अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से व्हाइट हाउस में भारतीय प्रधानमंत्री का जैसा स्वागत हुआ और दोनों नेताओं के बीच जैसी समझ-बूझ कायम हुई उससे वे तमाम आशंकाएं निराधार साबित हुईं जो इस मुलाकात के पहले जताई जा रही थीं। ये आशंकाएं इसलिए उभर आई थीं, क्योंकि राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने के बाद से डोनाल्ड ट्रंप ने एक के बाद एक कई ऐसे बयान दिए थे जो भारतीय हितों के अनुकूल नजर नहीं आ रहे थे। दोनों नेताओं की मुलाकात ने यह साफ किया कि भारत-अमेरिका के रिश्ते अपेक्षित दिशा में ही आगे बढ़ने वाले हैं। एक ओर जहां अमेरिकी राष्ट्रपति ने मोदी के नेतृत्व में भारत की महत्ता को रेखांकित किया वहीं भारतीय प्रधानमंत्री ने एक बार फिर यह साबित किया कि वह विश्व के प्रमुख नेताओं के साथ तालमेल बैठाने में माहिर हैं।

यह शायद इसी तालमेल का असर रहा कि दोनों नेताओं ने अपनी पहली मुलाकात में असहमति का विषय बन सकने वाले मसलों को टालना और रिश्तों को मजबूत करने वाले मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना बेहतर समझा। भारत के लिए इससे अच्छा और कुछ नहीं कि ट्रंप ने अपने कहे के अनुरूप मोदी की आवभगत सच्चे दोस्त के तौर पर की। दोस्ती के इस भाव की झलक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के साथ-साथ दोनों नेताओं की ओर से जारी साझा बयान में भी दिखाई दी। चूंकि यह बयान दोनों देशों के रिश्तों की दशा-दिशा को पूरी तौर पर स्पष्ट करने वाला है इसलिए अब इसके प्रति और सुनिश्चित हुआ जा सकता है कि भारत और अमेरिका एक-दूसरे के हितों की पूर्ति में सहायक बने रहेंगे। आज जहां भारत को अपने उत्थान के लिए अमेरिकी मदद की दरकार है वहीं अमेरिका को भी आगे बढ़ने के लिए भारत की जरूरत है। दरअसल इसीलिए बार-बार यह रेखांकित होता है कि भारत और अमेरिका एक-दूसरे के स्वाभाविक सहयोगी हैं।

भारतीय प्रधानमंत्री पहली ही मुलाकात में अमेरिकी राष्ट्रपति पर जिस तरह अपनी छाप छोड़ते दिखे उससे वह वैश्विक नेता के तौर पर अपना कद और ऊंचा करने में तो कामयाब रहे ही, दुनिया को भारत की बढ़ती अहमियत का संदेश देने में भी सफल रहे। हालांकि अमेरिका पहले भी भारतीय हितों की चिंता करते दिखा है, लेकिन अमेरिकी प्रशासन ने जिस तरह डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी की मुलाकात के ठीक पहले कश्मीर में आतंकवाद फैला रहे आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के सरगना सैयद सलाहुद्दीन को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया उससे यही स्पष्ट हुआ कि भारतीय हित उसकी प्राथमिकता में शामिल हैं। सलाहुद्दीन को आतंकी घोषित किए जाने के बाद पाकिस्तान की ओर से भले ही गर्जन-तर्जन किया जा रहा हो, लेकिन यह तय है कि उसकी मुश्किलें बढ़ने वाली हैं।

अमेरिका के कदम से वह एक बार फिर आतंकियों की शरणस्थली के रूप में सामने आया। इस पर हैरत नहीं कि भारत और अमेरिकी की ओर से जारी संयुक्त बयान से चीन भी परेशान नजर आ रहा है। चीन को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि वह अपनी शर्तो से भारत से संबंध बनाए रख सकता है। यह संभव नहीं कि वह भारतीय हितों की जानबूझकर अनदेखी करे और फिर भी यह अपेक्षा करे कि भारत उसके प्रति मित्रवत रवैया बनाए रहे।

[मुख्य संपादकीय]