हाईलाइटर
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निकाय प्रतिनिधि हों या अधिकारी, अपने भीतर झांक कर देखना होगा। सोचना होगा कि सरकार को यह निर्णय क्यों लेना पड़ा। इसके लिए वे खुद कहां तक जिम्मेदार हैं।
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राज्य कैबिनेट के एक फैसले को लेकर शहरी निकायों में बवाल मचा हुआ है। उसके मुखिया सरकार के फैसले से नाराज हैं। फैसले को संविधान प्रदत्त अधिकार का हनन करने का आरोप लगा रहे हैं। दरअसल कैबिनेट ने नियमावली में संशोधन कर निविदा समिति के अध्यक्ष पद से नगर निगम के मेयर और नगर अध्यक्ष को हटा दिया। कैबिनेट का फैसला अनायास नहीं हुआ होगा। योजनाओं की स्थिति पर मंथन और प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद निर्णय लिया गया होगा। नगर निकायों के मुखिया को खुद इस पर मंथन करने की जरूरत है। सत्ता के पहले पायदान यानी पंचायत सरकार को सशक्त बनाने के लिए संविधान के 74 वें संशोधन के तहत स्थानीय शहरी निकायों को ढाई दर्जन से अधिक विभागों से संबंधित अधिकार दिए जाने के प्रावधान किए गए। नगर निगम या दूसरे शहरी निकाय इस हैसियत में अभी तक नहीं आ पाए हैं कि यह जिम्मेदारी संभाल सकें। रांची नगर निगम प्रदेश के निकायों के लिए मॉडल की तरह है, मगर खुद इसकी हालत ठीकठाक नहीं। पिछले छह-सात महीनों से निगम अखाड़ा बना हुआ था। एक तरफ मेयर तो दूसरी तरफ नगर आयुक्त, मुख्य अभियंता, कभी डिप्टी मेयर। ब्राइट न्योन द्वारा पोल पर विज्ञापन लगाने का मामला हो, सीसीटीवी कैमरे लगाने का, बिना कोरम नगर निगम की बैठक का, टेंडर निपटारे का या इसी तरह का दूसरा मसला। विवाद का कारण बने रहे। काम प्रभावित होता रहा। सरकार की बदनामी होती रही। यह सच है कि निगम के विवाद में शहर की जनता पिसती रही। काम प्रभावित होते रहे। अंतत: हाई कोर्ट ने हस्तक्षेप किया। चेतावनी दी। कहा, शहर की जनता नहीं पिसनी चाहिए। सहमति कायम कर प्रतिशपथ पत्र दायर करें। तब मेयर और नगर आयुक्त में कागज पर सहमति बनी। मेयर के पास टेंडर से जुड़ी कई फाइलें भी गईं। कैबिनेट के फैसले से नाराज रांची नगर निगम की मेयर सहित दस नगर अध्यक्ष राज्यपाल से मिले। हस्तक्षेप की मांग की। राजभवन से इस मामले में कहां तक मदद मिल सकती है, यह तो समय बताएगा।
निकाय प्रतिनिधि हों या अधिकारी, अपने भीतर झांक कर देखना होगा। सोचना होगा कि सरकार को यह निर्णय क्यों लेना पड़ा। इसके लिए वे खुद कहां तक जिम्मेदार हैं। इस फैसले के बाद सरकार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह पारदर्शी तरीके से निकायों के फैसले को देखे-परखे, नहीं तो गलत संदेश जाएगा।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]