मध्य प्रदेश के मंदसौर में कर्ज माफी के साथ उपज के उचित मूल्य की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे किसानों पर गोलीबारी में छह लोगों की मौत के बाद कथित किसान हितैषी नेता अपने रुख-रवैये पर विचार करें तो बेहतर है। उन्हें किसानों को भड़काकर राजनीतिक रोटियां सेंकने से बाज आना चाहिए। इन किसानों की मौत के लिए केवल पुलिस-प्रशासन को जिम्मेदार बताना समस्या का सरलीकरण करना है। राज्य सरकार की मानें तो गोली पुलिस ने नहीं चलाई, लेकिन यह पता लगाना उसका ही दायित्व है कि यह काम किसने किया? पता नहीं यह जांच कब तक पूरी होगी, लेकिन यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि यह किसान आंदोलन को अराजकता के रास्ते पर ले जाने का ही नतीजा है कि छह किसानों की जान चली गई और कई गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके पहले एक पुलिस कर्मी की आंख फूट गई थी। इसमें दो राय नहीं कि देश के किसान समस्याओं से घिरे हैं और उनका समाधान प्राथमिकता के आधार पर खोजने की जरूरत है, लेकिन अगर यह माना जा रहा कि कर्ज माफी ही उनकी समस्त समस्याओं का हल है तो यह सही नहीं। कर्ज माफी न तो बैंकों के लिए हितकारी है, न अर्थव्यवस्था के लिए और न ही खुद किसानों के लिए। कर्ज माफी किसानों को संकट से उबार सकने में किस तरह सक्षम नहीं, इसका पता इससे चल रहा है कि इन दिनों महाराष्ट्र के किसानों का एक वर्ग मध्य प्रदेश के किसानों की तरह से कर्ज माफ करने की मांग को लेकर सड़कों पर है। ये वही किसान हैं जिनके कर्जे संप्रग सरकार के समय माफ किए गए थे। बेहतर हो कि किसानों के कर्जे माफ करने की मुहिम छेड़ने वाले इस पर विचार करें कि क्या बार-बार कर्ज माफी संभव है? कोई भी सरकार हो वह बार-बार किसानों के कर्जे माफ नहीं कर सकती। रह-रह कर ऐसा करते रहने का मतलब है बैंकिंग व्यवस्था को ध्वस्त करना और कर्ज लेकर उसे न चुकाने वालों को प्रोत्साहित करना। कर्ज माफी उनके साथ एक तरह का छल है जो ईमानदारी से अपना कर्ज चुकाते हैं।
कर्ज माफी मुफ्तखोरी की संस्कृति को बढ़ावा देने के अलावा और कुछ नहीं। मध्य प्रदेश में करीब 90 हजार किसान ऐसे हैं जिन्होंने इस आस में कर्ज नहीं चुकाए हैं कि जल्द ही कर्ज माफी की घोषणा हो सकती है। ऐसी किसी घोषणा की उम्मीद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के स्पष्ट इन्कार के बावजूद की जा रही है। आखिर जब उन्होंने कृषि उपज को अधिक मूल्य पर खरीदने और एक लाख रुपये के कर्ज पर सिर्फ 90 हजार रुपये ही लौटाने की योजना लागू करने के साथ किसानों की कुछ अन्य मांगें मानने की घोषणा कर दी थी तब फिर इसका कोई औचित्य नहीं था कि किसान धरना-प्रदर्शन करते रहते? क्या मध्य प्रदेश के कथित किसान नेता इस धरना-प्रदर्शन के दौरान दिखाई गई अराजकता की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं? यह महज एक दुर्योग नहीं हो सकता कि जब उत्तर प्रदेश सरकार किसानों की कर्ज माफी की घोषणा पर अमल करने का रास्ता तलाशने में परेशान है तब मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के साथ कुछ अन्य राज्यों में किसानों के कर्ज माफ करने की मांग हो रही है।

[ मुख्य संपादकीय ]