यह विडंबना ही है कि केंद्र में रहने वाली सरकारें हमेशा से पंजाब को उतना अधिमान नहीं देतीं, जितना कि इस प्रदेश को मिलना चाहिए। इस बार भी यही होता दिखाई दे रहा है और साल भर में केंद्र की मोदी सरकार ने पंजाब की 30 प्रतिशत मांगें भी नहीं मानी, जबकि मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल मोदी सरकार बनने के बाद पूरा साल बड़ी उम्मीदों के साथ एक मंत्रलय से दूसरे मंत्रलय चक्कर लगाते रहे। यहां तक कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 21 केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात कर डाली, पर नतीजा वही ढाक के तीन पात।

पंजाब की कुछ मांगों पर तो निश्चित रूप से तत्काल संज्ञान लिया जाना चाहिए था, क्योंकि इस प्रदेश ने वर्षो आतंकवाद का संताप ङोला है और करोड़ों रुपये इससे उबरने में बह गए। पंजाब ने आतंकवाद के समय के एक लाख करोड़ रुपये के कर्ज को माफ करने की मांग की थी, पर केंद्र सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इसी प्रकार विशेष औद्योगिक पैकेज, आर्थिक तौर पर कमजोर किसानों के लिए विशेष कर्ज राहत पैकेज, प्रदेश के उभरते खिलाड़ियों के लिए विदेशी कोच, स्वामीनाथन रिपोर्ट के अनुसार गेहूं-धान का एमएसपी तय करने और चंडीगढ़ व पंजाबी भाषी इलाके पंजाब को सौंपने की मांग की थी, जिन पर केंद्र सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया।

पंजाब की मांगों की इस प्रकार की उपेक्षा तब हो रही है जबकि केंद्र में भाजपानीत सरकार है और प्रदेश सरकार में भी भाजपा शामिल है। निश्चित रूप से यह प्रदेश की जनता की उम्मीदों को तोड़ने वाली बात है, क्योंकि केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद सभी को उम्मीद थी कि प्रदेश को इसका लाभ मिलेगा और वर्षो से उपेक्षित पंजाब के दिन भी फिरेंगे। हालांकि अभी भी बहुत देर नहीं हुई है और प्रधानमंत्री मोदी अगले माह श्री आनंदपुर साहिब के स्थापना दिवस समारोह में आने वाले भी हैं। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह अपनी मांगों और जनता की अपेक्षाओं से प्रधानमंत्री को भलीभांति अवगत करवाए। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री भी प्रदेश की मांगों पर सकारात्मक रवैया अपनाएंगे और प्रदेश की हरसंभव मदद करेंगे। अंततोगत्वा इसका लाभ प्रदेश की जनता को ही मिलेगा।

(स्थानीय संपादकीय पंजाब)