगता है कि एक दिलचस्प कहानी देखने को मिलेगी, लेकिन किताब की इस कहानी को फिल्म में डालने का जो प्रयास लेखकों गजल धालीवाल और सुप्रोतिम सेनगुप्ता ने किया है, वही सबसे बड़ा जोखिम साबित होता है।

जब कहानी को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ही लाना था तो मेकर्स के पास इसे सीरीज में तब्दील करने का पूरा मौका था। शायद वहां छह-आठ एपिसोड में कहानी दिलचस्प बन जाती। उन किरदारों के साथ भी न्याय हो जाता, जिनका फिल्म में जिक्र भर है। फिल्म में किरदारों की खिचड़ी बन गई है।

नामों को याद रखने का दबाव सा बन जाता है। पुलिस की जांच का तरीका भी फिल्मी सा है। मर्डर मिस्ट्री वाली फिल्मों में बैकग्राउंड स्कोर बहुत अहम भूमिका निभाता है, लेकिन इस फिल्म में उसकी भारी कमी है। अमीरों की दुनिया की छोटी सी झलक मजेदार है, लेकिन वास्तविक नहीं लगती।

क्लब के प्रेसीडेंट का यह कहना कि यहां मर्डर अलाउड नहीं है, सुनकर लगता है कि मर्डर नहीं मजाक चल रहा है। क्लब के बाकी मेंबर्स आराम से बैठे हैं, जैसे उन्हें मर्डर देखने की आदत है। होमी अदजानिया चाहते तो कम किरादरों के बीच इस कहानी को दिलचस्प बना सकते थे।

कैसा है कलाकारों का अभिनय?

संजय कपूर, डिंपल कपाड़िया, करिश्मा कपूर जैसे अनुभवी सितारों से उनके अंदाज का काम होमी नहीं निकलवा पाए हैं। विजय वर्मा और पंकज त्रिपाठी के अभिनय में नयापन नहीं है। सारा अली खान के किरदार में कुछ परतें हैं, जिसे निभाने में वह कामयाब होती हैं।


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