आयकर विभाग की ओर से 1823 करोड़ रुपये का नया नोटिस भेजे जाने से कांग्रेस का परेशान होना स्वाभाविक है। आयकर विभाग ने कांग्रेस को यह नोटिस वर्ष 2017-18 से लेकर 2020-21 के लिए भेजा है। इसमें जुर्माने के साथ ब्याज की राशि भी शामिल है। कांग्रेस को यह नोटिस एक ऐसे समय भेजा गया है, जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसकी वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने वर्ष 2014 से 2017 के बीच करों के पुनर्मूल्यांकन की मांग की थी।

साफ है कि कांग्रेस एक झटके से उबरी नहीं कि उसे दूसरे झटका लग गया। निःसंदेह जैसे यह सवाल उठता है कि आखिर आयकर विभाग को एक ऐसे समय सक्रियता दिखाने की क्या आवश्यकता थी, जब लोकसभा चुनाव के चलते पक्ष-विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप का दौर पहले से जारी है और इस क्रम में कांग्रेस यह प्रचार कर रही कि मोदी सरकार विपक्ष को परेशान करने के लिए अपनी एजेंसियों का इस्तेमाल करने में लगी हुई है, वैसे ही यह प्रश्न भी खड़ा होता है कि कांग्रेस ने टैक्स संबंधी नियमों का समय रहते पालन करना आवश्यक क्यों नहीं समझा?

कांग्रेस यह आरोप तो लगा रही है कि मोदी सरकार आयकर विभाग का इस्तेमाल कर और उसके खाते फ्रीज कर ठीक उस समय उसे आर्थिक रूप से पंगु कर रही है, जब लोकसभा चुनाव हो रहे हैं, लेकिन उसके पास इसका कोई सीधा जवाब नहीं कि क्या आयकर विभाग ने टैक्स संबंधी जिन विसंगतियों का उल्लेख किया है, वे निराधार हैं?

आखिर यह कहां तक उचित है कि कांग्रेस टैक्स संबंधी नियम-कानूनों का पालन भी न करे और खुद को पीड़ित भी बताए? क्या आयकर के मामले में कांग्रेस नियम-कानूनों से ऊपर है या फिर खुद को किसी विशेष छूट का हकदार मान रही है? जो भी हो, इतना तो है ही कि आयकर विभाग को चुनाव के मौके पर कांग्रेस की टैक्स संबंधी विसंगतियों को लेकर उसके खिलाफ सक्रियता दिखाने से बचना चाहिए था।

यह काम वह चुनाव के पहले और बाद में भी कर सकता था। प्रश्न उसकी कार्रवाई का नहीं, बल्कि समय का है। चूंकि उसने चुनाव के मौके पर अपनी सक्रियता दिखाई, इसलिए कांग्रेस को अपने इस पुराने आरोप को नए सिरे से धार देने का अवसर मिल गया कि मोदी के भारत में लोकतंत्र खतरे में है। आखिर टैक्स संबंधी नियमों की अनदेखी करने वाले किसी दल को आयकर विभाग का नोटिस मिलने से लोकतंत्र की सेहत पर कैसे असर पड़ सकता है?

प्रश्न यह भी है कि राहुल गांधी यह धमकी देकर क्या साबित करना चाहते हैं कि यदि सरकार बदली तो ऐसी कार्रवाई होगी कि दोबारा किसी को यह सब करने की हिम्मत नहीं पड़ेगी? क्या इसका यही अर्थ नहीं कि वह सत्ता में आए तो सरकारी एजेंसियों का वैसा ही इस्तेमाल करेंगे, जैसा करने का आरोप वह मोदी सरकार पर लगा रहे हैं?