केंद्र सरकार द्वारा पहाड़ी राज्यों को दस साल के लिए जीएसटी से राहत देने के फैसले से पंजाब एक बार फिर आहत है और उसने अपनी पीड़ा का इजहार करना शुरू भी कर दिया है। अच्छी बात यह है कि पंजाब के हित के लिए इस मुद्दे पर सभी दल एक स्वर से मांग कर रहे हैं कि इस बारे में पंजाब को भी तवज्जो दी जाए। पंजाब के नेता हमेशा यह तर्क देते रहे हैं कि पहाड़ी राज्यों को यह राहत देने का सबसे ज्यादा असर पंजाब पर पड़ता है। पड़ोसी हिमाचल को जब यह राहत मिलती है तो पंजाब के कई उद्योग वहां शिफ्ट होते हैं। पिछले एक दशक में पंजाब के कई उद्योगपतियों ने नए उद्योग यहां स्थापित करने की बजाय हिमाचल के बद्दी या गगरेट को उपयुक्त माना। इसकी बड़ी वजह वहां टैक्स से राहत होना ही रही है, हालांकि इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि सस्ती व निर्बाध बिजली आपूर्ति और लेबर भी इसकी एक वजह रही है। पंजाब में अब तो स्थिति काफी सुधर चुकी है लेकिन यह सभी को मालूम है कि कुछ वर्षो पहले तक उद्योगों को विशेषकर गर्मियों में बिजली के घोर संकट का सामना करना पड़ता रहा है। अब यह संकट नहीं है लेकिन पड़ोस के ही पहाड़ी राज्यों को टैक्स से राहत के कारण वहां की ओर उद्योगों का आकर्षित होना स्वाभाविक है। यही नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का यह तर्क भी बेहद वाजिब है कि पंजाब को तो यह रियायत या राहत इसलिए भी दी ही जानी चाहिए क्योंकि उसने पहले भी आतंकवाद का दंश ङोला है और अब भी सीमावर्ती राज्य होने के कारण उसे हर समय खतरा रहता है। पाकिस्तान की नापाक हरकतों का सबसे ज्यादा खामियाजा उसे ही ङोलना पड़ता है। अब मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी कहा है कि वे केंद्र के समक्ष यह मसला उठाएंगे। निराशाजनक यही है कि इससे पहले भी पंजाब द्वारा इस मामले को केंद्र के समक्ष कई बार रखा गया लेकिन उसकी सुनी नहीं गई। हैरानी तो इस बात की है कि पंजाब में अकाली दल-भाजपा गठबंधन और केंद्र में भी भाजपा की सरकार होते हुए भी यह मांग अनसुनी ही रह गई। अब पड़ोसी राज्यों पर नजए-ए-इनायत कर केंद्र ने पंजाब के जख्मों पर और नमक छिड़कने का काम किया है। इस फैसले से बेशक पड़ोसी राज्यों को लाभ होगा। पंजाब को इससे आपत्ति नहीं है लेकिन उसे भी राहत वाले राज्यों की श्रेणी में शामिल करने की मांग पर केंद्र को ध्यान जरूर देना चाहिए। नहीं तो यह पंजाब के साथ अन्याय ही होगा।

स्थानीय संपादकीय- पंजाब