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निभाए हैं अलग मिजाज के किरदार :रोनित रॉय

मुंबई। छोटे और बड़े पर्दे पर बीते दो दशकों से सक्रिय हैं रोनित रॉय।

By Edited By: Published: Thu, 03 Jul 2014 12:23 PM (IST)Updated: Thu, 03 Jul 2014 03:15 PM (IST)
निभाए हैं अलग  मिजाज के किरदार :रोनित रॉय

मुंबई। छोटे और बड़े पर्दे पर बीते दो दशकों से सक्रिय हैं रोनित रॉय। पिछले दिनों आयी फिल्म 'बॉस' में वे मेन विलेन थे। फिर आई '2 स्टेट्स'। वहां एक सख्त, मगर फैमिली मैन के तौर पर वे दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहे। अब वे अनुराग कश्यप की 'अग्ली' में आ रहे हैं। वे एक मर्तबा फिर इंस्पेक्टर की भूमिका में हैं। कान फिल्म फेस्टिवल में जलवे बिखरने के बाद जागरण फिल्म फेस्टिवल की यह ओपनिंग फिल्म रही। रोनित से बातचीत के अंश:

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फिल्म फेस्टिवल में फिल्में दिखाई जाने से कितना फायदा होता है?

काफी फायदा होता है। फिल्मों के लिए नए दरवाजे खुलते हैं। 'फिल्मिस्तान' नवीनतम उदाहरण है। 'अग्ली' को कान से फायदा मिला। गुनीत मोंगा की फिल्मों को नया मार्केट मिला। आनंद गांधी की 'शिप ऑफ थीसियस' को फेस्टिवल के बाद ही वितरकों ने सपोर्ट किया। 'तितली' जैसी फिल्म के सपोर्ट में यशराज फिल्म्स आ गए। जागरण फिल्म फेस्टिवल हिंदुस्तान के छोटे और दूर-दराज के शहरों में आयोजित होता है। वहां अच्छी फिल्में दिखा कर उनके फिल्मों के टेस्ट को बेहतर बनाया जा सकता है।

'अग्ली' में हमें आपका कौन सा रूप देखने को मिलेगा?

यह थ्रिलर फिल्म है। एक एक्टर की बेटी किडनैप हो जाती है। क्यों होती है, कौन कसूरवार है, मामला सिर्फ

किडनैप भर का ही है या कुछ और....उन सबके तार किस कदर इमोशन से जुड़े हुए हैं, फिल्म उस बारे में है। मैं एसीपी शौमित बोस का रोल प्ले कर रहा हूं। वह मुझसे और 'बॉस' में निभाए गए इंस्पेक्टर से बिल्कुल अलग है। वह ग्रे शेड लिए हुए है। फिल्म सायकोलॉजिकल थ्रिलर है।

सायकोलॉजिकल थ्रिलर जॉनर की फिल्मों में सस्पेंस के एलिमेंट की भी गुंजाइश रहती है?

सही कहा आपने। उसका नजारा हमें 'भूल भुलैया' और 'कार्तिक कॉलिंग कार्तिक' में देखने को मिला। 'भूल भुलैया' में कॉमेडी और हॉरर का डोज था, जबकि 'कार्तिक कॉलिंग कार्तिक' में अंत तक सस्पेंस बना रहा कि फरहान अख्तर के किरदार को कौन कॉल करता है। रोचक बात यह है कि सायकोलॉजिकल जॉनर की फिल्मों का अंत भी लॉजिकल होता है।

'उड़ान' के बाद से आपको सख्त पिता या अधिकारी के ही रोल ऑफर हो रहे हैं। कहीं टाइपकास्ट का तो मामला नहीं बन रहा?

गहरे भावों वाले रोल करने का अर्थ यह नहीं होता है कि आप टाइप कास्ट हो रहे हैं। सख्त पिता के किरदार मैंने सिर्फ 'उड़ान' और '2 स्टेट्स' में ही निभाए हैं। उनसे इतर 'बॉस', 'शूटआउट एट वडाला', 'स्टूडेंट ऑफ द ईयर' में मेरा किरदार अलग-अलग शेड का था।

अनुराग कश्यप के संग आगे भी फिल्में करते रहेंगे?

अनुराग के संग बड़ी घनिष्ठ मित्रता है। वे जब कभी कोई प्रोजेक्ट मुझे ऑफर करेंगे, उसे ना करने का तो कोई सवाल ही नहीं होगा।

'अग्ली' के सिगरेट वाले सीन में डिसक्लेमर को लेकर विवाद जारी है। हालांकि फिल्म की रिलीज की घोषणा हो चुकी है। यानी डिसक्लेमर के साथ फिल्म रिलीज होगी?

इसका जवाब तो अनुराग ही देंगे, लेकिन जहां तक मेरा मानना है अनुराग अपनी लड़ाई आगे भी जारी रखेंगे। वे गलत नहीं हैं। आर्ट को नियमों के दायरे में बांधकर उसका भला नहीं हो सकता।

(अमित कर्ण)


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