विधानसभा चुनाव 2017: चुनावी समर में रंग दिखाए गिरगिट को भी शर्म आए
दलबदल पर रोक कैसे लगे, इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि यह चुनाव सुधार के बिना संभव नहीं।
अवधेश माहेश्वरी, आगरा। गिरगिट के लिए रंग बदलना कला है, यह उसके बचाव का साधन भी है। राजनीति में यह कला तेजी से फैली है। चुनाव जीतकर जनता के लिए सब कुछ 'हसीन' बनाने के वादे कर रहे नेता तेजी से रंग बदल रहे हैं। एक पार्टी ने टिकट नहीं दिया, तो निष्ठा की डोली उठ गई। जो कल तक आराध्य थे, उनके लिए अब लबों पर गालियां हैं। हालत यह हो चुकी है कि नैतिकता, निष्ठा और नित्यता को कहीं छुपने को ठौर नहीं रहा।
विधानसभा चुनाव का समय है तो नेता भी गिरगिट की तरह रंग बदल रहे हैं। मंडल में देखें, तो आगरा जिले की विधानसभा सीटों पर निष्ठा बदलने वालों की सबसे लंबी फौज यहीं है। एत्मादपुर के प्रेम सिंह बघेल का मामला सबसे रोचक है। पिछला चुनाव समाजवादी पार्टी से लड़े और फिर प्रत्याशी थे। अखिलेश यादव ने अचानक उनका टिकट काट दिया, तो रालोद की सूची में उनका नाम आ गया। कुछ ही घंटे में उनका हैरतभरा बयान आया कि उन्होंने तो हैंडपंप कभी चाहा ही नहीं। ऐसे में रालोद को स्वप्न तो आ नहीं रहा होगा। आखिर अपमान का घूंट पीने वाले रालोद ने उनका दिया बायोडाटा सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। यहां तक कह दिया कि उन्होंने दिल्ली के रालोद दफ्तर पर कई दिन जूते घिसे थे, तब टिकट दिया था।
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खेरागढ़ से कांग्रेस नेता केशव दीक्षित की पत्नी लता दीक्षित को टिकट मिला है। यदि केशव का रिकॉर्ड देखा जाए, तो वे सपा छोड़ सारे दलों की परिक्रमा कर चुके हैं। बड़े दूध कारोबारी ने राजनीतिक पारी बसपा से लोकसभा चुनाव लड़कर शुरू की थी। बाद में वाया रालोद, भाजपा में पहुंचे। कमल से भी खेरागढ़ विस चुनाव लड़े। अब वहां से टिकट न मिला, तो कांग्रेस में शामिल होकर पत्नी के लिए टिकट हासिल कर लिया। खेरागढ़ से रालोद प्रत्याशी अमर सिंह परमार पहले भाजपा से टिकट मांग रहे थे, लेकिन असफल रहे तो तुरंत पाला बदल लिया। उनकी निष्ठा पहले भी खूब बदलती रही है। आगरा उत्तर से भाजपा से पहले सपा में प्रवेश कर टिकट पाने वाली कुंदनिका शर्मा का टिकट कटा, तो वह भी निर्दलीय मैदान में आ गईं।
आगरा ग्रामीण पर सपा से भाजपा में आने वाली हेमलता दिवाकर और जितेंद्र वर्मा दोनों पार्टी के चुनावी लड़ाके हो गए। फतेहाबाद से भाजपा के एक और दावेदार छोटेलाल की निष्ठा की कहानी से तो भाजपा भी अनजान नहीं थी, लेकिन फिर भी ले लिया। अब वह टिकट न मिलने से नाराज हैं। पहले भी वह विधायक होते हुए एक पैर बसपा में तकनीकी दिक्कत से फंसाए रहे, तो दूसरा पैर सपा में रहा।
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भाजपा की बाह की कहानी अलग नहीं है। कभी भाजपा से सपा में पहुंचे राजघराने के अरिदमन सिंह और उनकी पत्नी पक्षालिका सिंह दोनों को साइकिल की सवारी मिल गई, इसके बाद भी वह भाजपा के कमल को ताड़ते रहे। आखिर पक्षालिका सिंह बाह से कमल थामकर जीत का अमृत चखने को वोट मांग रही हैं। फतेहपुर सीकरी से भाजपा प्रत्याशी उदयभान सिंह बने, तो एक अन्य दावेदार राजकुमार चाहर पार्टी में तो बने हुए हैं, लेकिन अपना दम भी दिखा रहे हैं।
मथुरा में पिछले चुनाव में टिकट न मिलने पर अशोक अग्रवाल ने भाजपा का साथ छोड़ा था। वह जीत के आंकड़े से कुछ दूर रह गए थे। गठबंधन में कांग्रेस के हाथ सीट जाते ही उन्होंने रालोद के साथ पींगें बढ़ाने में देरी नहीं की। छाता में हैंडपंप थामने वाले ऋषिराज भाजपा टिकट के प्रमुख दावेदार थे।
इसी सीट पर सपा से अतुल सिसौदिया पहले बसपा से चुनाव लड़ने वाले थे, लेकिन टिकट कटा तो अब सपा से लड़ेंगे। मांट में जगदीश नौहवार सपा के थे, लेकिन गठबंधन में सीट गई, तो कांग्रेस से आ गए। बलदेव में रालोद विधायक पूरन प्रकाश ने भाजपा में कदम रखा और टिकट पा गए।
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मैनपुरी के करहल में रमा शाक्य ने बसपा से पिछला चुनाव लड़ा और दो माह पहले ही भाजपा में कदम रखा था। अब वह कमल चिह्न ले चुकी हैं। भोगांव में बसपा से पिछला चुनाव लड़ने वाले राहुल राठौर भी हाल में पार्टी में आकर टिकट पा गए। भाजपा में किशनी से टिकट के लिए पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष आशू दिवाकर और करहल के नगर पंचायत अध्यक्ष संजीव यादव भी आए। दोनों टिकट के दावेदार रहे।
फीरोजाबाद में टूंडला से भाजपा के टिकट पर विधायक रह चुके शिव सिंह चक को कमल न मिला, तो 24 घंटे के अंदर सपा की साइकिल पर चढ़ गए। यहां जसराना विधायक रामवीर सिंह का सपा से टिकट कटा, तो पार्टी की जगह निर्दलीय लड़ रहे हैं।’
कैसे रुके
दलबदल पर रोक कैसे लगे, इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि यह चुनाव सुधार के बिना संभव नहीं। सिविल सोसायटी के आंदोलन इसके लिए हुए हैं, लेकिन सत्ता के हित इस तरह के हैं कि इनके प्रभाव को असरहीन कर दिया।
दलबदल बढ़ने की वजह
दलबदल की बीमारी बढ़ने की वजह पर सेंट जोंस कॉलेज में राजनीति विज्ञान की असिस्टेंट प्रोफेसर विन्नी जैन कहती हैं कि देश में किसी दल या व्यक्ति के पास भविष्य का विजन नहीं है, जिसके आधार पर वोट मांगे जाएं। दल सिर्फ सत्ता पर काबिज होने के लिए लड़ते हैं। सत्ता अधिकार के बेजा इस्तेमाल और धन कमाने का साधन बन गई है। इसलिए हर कोई किसी भी दल से जीतने के लिए भागता है।
एटा-कासगंज में भी यही हाल
एटा के अलीगंज में बसपा से पहले निकाले गए अवधपाल सिंह ने पिछले सप्ताह ही निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी, परंतु अचानक बहनजी पिघल गईं। अब वह हाथी पर सवार होंगे। एटा से विधायक आशीष यादव उर्फ आशू का मुलायम सिंह की सूची में टिकट था। सपा की रार में रामगोपाल के लिए तीखी भाषा बोल गए। अब निर्दलीय पर्चा भरेंगे। कासगंज के पटियाली में श्यामसुंदर गुप्ता भाजपा का टिकट मांग रहे थे, लेकिन अब महान दल से टिकट पा गए हैं। वह 2012 में भी भाजपा के बागी होकर महान दल से चुनाव लड़े थे।
पटियाली से भाजपा से टिकट पाए विधायक ममतेश शाक्य भी दिसंबर में बसपा छोड़कर आए थे। अमांपुर में ही मुलायम सिंह की सपा की सूची में राहुल पांडेय का टिकट था। अखिलेश ने टिकट काटा, तो अब महान दल में आ गए।