अमरिंदर ने सेना से तय किया पंजाब के कैप्टन तक का सफर
कैप्टन अमरिंदर ने दूसरी बार आज पंजाब के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इससे पहले कैप्टन 2002 से 2007 तक पंजाब के सीएम रहे।
जेएनएन, चंडीगढ़। कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब की राजनीति में स्तंभ माने जाते हैैं। पंजाब में वर्तमान में दो ही नेता ऐसे हैैं जो जनमानस से जुड़े हैैं। इनमें एक प्रकाश सिंह बादल व दूसरे कैप्टन अमरिंदर सिंह हैैं।
11 मार्च 1942 को पटियाला राजघराने में जन्मे कैप्टन अमरिंदर ने आज दूसरी बार पंजाब के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। कैप्टन के नेतृत्व में कांग्रेस ने एतिहासिक जीत हासिल की है। इससे पहले वह 26 फरवरी 2002 से 1 मार्च 2007 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे।
कैप्टन अमरिंदर सिंह के शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे राहुल गांधी।
राजनीति में कदम रखने से पहले कैप्टन भारतीय सेना में थे। उन्होंने 1963 में सेना ज्वाइन की और 1965 में सेना छोड़ी। हालांकि बाद में पाकिस्तान से युद्ध छिड़ जाने की संभावनाओं के चलते वे फिर से 1966 की शुरुआत में सेना में शामिल हुई और फिर युद्ध समाप्ति के बाद उन्होंने सेना छोड़ दी।
देखें तस्वीरें: कैप्टन अमरिंदर सिंह ने संभाली पंजाब की कमान
कैप्टन ने पहली बार 1980 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 1984 में में उन्होंने कां्रग्रेस छोड़ अकाली दल का दामन थामा। अकाली दल के प्रत्याशी के रुप में राज्यसभा का चुनाव जीते। कैप्टन पंजाब के कृषि और वन मंत्री भी रहे। बाद में फिर कैप्टन कां्रग्रेस में शामिल हो गए। वह 1999 से 2002 तक पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष रहे। 2002 से 2007 तक वह पंजाब के मुख्यमंत्री रहे।
मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण के बाद बैठे अमरिंदर सिंह।
कैप्टन की पत्नी परनीत कौर भी कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हैैं। वह विदेश राज्य मंत्री रह चुकी हैैं। कैप्टन सिंह एक अच्छे लेखक भी हैं। उन्होंने अंग्रेजी में दो किताबें लिखी हैं।
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कैप्टन का प्रोफाइल
नाम : कैप्टन अमरिंदर सिंह
पिता : पटियाला के महाराज यादविंदर सिंह
माता : मोहिंदर कौर
पत्नी : परनीत कौर
बच्चे : बेटा रणिंदर सिंह व बेटी जय इंदर कौर
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देखें तस्वीरें: नवजोत सिंह सिद्धू का क्रिकेट से मंत्री पद तक का सफर
कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ ब्रह्म मोहिंदरा, नवजाेत सिंह सिद्धू, मनप्रीत सिंह बादल, तृप्त राजिंदर बाजवा, राणा गुरजीत और चरणजीत सिंह चन्नी ने भी मंत्री पद की शपथ ली है। दो महिला विधायकों अरुणा चौधरी और रजिया सुल्ताना ने राज्यमंत्री के रूप में शपथ ली है।
ब्रह्म मोहिंदरा 70 वर्षीय
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद कांग्र्रेस विधायकों में सबसे सीनियर विधायक हैं। पटियाला देहाती से छठी बार चुनाव जीत कर विधान सभा पहुंचे। शांत व कम बोलने वाले कांग्र्रेस के हिंदू चेहरा मोहिंदरा पहली बार 1980 में पटियाला शहरी से चुनाव जीत कर विधान सभा पहुंचे। उसके बाद इसी सीट से 1985 और 1992 का चुनाव जीते। 1997 और 2002 का चुनाव हार गए। 2007 में समाना और 2012 व 2017 में पटियाला देहाती से जीते।
नवजोत सिंह सिद्धू 53 वर्षीय
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर खेले। कमेंट्री के क्षेत्र में कामयाबी पाई। आजकल लाफ्टर शो में जज की भूमिका निभा रहे हैं। 2002 में भाजपा की टिकट पर लोक सभा का चुनाव जीते। चार बार सांसद रहे। 2016 में भाजपा ने उन्हें राज्य सभा में भेजा लेकिन इस्तीफा देकर भाजपा छोड़ दी। आम आदमी पार्टी के साथ लंबी बातचीत चली लेकिन बाद में कांग्र्रेस ज्वाइन किया और पहला विधान सभा चुनाव अपनी पत्नी की सीट अमृतसर ईस्ट से लड़े और जीते।
मनप्रीत बादल 53 वर्षीय
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत बादल 1995 में पहली बार गिद्दड़बाहा से उप चुनाव जीत कर विधान सभा पहुंचे। उसके बाद 1997, 2002 और 2007 में जीत की हैट्रिक लगाई। 2007 से 2010 तक अकाली-भाजपा सरकार में वित्तमंत्री रहे। बाद में अकाली दल से इस्तीफा देकर अपनी पार्टी पीपीपी बनाई और 2012 का चुनाव लड़े। चुनाव में पीपीपी की करारी हार हुई। मनप्रीत 2014 के लोक सभा चुनाव में कांग्र्रेस के सिंबल पर बठिंडा लोक सभा सीट से लड़े लेकिन इस बार भी हार गए। 2017 में वह बठिंडा शहरी सीट से जीते।
साधू सिंह धर्मसोत 56 वर्षीय
दलित बिरादरी से आने वाले साधू सिंह धर्मसोत 1992 में पहली बार अमलोह (सुरक्षित) सीट से चुनाव जीत कर विधान सभा पहुंचे। 1997 का चुनाव तो हार गए लेकिन उसके बाद कोई भी विधान सभा चुनाव नहीं हारे। लगातार चार बार विधान सभा चुनाव जीते। 2012 में डी-लिमिटेशन के बाद अमलोह सीट जनरल हो गई तो नाभा से चुनाव लड़े। 2014 का लोक सभा चुनाव लड़े थे लेकिन हार गए।
तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा 73 वर्षीय
माझा एक्सप्रेस के नाम से जाने वाले वाले तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा छह विधान सभा चुनाव लड़े और चार जीते। 1992 में कादियां सीट से जीत कर पहली बार विधान सभा पहुंचे। लेकिन 1997 में अगला ही चुनाव हार गए। 2002 में जीते तो 2007 में हार गए। 2012 व 2017 में फतेहगढ़ चूंडिय़ा से चुनाव लड़े और जीते। तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा लगातार कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ जुड़े रहे।
चरणजीत सिंह चन्नी 53 वर्षीय
दलित समुदाय से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी भले ही भले ही कांग्र्रेस की टिकट पर दूसरी बार जीते। लेकिन वह तीन बार चुनाव जीत चुके हैं। 2007 में चमकौर साहिब से आजाद प्रत्याशी के रूप में जीत कर उन्होंने विधान सभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। कांग्र्रेस में शामिल होकर वह 2012 में जीते। 14वीं विधान सभा में चन्नी ने कांग्र्रेस में अपनी जोरदार पैठ बनाई। सरकार को कई मौकों पर घेरा। राहुल गांधी से करीबी बनी। जिसके कारण कांग्र्रेस ने उन्हें बाद में कांग्र्रेस विधायक दल का नेता चुना।
अरुणा चौधरी 60 वर्षीय
दलित समुदाय से आने वाली अरुणा चौधरी विधान सभा में लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती रही हैं। सरकार को घेरने में भी कोई कसर नहीं रखती थी। चार बार चुनाव लड़ी। जिसमें से तीन बार जीत हासिल की। दीनानगर विधान सभा सीट से 2002 में पहली कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार के दौरान विधायक बन कर विधान सभा पहुंची। 2007 में हारी उसके बाद लगातार तीसरी बार चुनाव जीत कर विधान सभा पहुंची।
रजिया सुल्ताना 50 वर्षीय
अल्पसंख्यक वर्ग की रजिया सुल्ताना ने अपने राजनीतिक कैरियर में चार चुनाव लड़े और तीन जीते। कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी आईपीएस अधिकारी मोहम्मद मुस्तफा की पत्नी रजिया सुल्ताना मलेरकोटला से चुनाव लड़ती हैं। 2002 में पहली बार चुनाव जीत कर विधान सभा पहुुंची थी। 2007 में तो जीती लेकिन 2012 में हार गई थी। एक बार फिर चुनाव जीत कर वह विधान सभा पहुंची।
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