दिल्ली नगर निगम के चुनाव नतीजों के जरिये राजधानी की जनता ने यदि कोई संदेश दिया है तो यही कि भाजपा का विजय रथ गति पकड़ता जा रहा और यदि विरोधी दल अपने तौर-तरीके नहीं बदलते तो उनकी दुर्गति होती रहेगी-ठीक वैसे ही जैसे अभी हाल में उत्तर प्रदेश में हुई। नगर निगम चुनावों ने आम आदमी पार्टी के साथ-साथ कांग्र्रेस को भी जो जोरदार झटका दिया उससे इन दोनों दलों के लिए उबरना आसान नहीं होगा। ये इस झटके से तभी उबर पाएंगे जब नकारात्मक राजनीति का परित्याग करेंगे। वे ऐसा करेंगे या नहीं, यह वही जानें, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि नकारात्मक राजनीति के मामले में आम आदमी पार्टी बाकी दलों से आगे निकलने की जिद सी पकड़े है। नई तरह की राजनीति करने और शासन-प्रशासन में नए तौर-तरीकों को अपनाने की उम्मीद जगाने वाली इस पार्टी ने पिछले कुछ समय में बात-बिना बात प्रधानमंत्री को कोसने और यहां तक कि उनके खिलाफ अभद्र भाषा के इस्तेमाल का जैसा काम किया उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है। ऐसा लगता है कि अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों ने यह ठान लिया था कि वे नई हवा के झोंके जैसी अपनी राजनीति को दूषित करके ही मानेंगे। उनका सारा जोर दूसरों और खासकर मोदी के दोष गिनने-गिनाने पर था। वे यह समझने से इन्कार करते रहे कि दिल्ली की जनता ने उन्हें लड़ने-झगड़ने और अपने अलावा शेष सबको गलत साबित करने के लिए नहीं, बल्कि कुछ कर दिखाने के लिए भारी बहुमत से विधानसभा भेजा है।
यह आश्चर्यजनक है कि पंजाब में निराशाजनक प्रदर्शन करने और गोवा में खाली हाथ रहने के बावजूद केजरीवाल ने न तो नकारात्मकता छोड़ी और न ही अहंकार का प्रदर्शन करना। वह यहां तक कह गए कि अगर दिल्ली वालों ने भाजपा को वोट दिया और उनके परिवार के लोगों को डेंगू हुआ तो इसके लिए वही जिम्मेदार होंगे। समझना कठिन था कि वह धमकी दे रहे थे या फिर यह बता रहे थे कि दिल्ली के हित में उनसे किसी काम की उम्मीद न रखी जाए। जनता एक बार को नेताओं की गलतियों को तो माफ कर देती है और उसने केजरीवाल को माफ किया भी था, लेकिन वह उनके अहंकार को बर्दाश्त नहीं करती। शायद दिल्ली की जनता यह भी अच्छे से जान गई थी कि केजरीवाल ईवीएम विरोध की आड़ में उसे बरगलाने में लगे हुए हैं। यह अजीब है कि वह तो भाजपा को जीत की बधाई दे रहे हैं, लेकिन उनके साथी ईवीएम को बदनाम करने में जुटे हैं। यदि आम आदमी पार्टी अपना भला चाहती है तो न केवल अपनी गलती स्वीकार करे, बल्कि उसे सुधारे भी। यही काम कांग्र्रेस को भी करना होगा। दिल्ली में वापसी की उम्मीद कर रही कांग्र्रेस की करारी हार फिर यही रेखांकित कर रही है कि उसका भविष्य अंधकारमय है। लोकसभा चुनाव के बाद से पंजाब को छोड़कर लगातार पराजय का सामना कर रही कांग्र्रेस को यह समझना होगा कि उसकी हार में दोष उसकी रीति-नीति का ही है। विरोधी दलों की ऐसी रीति-नीति से भाजपा को फर्क नहीं पड़ता, लेकिन यह एक संदेश उसके लिए भी है कि हर चुनावी जीत जिम्मेदारी बढ़ाने का काम करती है।

[ मुख्य संपादकीय ]