यह रिपोर्ट चिंतित करने वाली है कि बिहार में मनरेगा की रफ्तार इस हद तक सुस्त है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष के पहले चार महीनों में लक्ष्य के विपरीत सिर्फ 47 फीसद मानव दिवस सृजित किए जा सके। एक तरफ रोजगार के लिए लाखों बिहारी अन्य राज्यों की तरफ पलायन कर रहे हैं, जहां उन्हें अपमानजनक एवं प्रताडऩादायी हालात में रोजी-रोटी कमाने के लिए जूझना पड़ता है। दूसरी तरफ राज्य में संचालित मनरेगा के प्रति सरकारी तंत्र गंभीर नहीं है। राज्य सरकार को जांच करानी चाहिए कि मनरेगा के प्रति इस उदासीनता की वजह क्या है तथा इसके लिए कौन जिम्मेदार है? मनरेगा लागू हुए करीब दस साल गुजर चुके, इसके बावजूद इसका क्रियान्वयन अब तक व्यवस्थित न हो पाना सरकारी तंत्र की कार्यशैली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है। शायद इसकी वजह यह है कि योजना के ऑडिट निष्कर्षों पर फॉलो-अप कार्यवाही पूरी गंभीरता के साथ नहीं हो रही, लिहाजा अधिकारी लक्ष्य को गंभीरता से नहीं लेते। अधिकारियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि मनरेगा रोजगार सृजन नहीं, बल्कि गरीबी उन्मूलन की योजना है। बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का आलम किसी से छिपा नहीं है, इसके बावजूद राज्य के सरकारी तंत्र द्वारा मनरेगा जैसी योजना को लेकर उदासीन रहना 'अपराध' है। यदि मनरेगा विश्वसनीय ढंग से लागू की गई होती तो रोजगार के लिए बिहार के मजदूरों का महाराष्ट्र, पंजाब और गुजरात के लिए पलायन किसी हद तक नियंत्रित किया जा सकता था। फिलहाल बिहार से इन राज्यों की ओर जाने वाली ट्रेनों में बिहारी मजदूरों की भीड़ बरकरार है।

राज्य सरकार से अपेक्षा है कि मनरेगा को लेकर व्यापक जागरूकता अभियान चलाए ताकि अशिक्षित एवं साधनहीन ग्रामीण मनरेगा के संदर्भ में अपने अधिकारों से वाकिफ हो सकें। इस योजना में बेरोजगारी भत्ता दिए जाने का भी प्रावधान है, यह देखा जाना चाहिए कि बिहार में अब तक कितने लोगों को यह भत्ता मिला। यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर परिवार का जॉब कार्ड उस परिवार के ही पास रहे तथा उसकी पारिश्रमिक राशि उस परिवार के ही बैंक खाते में जमा हो। सर्वविदित है कि अपने शुरुआती काल में यह योजना जमकर भ्रष्टाचार की शिकार हुई यद्यपि बाद में कई ऐसे प्रावधान किए गए ताकि योजना का शत-प्रतिशत लाभ सुपात्रों को ही मिले। राज्य सरकार को यह जरूर देखना होगा कि बिहार में ये प्रावधान इनकी मंशा के अनुरूप लागू किए गए हैं या नहीं। शासन स्तर पर इस योजना के क्रियान्वयन की गहन समीक्षा की जानी चाहिए तथा ऑडिट निष्कर्षों पर अनिवार्य रूप से कार्यवाही की जानी चाहिए। यह भी देखा जाना चाहिए कि इस योजना के तहत कार्य करने वाली महिलाओं के लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं या नहीं। मनरेगा के क्रियान्वयन में ग्राम पंचायत के मुखिया की अहम भूमिका होती है लेकिन दुर्भाग्यवश इसी संस्था ने मनरेगा में सर्वाधिक घपलेबाजी की। राज्य सरकार कार्यशालाएं आयोजित करके मुखियाओं को मनरेगा के अच्छे क्रियान्वयन के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित कर सकती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य सरकार मनरेगा का महत्व समझेगी, और वित्तीय वर्ष के आगामी महीनों में इसका अपेक्षानुरूप क्रियान्वयन होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]