Move to Jagran APP

फिल्म रिव्यू :यंगिस्तान (3 स्टार)

मुंबई(अजय ब्रह्मात्मज) प्रमुख कलाकार :नेहा शर्मा, बमन ईरानी और फारुख शेख। निर्देशक-सैय्यद अहमद अफजल। संगीतकार-अरिजित सिंह। स्टार-(3स्टार) नई सोच की प्रेम कहानी निर्माता वासु भगनानी और निर्देशक सैयद अफजल अहमद की 'यंगिस्तान' राजनीति और चुनाव के महीनों में राजनीतिक पृष्ठभूमि की फिल्म पेश की है। है यह भी एक प्र

By Edited By: Published: Fri, 28 Mar 2014 05:03 PM (IST)Updated: Fri, 28 Mar 2014 05:03 PM (IST)

मुंबई(अजय ब्रह्मात्मज)

loksabha election banner

प्रमुख कलाकार :नेहा शर्मा, बमन ईरानी और फारुख शेख।

निर्देशक-सैय्यद अहमद अफजल।

संगीतकार-अरिजित सिंह।

स्टार-(3स्टार)

नई सोच की प्रेम कहानी

निर्माता वासु भगनानी और निर्देशक सैयद अफजल अहमद की 'यंगिस्तान' राजनीति और चुनाव के महीनों में राजनीतिक पृष्ठभूमि की फिल्म पेश की है। है यह भी एक प्रेम कहानी, लेकिन इसका राजनीतिक और संदर्भ सरकारी प्रोटोकोल है। जब सामान्य नागरिक सरकारी प्रपंचों और औपचारिकताओं में फंसता है तो उसकी अपनी साधारण जिंदगी भी असामान्य हो जाती है।

देश के प्रधानमंत्री का बेटा अभिमन्यु कौल सुदूर जापान की राजधानी टोकियो में आईटी का तेज प्रोफेशनल है। वहां वह अपनी प्रेमिका के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहता है। वह पूरी मस्ती के साथ जी रहा है। एक सुबह अचानक उसे पता चलता है कि उसके पिता मृत्युशय्या पर हैं। अंतिम समय में वह पिता के करीब तो पहुंच जाता है, लेकिन अगले ही दिन उसे एक बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। पार्टी की तरफ से उसे पिता का पद संभालना पड़ता है। इस कार्यभार के साथ ही उसकी जिंदगी बदल जाती है। उसे नेताओं, अधिकारियों और जिम्मेदारियों के बीच रहना पड़ता है। वह अपनी सहचर प्रेमिका के साथ पहले की तरह मुक्त जीवन नहीं जी पाता।

जिम्मेदारी मिलने पर अभिमन्यु कौल स्थितियों के चक्रव्यूह में फंसने पर हारता नहीं है। वह अपने युवा अनुभव और सोच से देश की राजनीति को नई दिशा देता है। साथ ही दवाब में आने के बावजूद निजी जिंदगी में भावनाओं और प्रेमिका से समझौता नहीं करता। वह भरोसेमंद अधिकारी अकबर की मदद से नीतिगत तब्दीलियां लाता है।

निर्देशक सैयद अफजल अहमद ने सर्वथा नए विषय पर फिल्म सोची है। उन्होंने राजनीतिक पृष्ठभूमि की इस प्रेम कहानी के अंतर्विरोधों को रेखांकित किया है। हमें पता चलता है लकीर के फकीर बने सिस्टम की चूलें हिलने लगी हैं। पारंपरिक राजनीति की साजिश में अभिमन्यु नहीं घबराता। वह कमान अपने हाथों में ले लेता है और पिता के करीबियों को चौंकाता है। 'यंगिस्तान' देखते हुए इंदिरा गांधी-राजीव गांधी या राहुल गांधी की भी याद आ सकती है, लेकिन यह फिल्म अलग स्तर और आयाम की है।

'यंगिस्तान' फारुख शेख की आखिरी फिल्म है। उनकी सहजता दर्शनीय है। वे न केवल अभिमन्यु कौल के दाएं हाथ के रूप में फिल्म में मौजूद हैं, बल्कि फिल्म के लिए भी दायां हाथ बन जाते हैं। वे जैकी भगनानी के परफॉरमेंस में पूरी मदद करते हैं। यह फिल्म उनके लिए भी देखी जा सकती है। जैकी भगनानी ने अभिमन्यु कौल के जीवन में आए परिवर्तन और द्वंद्व को पकड़ने की कोशिश की है। उनका अभिनय परिष्कृत हुआ है। उनकी प्रेमिका के रूप में नेहा शर्मा के हिस्से में कुछ खास नहीं था। वह अपनी भूमिका निभा भर ले जाती हैं। फिल्म के सहयोगी किरदारों में अपरिचित कलाकार फिल्म का प्रभाव बढ़ाते हैं। उसके लिए फिल्म के कास्टिंग डायरेक्टर को बधाई दी जा सकती है।

'यंगिस्तान' नई सोच की ताजा फिल्म है। फिल्म की आंतरिक कमियां हैं, लेकिन यह प्रयास सुखद है कि फिल्म की जमीन नई है।

अवधि- 133 मिनट


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.