चारधाम यात्रा के साथ ही उत्तराखंड में उम्मीदों का सफर भी शुरू हो गया है। यमुनोत्री, गंगोत्री के साथ ही केदारनाथ के कपाट श्रद्धालुओं के खोल दिए हैं। बदरीनाथ धाम के कपाट दो रोज बाद यानि छब्बीस अप्रैल को खुल जाएंगे। कुल मिलाकर चारधाम यात्रा संपूर्णता की ओर अग्रसर है। हालांकि, बदरीनाथ तक पहुंचने की राह निरापद बनाना अभी भी चुनौती बना हुआ है। धाम से दो किलोमीटर पहले कंचनगंगा में हिमखंड ने आवाजाही बाधित की हुई है। यहां पर करीब पांच सौ मीटर हाईवे हिमखंड से दबा हुआ है, नब्बे फीट खुदाई के बाद भी बीआरओ के जवान हाईवे को नहीं ढूंढ पाए हैं। जाहिर है यात्रा के शुरुआती दिनों में श्रद्धालुओं को धाम तक पहुंचने के लिए यहां से पैदल ही पग भरने पड़ सकते हैं।

जिस मुस्तैदी से बीआरओ यहां रास्ता खोलने में जुटी है, उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द श्रद्धालुओं की राह आसान होगी। खैर, इस बार चारधाम यात्रा को लेकर ठीकठाक उत्साह दिख रहा है। यात्रा तैयारियां भी काफी हद तक पहले की तुलना में बेहतर हुई हैं। सड़क और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं का टोटा एक हद तक अखर रहा है, लेकिन आस्था की डगर पर पग भरने वालों के लिए इनके शायद कोई ज्यादा मायने नहीं हैं। सरकार भी देश-दुनिया में यही संदेश देने की कोशिशों में जुटी हुई है उत्तराखंड और यात्रा दोनों सुरक्षित हैं, श्रद्धालु बेझिझक चारधाम आएं।

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की दो दिनी देवभूमि यात्रा को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। राहुल गौरीकुंड से सोलह किलोमीटर पैदल चलकर केदारनाथ बाबा के दर तक पहुंचे। यह बात दीगर है कि राहुल की इस यात्रा के निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। हो सकता है प्रदेश में सत्तारुढ़ कांग्रेस और खुद राहुल का इसके पीछे एजेंडा सियासी रहा हो, लेकिन इसमें सुरक्षित यात्रा का संदेश देना भी एक पहलू रहा। जिस अंदाज में राहुल ने कांग्रेस सरकार की पीठ थपथपाई उससे यह बात और भी साफ हो जाती है। तीन धामों में अभी तक की तस्वीर भी सुकून देने वाली है। यमुनोत्री और गंगोत्री में चार दिनों के अंतराल में सात से आठ हजार श्रद्धालु दर्शनों के पहुंच चुके हैं, वीरवार को केदारनाथ में भी ढाई से तीन हजार लोगों की मौजूदगी मंदिर के कपाट खुले।

निसंदेह श्रद्धालुओं की संख्या उम्मीद जगा रही है कि इस बार यात्रा पारंपरिक स्वरूप में लौटेगी। उत्तराखंड के लोग भी यही कामना कर रहे हैं। गुजरे दो सालों के दरम्यान चारधाम यात्रा का जो हाल रहा, उसे बिसरा कर उत्तराखंड आगे बढऩा चाहता है। यह ठीक भी है। सूने पड़े यात्रा पड़ावों पर इस दफा श्रद्धालुओं की चहलकदमी उम्मीदों के सफर को मंजिल करीब लाती दिख रही हैं। हर कोई उत्साहित है और हो भी क्यों नहीं। यह सब ठीक है, लेकिन सरकार को बेफिक्र नहीं रहना होगा। ये आस्था का ज्वार है, श्रद्धालु तो विषम परिस्थितियों में भी चारधामों तक पहुंचेंगे। लिहाजा, सरकार को बुनियादी व्यवस्थाओं को लेकर ज्यादा संजीदा होना हेागा। ताकि, श्रद्धालुओं के माध्यम से देशभर में सकारात्मक संदेश जाए। यही उत्तराखंड की दिली इच्छा भी है।

(स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड)