जींद के गांव जलालपुर कलां की महिलाओं ने उप आबकारी व कराधान आयुक्त से शराब के अवैध खुर्दे बंद कराने की जो अपील की है, उस पर शायद ही कोई कार्रवाई हो। ऐसा इसलिए क्योंकि हरियाणा में अवैध खुर्दे बंद कराने के लिए महिलाएं आए दिन आवाज उठाती रहती हैं। यहां तक कि वे ठेकों और खुर्दों पर तोड़फोड़ भी करती हैं। मगर इतने प्रबल विरोध के बाद भी न तो शराब के ठेके बंद होते हैं और न ही अवैध खुर्दे नहीं होते हैं। सरकार वैध ठेकों को बंद भी नहीं कर सकती है। यह तो तभी हो सकेगा जब सरकार प्रदेश में शराबबंदी कर दे, लेकिन ऐसा नहीं होगा। सिर्फ इस लिए नहीं कि शराब के ठेकों की नीलामी से मिलने वाला राजस्व प्रदेश सरकार की आय का बड़ा हिस्सा है। सरकार राजस्व का लोभ छोड़ दे तो तस्करों की चांदी हो जाएगी। इस तरह शराबबंदी से दोहरा नुकसान होता है, एक तो राजस्व की हानि और दूसरे प्रदेश के निवासियों का स्वास्थ्य दांव पर लगाना। शराब की तस्करी करने वाले गिरोह कानून व्यवस्था के लिए चुनौती बन जाते हैं। हरियाणा इसके दुष्प्रभाव देख चुका है।
स्वर्गीय बंसीलाल ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में शराबबंदी का फैसला लिया था। लेकिन प्रदेश में शराब तस्करों ने इतनी अराजकता फैलाई कि उन्हें फिर से शराब की बिक्री की इजाजत देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उस दौरान लोग शराब की तस्करी कर करोड़पति बन गए थे। तब से किसी सरकार ने शराबबंदी का नाम नहीं लिया। सरकार शराबबंदी भले न करे लेकिन उसे इतना तो ध्यान रखना ही चाहिए कि ठेकों को ऐसी जगह न खुलने दिया जाए, जिससे आम नागरिकों को, खास तौर से महिलाओं और बच्चों को अप्रिय स्थिति का सामना करना पड़ा। शराब ठेकेदार संविदा की शर्तों को तोड़ देते हैं। वे ठेकों के अतिरिक्त जगह-जगह पर अपने आदमी बैठाकर शराब बिकवाते हैं। प्रदेश की भाषा में खुर्दे कहा जाता है। ठेके कहां होंगे इसके तो नियम हैं। हालांकि ठेके खोलने में भी नियमों का पालन नहीं होता, लेकिन खुर्दे तो अवैध होते हैं, वे तो कहीं भी खोल लिए जाते हैं। सरकार को खुर्दों पर ही कड़ाई से रोक लगानी चाहिए और महिलाओं की आवाज को सुनना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]