जिंगल बनते जा रहे हैं गीत: प्रसून
गीतकार प्रसून जोशी कहते हैं कि आजकल गीत विज्ञापन के जिंगल बनते जा रहे हैं। उनका मानना है कि उनका सामना भटकी हुई पीढ़ी से हो रहा है जो गाने पर थोड़े समय के लिए ध्यान देती है और उसमें हमेशा रोमांच ढूंढती रहती है।
नई दिल्ली। गीतकार प्रसून जोशी कहते हैं कि आजकल गीत विज्ञापन के जिंगल बनते जा रहे हैं। उनका मानना है कि उनका सामना भटकी हुई पीढ़ी से हो रहा है जो गाने पर थोड़े समय के लिए ध्यान देती है और उसमें हमेशा रोमांच ढूंढती रहती है।
फिल्म रंग दे बसंती, तारे जमीन पर के लिए गीत लिख चुके प्रसून ने कहा, ्रमुझे लगता है कि हम एक भटकी हुई पीढ़ी के लिए काम कर रहे हैं। यह विज्ञापन के जैसा बनता जा रहा है। विज्ञापन के जिंगल में एक रोमांच है जिसे लोग पसंद करते हैं। समस्याओं का जिक्र करते हुए प्रसून ने कहा कि पहले दो पंक्तियों पर बहुत ध्यान दिया जाता है। उन्होंने कहा, लोग एक पंक्ति गाएंगे और उन्हें यह पता नहीं होता कि अगली पंक्ति क्या है। शायद गाना अगले अंतरे में आपसे कुछ कहने की कोशिश कर रहा हो।
प्रसून का कहना है कि वह गाने को उसके विषय के अनुरूप लिखते हैं और एक गीतकार होने के नाते वह लोगों के दिलों में लंबे समय तक रहना चाहते हैं। वह मानते हैं कि वह बहुत भाग्यशाली हैं कि उन्होंने उन लोगों के साथ काम किया जो उनके गीत के विषय को पूरा सुनते हैं। उनका कहना है कि वह अपने गाने के साथ पूरा न्याय करते हैं। गाने में रोमांच ढूंढने की बात पर प्रसून कहते हैं कि गाना कोई शराब या इंजेक्शन नहीं जो इसमें रोमांच ढूंढा जाए। वह ऐसे गीत नहीं लिखना चाहते। प्रसून मानते हैं कि जिस तरह से गानों की पसंद में बदलाव आ रहा है उसने लेखक, संगीतकार के ऊपर दबाव बढ़ा दिया है। लेखक को मिलने वाले श्रेय पर उनका कहना है कि यह बहुत ही पेचीदा विषय है। वह मानते हैं कि लेखकों के आर्थिक लाभ और पहचान किए कुछ और किए जाने की जरूरत है।
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