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फिल्म रिव्यू : आंखों देखी (3.5 स्टार)

मुंबई (अजय ब्रह्मात्मज)। प्रमुख कलाकार : संजय मिश्रा, रजत कपूर निर्देशक : रजत कपूर संगीतकार : सागर देसाई स्टार : साढ़े तीन स्टार दिल्ली-6 या किसी भी कस्बे, छोटे-मझोले शहर के मध्यवर्गीय परिवार में एक गुप्त कैमरा लगा दें और कुछ महीनों के बाद उसकी चुस्त एडीटिंग कर दें तो एक नई 'आंखें देखी' बन जाएगी। रजत कपूर

By Edited By: Published: Fri, 21 Mar 2014 05:40 PM (IST)Updated: Mon, 24 Mar 2014 04:59 PM (IST)
फिल्म रिव्यू : आंखों देखी (3.5 स्टार)

मुंबई (अजय ब्रह्मात्मज)।

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प्रमुख कलाकार : संजय मिश्रा, रजत कपूर

निर्देशक : रजत कपूर

संगीतकार : सागर देसाई

स्टार : साढ़े तीन स्टार

दिल्ली-6 या किसी भी कस्बे, छोटे-मझोले शहर के मध्यवर्गीय परिवार में एक गुप्त कैमरा लगा दें और कुछ महीनों के बाद उसकी चुस्त एडीटिंग कर दें तो एक नई 'आंखें देखी' बन जाएगी। रजत कपूर ने अपने गुरु मणि कौल और कुमार साहनी की तरह कैमरे का इस्तेमाल भरोसेमंद दोस्ट के तौर पर किया है। कोई हड़बड़ी नहीं है और न ही कोई तकनीकी चमत्कार दिखाना है। 'दिल्ली-6' की एक गली के पुराने मकान में कुछ घट रहा है, उसे एक तरतीब देने के साथ वे पेश कर देते हैं।

बाउजी अपने छोटे भाई के साथ रहते हें। दोनों भाइयों की बीवियों और बच्चों के इस भरे-पूरे परिवार में जिंदगी की खास गति है। न कोई जल्दबाजी है और न ही कोई होड़। कोहराम तब मचता है, जब बाउजी की बेटी को अज्जु से प्यार हो जाता है। परिवार की नाक बचाने के लिए पुलिस को साथ लेकर सभी अज्जु के ठिकाने पर धमकते हैं। साथ में बाउजी भी हैं। वहां उन्हें एहसास होता है कि सब लोग जिस अज्जु की बुराई और धुनाई कर रहे थे, उससे अधिक बुरे तो वे स्वयं हैं। उन्हें अपनी बेटी की पसंद अज्जु अच्छा लगता है।

इस एहसास और अनुभव के बाद वे फैसला करते हैं कि वे अब सिर्फ अपनी आंखों से देखी बातों पर ही यकीन करेंगे। यहां तक कि शेर की दहाड़ भी वे खुद सुनना चाहते हैं। इतना ही नहीं दुनिया की चख-चख से परेशान होकर वे मौन धारण कर लेते हैं। फिल्म के केंद्र में बाउजी हैं, लेकिन परिवार के अन्य सदस्य, नाते-रिश्तेदार और अड़ोसी-पड़ोसी भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। फिल्म किसी खास अंत या क्लाइमेक्स में खत्म नहीं होती। एक मोड़ पर आकर ठहरती है। उसके बाद भी बाउजी की जिंदगी बदस्तूर चलती रही होगी। दिल्ली-6 की गलियों में ठहाकों, ठुमकों और ठसक के बीच।

बाउजी के किरदार को संजय मिश्रा ने इतना सहज और आत्मीय कर दिया है कि किरदार और कलाकार एकमेक हो गए हैं। हिंदी फिल्मों में सालों बाद ऐसा स्वाभाविक अभिनय दिखाया है। बाउजी के चलने, उठने, बैठने, रूठने और मनाने में मध्यवर्गीय सरलता है। संजय मिश्रा ने बाउजी को आत्मसात कर लिया है। उनकी बीवी की भूमिका में सीमा पाहवा बराबर का साथ देती हैं। उनकी झुंझलाहट और प्यार में लगाव है। वह भी अभिनय नहीं करतीं। लेखक-निर्देशक रजत कपूर ने सभी किरदारों के लिए सटीक कलाकारों का चुनाव किया है। कोई भी कलाकार फिल्मी नहीं लगता। प्रसंग, घटनाएं और संवादों में भी फिल्मीपन नहीं है। स्वयं रजत कपूर बाउजी के छोटे भाई के रूप में निखर कर आते हैं। खुद का विस्तार करते हैं।

फिल्म में गीतों के बोल पर ध्यान दें तो कहानी गहराई से उद्घाटित होती है। वरुण ग्रोवर ने 'आंखों देखी' की प्रस्तुति की संगत में गीतों को फिल्मी नहीं होने दिया है। वे शब्दों में नई इमेज गढ़ते हैं।

[अवधि-105 मिनट]


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