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    किंग ऑफ रोमांस: विश्वजीत चटर्जी

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    Updated: Thu, 01 Dec 2011 12:33 AM (IST)

    जन्मस्थान- कोलकाता

    स्वाभाविक अभिनय और आकर्षक व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध विश्वजीत देब चटर्जी ने बंगाली फिल्मों और हिंदी फिल्मों के दर्शकों के दिलों में वर्षो तक राज किया है। कोलकाता में पले-बढ़े विश्वजीत के अभिनय के सफर की शुरूआत बंगाली फिल्मों से हुई। माया मृग और दुई भाई जैसी सफल बंगाली फिल्मों में अभिनय के बाद विश्वजीत ने हिंदी फिल्मों का रूख किया। वे कोलकाता से मुंबई आए। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने बंगाली फिल्मों के इस सफल अभिनेता को सिर-आंखों पर बिठाया। परिणामस्वरूप बेहद कम वक्तमें विश्वजीत की झोली हिंदी फिल्मों से भर गयी। 1962 में विश्वजीत की पहली हिंदी फिल्म बीस साल बाद प्रदर्शित हुई जिसने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के नए सोपान बनाए। देखते-ही-देखते विश्वजीत हिंदी फिल्मों के तेजी से उभरते हुए अभिनेता बन गए। विश्वजीत के चाहने वालों ने उन्हें किंग ऑफ रोमांस की उपाधि दी। विश्वजीत पर फिल्माए गए गीतों की लोकप्रियता ने उनके फिल्मी कॅरिअर में चार-चांद लगाए। फिल्म निर्माता-निर्देशकों ने उन पर विश्वास करना शुरू कर दिया। बीस साल बाद के बाद विश्वजीत ने कई यादगार फिल्मों में नायक की भूमिकाएं निभायी जिनमें मेरे सनम, शहनाई, अप्रैल फूल, दो कलियां और शरारत उल्लेखनीय है। विश्वजीत को उस समय की लगभग सभी हीरोइनों के साथ अभिनय का अवसर मिला। विशेषकर आशा पारेख, मुमताज, माला सिन्हा और राजश्री केसाथ उनकी रोमांटिक जोड़ी बेहद पसंद की गई।

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    हिंदी फिल्मों में मिली स्वीकार्यता के बाद भी विश्वजीत ने बंगाली फिल्मों में अभिनय करना नहीं छोड़ा। वे कोलकाता जाते रहे और चुनींदा बंगाली फिल्मों में अभिनय करते रहे जिनमें सुपरहिट फिल्म चौरंगी उल्लेखनीय है। अभिनय के अनुभव के बाद विश्वजीत ने अपनी रचनात्मकता का रूख फिल्म निर्देशन की तरफ किया। 1975 में प्रदर्शित फिल्म कहते हैं मुझको राजा के निर्माण और निर्देशन दोनों की जिम्मेदारी विश्वजीत ने संभाली। धर्मेद्र, हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा और रेखा अभिनीत इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिजनेस किया। स्वयं को सक्षम निर्देशक साबित करने के बाद विश्वजीत ने एक बार फिर अभिनय का रूख कर लिया। वे हिंदी फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएं निभाते रहें।

    अपनी आकर्षक छवि से दर्शकों को दीवाना बनाने वाले विश्वजीत का दामन विवादों से अछूता नहीं रहा। वे तब अचानक सुर्खियों में छा गए थे जब रेखा के साथ उनके चुंबन दृश्य की तस्वीरें एक पत्रिका में प्रकाशित हुई। दरअसल, दो शिकारी में विश्वजीत और रेखा के बीच चुंबन दृश्य फिल्माया जाना था। निर्देशक इस दृश्य की शूटिंग के दौरान कट कहना भूल गए। रेखा और विश्वजीत चुंबन के दृश्य में इतने मशगूल हो गए कि उन्हें यह भी अहसास नहीं हुआ कि पूरी यूनिट उन्हें देख रही है। यूनिट के सभी सदस्य जब तालियां बजाने लगे तब जाकर रेखा और विश्वजीत सावधान हुए। इसी चुंबन दृश्य की तस्वीर एक पत्रिका ने प्रकाशित कर दी जिसके कारण फिल्मी गलियारे में रेखा और विश्वजीत के बीच कथित रोमांस की चर्चा होने लगी। हालांकि, यह विवाद ज्यादा दिनों तक नहीं चला।

    सिल्वर स्क्रीन के किंग ऑफ रोमांस कहे जाने वाले विश्वजीत का निजी जीवन कई उतार-चढ़ाव से गुजरा है। उन्होंने दो शादियां की। पहली पत्नी रत्ना चटर्जी से अलग होकर उन्होंने दूसरी शादी रचायी। जब विश्वजीत ने दूसरी शादी रचायी थी तब उनके पुत्र प्रसेनजीत और पुत्री पल्लवी चटर्जी की उम्र बेहद कम थी। उल्लेखनीय है कि पिता से मिली अभिनय की विरासत को प्रसेनजीत आगे ले जा रहे हैं। वे पिछले एक दशक से बंगाली फिल्मों के सुपरस्टार की कुर्सी पर विराजमान हैं। हालांकि, पहली पत्नी रत्ना चटर्जी से अलगाव के बाद विश्वजीत के अपने पुत्र प्रसेनजीत के साथ संबंध मधुर नहीं रहे हैं। यही कारण है कि बंगाली फिल्मों के प्रशंसक पिता-पुत्र की इस जोड़ी को साथ-साथ पर्दे पर देखने से वंचित रहे हैं। गौरतलब है कि इस समय विश्वजीत मुंबई में अपनी दूसरी पत्नी और बिटिया सांभवी के साथ रह रहे हैं।

    हिंदी फिल्मों में विश्वजीत का सफर बेहद नपा-तुला रहा। सफलता का शिखर तो वे नहीं छू पाए,पर वे दर्शकों के दुलारे अभिनेता जरूर बने रहे। उनके व्यक्तित्व का आकर्षण और उनकी आंखों की गहराई ने कई वर्षो तक दर्शकों के दिल के तारों को झंकृत किया है।

    कॅरिअर की मुख्य फिल्में

    वर्ष-फिल्म-चरित्र 1962- बीस साल बाद-कुमार विजय सिंह

    1962- सॉरी मैडम

    1963- बिन बादल बरसात-प्रभात

    1964- शहनाई

    1964- कोहरा- राजा अमित कुमार सिंह

    1964- कैसे कहूं

    1964- अप्रैल फूल- अशोक

    1965- मेरे सनम-कुमार

    1965- दो दिल- मनु

    1966- ये रात फिर ना आएगी- सूरज

    1966- सगाई- राजेश

    1966- बीवी और मकान- अरूण

    1966- आसरा- अमर कुमार

    1967- नाइट इन लंदन- जीवन

    1967- नई रोशनी- प्रकाश

    1967- जाल- इंस्पेक्टर शंकर

    1967- हरे कांच की चूडि़यां

    1967- घर का चिराग

    1968- वासना

    1968- किस्मत

    1968- कहीं दिन कहीं रात

    1968- दो कलियां

    1969- तमन्ना

    1969- राहगीर

    1969- प्यार का सपना

    1970- परदेसी

    1970- इश्क पर जोर नहीं- अमर

    1970- मैं सुंदर हूं- अमर

    1972- शरारत- हैरी

    1973- श्रीमान पृथ्वीराज

    1973- मेहमान- राजेश

    1974- दो आंखें

    1974- फिर कब मिलोगी

    1975- कहते हैं मुझको राजा (निर्देशक-निर्माता)

    1976- बजरंगबली- भगवान श्रीराम

    1977- नामी चोर

    1977- बाबा तारकनाथ- साइंटिस्ट

    1979- दो शिकारी- रंजीत

    1980- हमकदम-मिस्टर दत्त

    1984- आनंद और आनंद- ठाकुर

    1985- साहेब

    1986- कृष्णा कृष्णा- भगवान श्री कृष्ण

    1986- अल्ला रक्खा- इंस्पेक्टर अनवर

    1990- जिम्मेदार- चीफ इंस्पेक्टर

    1991- जिगरवाला- रंजीत सिंह

    1991- कौन करे कुर्बानी

    1992- महबूब मेरे महबूब

    2002- ईट का जवाब पत्थर- देवेन

    -सौम्या अपराजिता

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