Delhi Election 2020: जब कांग्रेस का चुनाव चिन्ह नहीं था 'हाथ', दीपक से होती थी जनसंघ की पहचान
1952 में दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे। इस चुनाव में कांग्रेस दो बैलों की जोड़ी के निशान के साथ मैदान में उतरी थी।
नलिन चौहान। आज के चुनावी लोकतंत्र में चुनाव चिन्ह के बिना, राजनीतिक दल के अस्तित्व की कल्पना एकांगी है। चुनावी दल की पहचान ही चुनाव चिन्ह से है। बीसवीं सदी के पचास वें दशक के शुरुआत में हुए चुनावों ने मतदाताओं की निरक्षरता को मिटाने और राजनीतिक समझ को बढ़ाने का काम चुनाव चिन्हों ने ही किया। ऐसे में, राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हों ने ‘माध्यम से अधिक संदेश’ के रूप में मतदाताओं के मानस को प्रभावित किया। उल्लेखनीय है कि निर्वाचन आयोग का प्रमुख दायित्व भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के कार्यालयों, संसद के उच्च सदन (राज्यसभा) एवं निचले सदन (लोकसभा) तथा राज्य विधानसभाओं के उच्च व निचले सदनों के चुनावों को आयोजित करना है।
1951 में किसे क्या मिला था निशान
निर्वाचन आयोग ने अपनी इसी भूमिका के अनुरूप, अगस्त 1951 में फॉरवर्ड ब्लॉक (माक्र्सवादी) को ‘शेर’, फॉरवर्ड ब्लाक (रूइकर) को ‘हाथ’, हिंदू महासभा को ‘घोड़ा-सवार’, किसान मजदूर प्रजा पार्टी को ‘झोपड़ी’, रामराज्य परिषद् को ‘उगता सूरज’, शिडूल्यड कास्ट फेडरेशन को ‘हाथी’, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को ‘दो बैलों की जोड़ी’, सोशलिस्ट पार्टी को ‘पेड़’, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को ‘बाली-हंसिया’, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी को ‘कुदाल-कोयलाझोंक’ और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को ‘जलती मशाल’ के चुनाव चिन्ह प्रदान किए।
दिल्ली विधानसभा का पहला चुनाव
फिर, सितंबर 1951 को निर्वाचन आयोग ने बोल्शेविक पार्टी ऑफ इंडिया को ‘सितारा’, कृषिकार लोक पार्टी को ‘गेंहू झाड़ता किसान’ और भारतीय जनसंघ को ‘दीपक’ का चुनाव चिन्ह प्रदान किया। वर्ष 1952 में हुए दिल्ली विधानसभा के पहले चुनाव में दस राजनीतिक दलों भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनसंघ, किसान मजदूर प्रजा पार्टी, शिडूल्यड कॉस्ट फैडरेशन, रामराज्य परिषद, हिंदू महासभा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, फॉरवर्ड ब्लॉक और सोशलिस्ट पार्टी ने निर्वाचन आयोग से आवंटित चुनाव चिन्हों पर चुनाव लड़ा।
कितने राज्य स्तरीय दल और पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दल
आज देश में सात राष्ट्रीय दल, 26 राज्य स्तरीय दल और 2301 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दल हैं। जबकि निर्वाचन आयोग की नवीनतम मुक्त चुनाव चिन्हों की सूची में 198 चिन्ह हैं। दिल्ली में वर्ष 1972 में हुए महानगर परिषद् चुनाव में छह राष्ट्रीय राजनीतिक दलों और एक राज्य स्तरीय दल ने भाग लिया। इसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन), स्वतंत्र पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया नए थे। उल्लेखनीय है कि समाजवादियों को वर्ष 1955 में दुविधा की स्थिति का सामना करना पड़ा क्योंकि कांग्रेस ने घोषणा कर दी कि उसका लक्ष्य समाजवादी बनावट वाले समाज की रचना है। सोशलिस्ट पार्टी के कई टुकड़े हुए और कुछ मामलों में बहुधा मेल भी हुआ। इस प्रक्रिया में कई समाजवादी दल बने।
कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर विवाद
इन दलों में, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, किसान मजदूर प्रजा पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का नाम लिया जा सकता है। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने ‘पेड़’ के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा। वहीं वर्ष 1969 में अविभाजित कांग्रेस के चुनावी चिन्ह को लेकर कांग्रेस के दो गुटों में विवाद हुआ। निर्वाचन आयोग ने इंदिरा गांधी की अगुवाई वाले कांग्रेस के धड़े को दल में प्राप्त बहुमत के आधार पर चिन्ह दे दिया। इस निर्णय को दूसरे गुट कांग्रेस (आर्गेनाइजेशन), जो कि सिंडीकेट नाम से अधिक प्रसिद्ध था, ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। जिस पर उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में दोनों गुटों को पार्टी के चुनावी चिन्ह से वंचित कर दिया।
उच्चतम न्यायालय का फैसला
उच्चतम न्यायालय ने अपने एक निर्णय में कहा कि एक राजनीतिक दल दो या दो से अधिक गुटों में बंट सकता है लेकिन चुनाव चिन्ह नहीं। चुनाव चिन्ह दो बराबर के मालिकों के बीच बांटने वाली संपत्ति नहीं है। सो, इंदिरा कांग्रेस ने ‘गाय-बछड़ा’ और सिंडीकेट ने ‘चरखा चलाती महिला’ के चिन्ह पर महानगर परिषद् चुनाव लड़ा। जबकि सी राजगोपालचारी की स्वतंत्र पार्टी का चिन्ह ‘सितारा’ और राज्य स्तरीय दल रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने ‘हाथी’ के चिन्ह तथा पंजीकृत (गैर मान्यता प्राप्त) दल हिन्दू महासभा ने ‘घोड़ा-सवार’ चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा। वहीं 1977 में राष्ट्रपति शासन के तहत हुए महानगर परिषद् चुनाव में चार राष्ट्रीय, एक राज्य स्तरीय दल और पांच पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त दलों ने हिस्सा लिया। इनमें कांग्रेस और भाकपा पुराने राष्ट्रीय दल थे जबकि जनता पार्टी ‘हलधर किसान’ और माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ‘हंसिया-हथौड़ा’ के नए चुनाव चिन्हों के साथ मैदान में उतरें।
घट गई राष्ट्रीय दलों की संख्या छह से
दूसरी तरफ राष्ट्रीय दलों की संख्या छह से घटकर चार ही रह गई। ऐसा आपातकाल अवधि के बाद जनसंघ, कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल और सोशलिस्ट पार्टी के आपसी विलय के कारण हुआ। इन चुनावों में वर्ष 1972 के चुनावों की तुलना में अधिक संख्या में (पांच) पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों ने चुनाव लड़ा। जिनमें सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (हंसिया-सितारा), हिन्दू महासभा, रामराज्य परिषद रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (खोब्रागडे) थे। जबकि 1983 के महानगर परिषद् चुनाव में सात राष्ट्रीय दलों ने चुनाव में भाग लिया। इनमें लोकदल (हल वाली बैलों की जोड़ी के साथ खेती करता किसान), भारतीय जनता पार्टी (कमल का फूल) और इंडियन कांग्रेस सोशलिस्ट (चरखा) दल नए चुनाव चिन्हों के साथ मैदान में उतरे थे जबकि बाकि भाकपा, माकपा, कांग्रेस और जनता पार्टी पुराने ही थे।
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