नक्सली कर रहे मतदान का विरोध, प्रशासन स्थानीय त्योहार से बता रहा वोट का महत्व
नक्सली बैठक और रैली अबूझमाड़ इलाके में तेज हो गई है। अंदरूनी इलाके का मतदाता निर्णय ही नहीं कर पा रहा है, कि मतदान करें या बहिष्कार।
दंतेवाड़ा। पहली बार प्रशासन वोट पंडूम (स्थानीय त्योहार) के जरिये मताधिकार का महत्व बता रहा है। गांव से लेकर शहर तक मतदान करने के लिए लोगों को प्रेरित कर रहा है। चुनाव आयोग मतदान की प्रक्रिया मतदाताओं को समझा रहा है। ताकि स्वविवेक से अपने पसंदीदा नेता का चयन कर सकें और वोट प्रतिशत बढ़े।
उधर अंदरूनी इलाकों में नक्सली संगठन चुनाव बहिष्कार को लेकर हर हथकंडा अपनाने में जुटे हैं। नक्सलियों के प्रयास के बाद भी संकेत मिल रहे हैं कि इस बार मतदान का प्रतिशत बढ़ जाएगा।
नक्सली बैठक और रैली अबूझमाड़ इलाके में तेज हो गई है। अंदरूनी इलाके का मतदाता निर्णय ही नहीं कर पा रहा है, कि मतदान करें या बहिष्कार। मतदान करता है तो नक्सलियों से सीधी दुश्मनी है और बहिष्कार करता है तो लोकतंत्र के इस पवित्र पर्व वह भागीदार नहीं हो पा रहा है। यह बात मतदाताओं को तकलीफ दे रही है।
सूत्र बता रहे हैं अरनपुर- जगरगुंडा इलाके में नक्सलियों ने सैकड़ों ग्रामीण को एकत्र कर चुनावी बहिष्कार का फरमान सुना दिया है। वहीं इंद्रावती नदी पार अबूझमाड़ इलाके में भी नक्सलियों ने इसी तरह का फरमान सुनाया है। मैदानी अमले की बात मानें तो इस बार नक्सली अन्य चुनाव की अपेक्षा ज्यादा बौखलाहट में हैं। सच तो यह है कि कर्मचारी भी दहशत में हैं।
स्कूल की दीवारों पर लिख रहे बहिष्कार के नारे
अंदरुनी इलाकों के स्कूलों की दीवार ही नहीं ब्लैक बोर्ड और फर्श पर भी नक्सली नारे लिखे जा रहे हैं। इन नारों के लिखे भर जाने से मतदाताओं में भय फैल जाता है। अंदरूनी इलाकों के मतदाता कहते हैं कि वोट नहीं देंगे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यदि वोट दिया तो पूरे की परिवार की शामत तय है। नक्सली खौफ पैदा करने के साथ वारदातों को भी अंजाम देने से नहीं चूक रहे हैं। कुआकोंडा इलाके के जिला पंचायत सदस्य नंदलाल मुड़ामी पर जानलेवा हमला भी नक्सलियों द्वारा किए जाने की चर्चा जोरों पर है। हालांकि पुलिस ने इस मामले को नक्सली प्रकरण में अभी दर्ज नहीं किया है।