फिल्म रिव्यू: 'लवशुदा', पुरानी बोतल में नई शराब (2.5 स्टार)
अगर इंसान दिल से खुश न हो तो उसका असर चेहरे पर झलकता है। वह जिससे प्यार करे, उसके साथ उसका खुश रहना जरूरी है। विज्ञापन की दुनिया से आए लेखक-निर्देशक वैभव मिश्रा ने लवशुदा में यही बात कहने की कोशिश की है।
स्मिता श्रीवास्तव
मुख्य कलाकार- गिरीश कुमार, नवनीत कौर ढिल्लन,
टिस्का चोपड़ा, नवीन कस्तूरिया
निर्देशक- वैभव मिश्रा
स्टार- ढाई स्टार
अगर इंसान दिल से खुश न हो तो उसका असर चेहरे पर झलकता है। वह जिससे प्यार करे, उसके साथ उसका खुश रहना जरूरी है। विज्ञापन की दुनिया से आए लेखक-निर्देशक वैभव मिश्रा ने लवशुदा में यही बात कहने की कोशिश की है। हालांकि यह कहानी पुरानी बोतल में नई शराब जैसी हो गई है। फिल्म में कोई टिपिकल विलेन नहीं हैं। मुख्य किरदार अपने द्वंद्व से लड़ रहा है।
कहानी गौरव मेहरा की जिंदगी है। उसकी बड़ी बहन गरिमा त्रेहान उसे लेकर बहुत प्रोटेक्टिव है। वह गौरव की जिंदगी के ज्यादातर फैसले खुद लेती है। यहां तककि गौरव की शादी भी वह खुद तय कर देती है। वही चीज आगे चलकर गौरव मेहरा की घुटन की वजह बनती है। बहरहाल गौरव की शादी की तैयारियां जोरों पर होती हैं। सगाई से पहले गौरव अपने दोस्तों साथ बैचलर पार्टी मनाने पब जाता है। नशे की हालत में उसकी मुलाकात एक अनजान लड़की पूजा से होती है। पूजा के साथ बिताए चंद पलों में ही वह अपनी मंगेतर के खिलाफ भड़ास निकालता है। अपनी दिली ख्वाहिशों को उससे साझा करता है। उसकी सादगी, सच्चाई और भावनाओं के आवेग में पूजा बह जाती है। शराब के नशे में दोनों हमबिस्तर हो जाते हैं।
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हिंदी फिल्मों की परिपाटी से तय हो जाता है कि ये मुलाकात मुहब्बत में तब्दील होगी। मुहब्बत में परिवार या दोस्त बाधा बनेंगे। हालांकि यह सोच सही साबित नहीं होती। बहन, समाज और दुविधा के चलते गौरव शादी कर लेता है। बेमन से की गई शादी टिकती नहीं। प्रेम और पारिवारिक दबाव से जुझते गौरव को फिर पूजा याद आती है। कहानी लंदन से शुरू होकर दिल्ली और शिमला में पहुंचती है। कहानी में पूजा के साथ अन्य किरदारों को भी जोड़ा गया है। वे कहानी के अंतिम हिस्से में आते हैं। फिल्म को रोचक बनाने के लिए लिए आवश्यक तत्वों का इस्तेमाल किया है। लंदन में भारतीय शादी की शानो-शौकत, रीति रिवाज और परिधान अपनेपन का अहसास कराते हैं। कहीं-कहीं संवाद सादगी से गहराई वाली बात कह जाते हैं।
कॉमेडी की भी खुराक है। निर्देशक ने हीरो और हीरोइन की जिंदगी में शादी से ठीक पहले कुछ घटनाक्रम एक समान दिखाया है। कहीं-कहीं लगता है कि फिल्म के प्रवाह को जबरन भी मोड़ा गया है। इंटरवल के बाद हीरो हीरोइन का अचानक मिलना टिपिकल हिंदी फिल्मों की तरह है। वहां से आगे की कहानी के कयास लगने लगते हैं। हीरोइन का हीरो से अपनी जिंदगी से दूर जाने के लिए कहना, नायक का उसे मनाने के लिए हर हद पार कर जाना पुराना फार्मूला है। वहां पर कहानी थोड़ा बोझिल लगने लगती है।
कलाकारों में पूर्व मिस इंडिया नवनीत कौर ढिल्लन का डेब्यू फिल्म है। वह पूजा की भूमिका में हैं। उनकी मुस्कान दिलकश है। उनके अभिनय में सादगी और ताजगी है। डांस हिंदी फिल्मों की जरूरत है। उसमें नवनीत खरी उतरी हैं। हां, भावनात्मक दृश्यों में उन्हें मेहनत करने की जरूरत है। गौरव बने गिरीश कुमार के अभिनय में निखार है। उन्होंने डांस में भी काफी मेहनत की है। कहीं-कहीं उनके चेहरे पर भाव पूरी तरह उभर नहीं पाए हैं। बहन की भूमिका में टिस्का चोपड़ा का अभिनय सराहनीय है। पूजा के पिता की भूमिका में सचिन खेड़ेकर की प्रतिभा का समुचित इस्तेमाल नहीं हुआ है। उनका किरदार थोड़ा उभारने की जरूरत थी। दोस्तों की भूमिका में नवीन स्तूरिया, सावंत सिंह प्रेमी अपना प्रभाव छोडऩे में कामयाब रहे हैं। एक्शन के ख्वाहिशमंदों को उसकी कमी इसमें खल सकती है। संगीतकार परिचय के संगीत में मधुरता है। कुछ गाने पहले से पॉपुलर हैं। सिनेमेटोग्राफी भी खूबसूरत है।
अवधि- 131 मिनट