पंचकूला में स्थित मां मनसा देवी मंदिर के प्रबंधन का, श्रद्धालुओं से यह आग्रह है कि वह केवल पैक्ड दूध ही चढ़ाएं, स्वागत योग्य है। यह दूध गरीबों में बांटा जाएगा। पिछले दो तीन वर्षों से मंदिरों में चढ़ने वाले दूध की बर्बादी रोकने के लिए उस दूध को गरीबों में बांटने की मुहिम कुछ सामाजिक संगठन और कार्यकर्ता चला रहे हैं। इसका असर भी हो रहा है, लेकिन उतना नहीं जितना होना चाहिए। खास तौर से शिवरात्रि के दौरान जब शिवभक्त दुग्धाभिषेक करते हैं तो काफी दूध बर्बाद हो जाता है। यदि वे भी ऐसा करेंगे तो बेहतर होगा। ग्वालियर के अचलेश्वर मंदिर सहित देश के कुछ मंदिरों ने यह व्यवस्था की है कि दूध की कुछ बूंदे चढाकर बाकी दूध एक बड़े पात्र में इकट्ठा कर लिया जाता है और उसे गरीबों में बांट दिया जाता है।
दूध की बर्बादी रोकने के लिए मथुरा के मंदिरों में भी इस तरह का फैसला लिया जा चुका है कि चढ़ावे के रूप में केवल सौ मिलीलीटर दूध ही चढ़ाया जा सकेगा। लेकिन यह पहली बार है कि देश के किसी बड़े मंदिर ने, जहां देश-दुनिया से श्रद्धालु आते हैं, उसने चढ़ावे में केवल पैक्ड दूध ही चढ़ाने का आग्रह किया हो। बर्तन में इकट्ठा किए जाने वाले दूध के खराब होने का खतरा रहता है, लेकिन पैक्ड दूध को सुरक्षित रखा जा सकता है। जैसे-जैसे श्रद्धालु दूध चढ़ाएंगे उसे फ्रीजर में सुरक्षित रखा जाता रहेगा। यदि देश के सभी मंदिरों में यह पहल कर दी जाए तो उन गरीब बच्चों को भी दूध मिल जाएगा, जिनके लिए दूध सपना होता है। इससे उन श्रद्धालुओं को भी पुण्य मिलेगा जो पुण्यलाभ की कामना में दूध चढ़ाते हैं। हमारे धर्मग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है कि किसी गरीब की मदद से जो पुण्य मिलता है, उससे बढ़कर कोई पुण्य नहीं है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मनसा देवी मंदिर प्रबंधन की यह पहल दूरगामी संदेश देगी और देश भर के मंदिर प्रबंधकों को चाहिए कि वह ऐसी पहल करें। शासन को भी चाहिए कि वह इसके लिए मंदिर प्रबंधकों को प्रोत्साहित करे।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]