एक ओर प्रदेश में बिजली के लिए हंगामा मचा हुआ है, वहीं डिफाल्टर उपभोक्ता बकाया बिजली बिल भरने को तैयार नहीं हैं। उपभोक्ताओं पर निगम के करीब 4400 करोड़ रुपये बकाया हैं। साथ ही लाइनलॉस भी बड़ी चुनौती है। ऐसे में सरकार ने लाइनलॉस कम करने के लिए बिजली चोरी वाले क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति में कटौती कर दी है। सरकार किसी भी तरह से दबाव में आने का संदेश नहीं देना चाहती। लेकिन सरकार के इस कदम से सबसे अधिक परेशान ईमानदार उपभोक्ता हैं। वह बिल भरकर भी पूरी बिजली नहीं पा रहा है। उधर, डिफाल्टर उपभोक्ताओं से बिल वसूली की राह भी आसान नहीं है। अधिकतर बिजली बिल आंदोलन के लिए मुखर रहे जिलों में ही बकाया है। इसमें करीब एक तिहाई हिस्सा अकेले जींद जिले का है। उसके बाद भिवानी व रोहतक का नंबर आता है। साफ है कि बिजली संकट के समाधान के लिए पहले इन क्षेत्रों में डिफाल्टरों को बिल भरने के लिए राजी करना होगा। यह तभी संभव है जब शासन व्यवस्था आमजन को समझा पाए कि बिल भरने का सीधा फायदा उन्हें ही होने वाला है।
लाइनलॉस कम हो जाए तो हरियाणा में बिजली देश में सबसे सस्ती हो सकती है। आवश्यक है कि किसान बिजली का अर्थशास्त्र समझ पाए। अब आठ घंटे बिजली लेकर ग्रामीण डीजल मोटर, इन्वर्टर व अन्य उपकरणों पर मोटा खर्च कर रहे हैं। आवश्यक है कि सरकारी तंत्र गांव-गांव जाकर उनसे बात करे। स्वयंसेवी संस्थाओं व पंचायतों को साथ ले। सरकार लोगों को विश्वास दिलाने में सफल हो जाए कि उसकी मंशा साफ है तो लोग स्वयं अपने आप उसके साथ जुड़ने लगेंगे। फ्यूल चार्ज में कुछ कमी कर सरकार ने संकेत दे दिया है कि वह दाम घटाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। आवश्यक है कि गांवों को वैकल्पिक ऊर्जा के उत्पादन केंद्र के तौर पर विकसित किया जाए। ग्रामीण क्षेत्र में इसकी तमाम संभावनाएं भी हैं। एक बार वे बिजली उपभोक्ता से उत्पादक की मनोस्थिति में आ जाएं तो उनके लिए यह समझना और भी कारगर हो सकता है। बस आवश्यकता धरातल पर ईमानदार प्रयास जारी रखने की है।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]