जब मुख्यमंत्री को यह कहना पड़ा कि राज्य में बिना घूस दिये काम नहीं होता तो चौक-चौराहों पर आम आदमी की भ्रष्टाचार के प्रति चिंता स्वाभाविक है। सीएम ने जिस महकमे में घूस दिये बिना काम न होने की बात कही है ,वह बिहार में ही नहीं देशभर में बदनाम है। बिजली विभाग में नौकरी के लिए घूस का चलन अर्से से है तो नौकरी मिलने के बाद दी जाने वाली घूस की रकम की वसूली का सिलसिला कहां रुकने वाला। आज भी केबिल ध्वस्त होने या ट्रांसफार्मर में फाल्ट आदि वजह से किसी मोहल्ले में बिजली ठप होती है तो उसे ठीक करने पहुंचने वाले कर्मचारी पहले उस व्यक्ति को खोजते हैं जिसकी बात वहां के लोग मानते हों, उसके कान में यह कहा जाता है कि फाल्ट तगड़ा है, आज तो इसे ठीक करना संभव नहीं है। यह जानने पर वह असरदार व्यक्ति प्रभावित लोगों से पैसा इकट्ठा करना शुरू कर देता है। मुंहमांगी राशि का इंतजाम हो गया तो आपूर्ति दुरूस्त हो जाती है। जीतन राम मांझी ने बिजली विभाग की ओर से भेजे जाने वाले बिल को ले-देकर कम कराने की कहानी सुनाई है। इस तरह के किस्से पब्लिक के लिए नये नहीं हैं। वैसे विकासशील राज्य में रिश्वत के चलन पर गौर करें तो सिर्फ बिजली विभाग ही नहीं, तकरीबन सभी वह सरकारी महकमे जो पब्लिक डील से जुड़े हैं, रिश्वतरूपी बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं। ज्यादा चिंताजनक हालत तो पुलिस विभाग की है। थानों में किसी भी घटना की प्राथमिकी तो दूर बिना कुछ दिये सनहा तक दर्ज नहीं होता, मामला अनुसंधान को गया तो समझ लीजिए जो जितना खिला-पिला देगा उसका केस उतना मजबूत होगा। स्वास्थ्य विभाग की ओर रुख करें तो अस्पताल चाहे बड़ा हो या छोटा, हर जगह दलाल हावी हैं। दलालों को पकड़े बिना न तो बेड मिलेगा है और न ही डॉक्टर साहब आपके मरीज की तरफ मुंह करेंगे। हालात इस कदर बिगड़ गये हैं कि पहले दलाल सरकारी अस्पताल में मरीज को भर्ती कराकर बढि़या इलाज का वास्ता देते हुए परिजनों का बैंक बैलेंस खाली कराता है और जब घर वाले हालत न सुधरने की बात कहते हैं तो सरकारी डॉक्टर के निजी क्लीनिक या नर्सिग होम ले जाने को बाध्य कर महाजन का कर्जदार बना देता है। कई मामलों में तो घर-खेत बिक जाता है और मरीज भी नहीं बचता है। लेनदेन का कल्चर बीडीओ कार्यालयों से लेकर कलेक्ट्रेट तक बखूबी फैला है। आयेदिन शासन स्तर पर बैठक कर मंत्री और बड़े अफसर उन्हीं मातहतों को भ्रष्टाचार खत्म करने की नसीहत देते हैं जो इसमें आकंठ डूबे हैं।

बुधवार को राजधानी में मुख्यमंत्री ने एक बैठक में नये प्रखंड विकास पदाधिकारियों को घूस देने संबंधी आपबीती सुनाई। गया स्थित अपने आवास का आया बिजली बिल 25 हजार रुपये रिश्वत देकर पांच हजार करवा लेने की कहानी सुना सीएम ने नये अफसरों को भ्रष्टाचार के दलदल की जानकारी देने के साथ यह संदेश दिया कि रिश्वतखोर अफसर सरकारी खजाने को किस तरह से नुकसान पहुंचा रहे हैं। उन्होंने नये अधिकारियों को सलाह दी कि वे इस कल्चर में नही पड़ेंगे तो तो 75 प्रतिशत भ्रष्टाचार रुक जाएगा। इन अफसरों से भ्रष्टाचार को कम करने की उम्मीद करते हुए सीएम ने एक महत्वपूर्ण कदम नवनियुक्त ग्रामीण विकास पदाधिकारियों को 15 अगस्त तक प्रखंड विकास पदाधिकारी बना देने का उठाया है। उन्होंने कहा कि बढि़या काम करने वालों को प्रोन्नति मिलेगी। ईमानदार अधिकारी उप विकास आयुक्त की कुर्सी तक जा सकते हैं, पर काम नहीं करने वाले हटाए जाएंगे। भ्रष्टाचार रोकने की दिशा में मुख्यमंत्री का संदेश तो नये अधिकारियों के लिए प्रेरणास्रोत है। लेकिन, सवाल यह उठता है कि भ्रष्टाचार की सूचना देने में सरकार का स्थानीय खुफिया तंत्र क्यों विफल है?

[स्थानीय संपादकीय: बिहार]