फ्लैश: नई सरकार को कानून व्यवस्था इतनी चौकस करनी होगी कि अराजक तत्वों की उपद्रव करने की हिम्मत न पड़ सके। ---शनिवार का दिन उत्तर प्रदेश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था, सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के सबसे बड़े प्रदेश में मिले जनादेश के तहत नए नेतृत्व का चयन होना था। ठीक इसी दिन आतंक के सौदागरों की कई गतिविधियों का एक साथ पता चलता है। सबसे पहले आगरा कैंट रेलवे स्टेशन पर तेज आवाज वाले दो धमाके सुनाई पड़ते हैं और दिन में सुल्तानपुर में कबाड़ में रेडियो बम फटता है। शाम होने से पहले लखनऊ की एक कालोनी में कूरियर से भेजे गए पांच इलेक्ट्रोफाइड बम निष्कि्रय किए जाने की खबर आती है। इतनी घटनाओं ने १९९३ के ट्रांजिस्टर बम कांडों की याद ताजा कर दी जब लावारिस बैगों, खेल के मैदान के किनारे कूड़े में, घने बाजारों में खड़ी साइकिलों में धमाके होते, नालियों में खून बहता, संपत्ति की हानि और बड़ी संख्या में जनहानि भी होती। विभिन्न एजेंसियों से आतंकी गतिविधियों के बारे में अरसे से सरकार को इनपुट मिल रहे हैं। लखनऊ में आइएस मौजूदगी दिखा चुका है। एक ही दिन में ट्रायल के लिए लगाए गए अलग-अलग किस्म के बमों की क्षमता भले ही बहुत सीमित रही हो किंतु यह इशारा बिलकुल स्पष्ट है कि इन घटनाओं के पीछे महज संयोग नहीं, बल्कि खास मकसद था। इन दो दिनों में सुरक्षा व्यवस्था सबसे अधिक चुस्त-दुरुस्त रहनी थी, क्योंकि प्रदेश को नया मुख्यमंत्री मिलने वाला था। अगले ही दिन प्रधानमंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों को शपथ ग्रहण समारोह में लखनऊ आना तय था। बम लगाने वाले टोह लेना चाहते थे कि प्रदेश की सरकारी मशीनरी किस तरह की प्रतिक्रिया करती है। पिछले अनुभव बताते हैं कि जब-जब ऐसे इरादों के खिलाफ हम एकजुट हुए हैं, जीत हमारी ही हुई है। एनआइए, एटीएस तथा अन्य एजेंसियां अपना काम कर रही हैं, सिविल पुलिस को भी हर संदिग्ध घटना पर अपनी तेज प्रतिक्रिया देनी चाहिए। यहां तक कि, आसपास होने वाली असामान्य घटनाओं पर आम नागरिकों को भी सजग नजर बनाये रखना होगा। आतंकियों की हर चाल का जवाब देना होगा। फन उठाने से पहले ही आतंक के सांप को कुचल देना समय की पुकार है। यही नई सरकार की चुनौती भी है। नई सरकार को कानून व्यवस्था इतनी चौकस करनी होगी कि अराजक तत्वों की उपद्रव करने की हिम्मत न पड़ सके।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]