हिमाचल पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) की बसें प्रदेश और बाहर के लोगों के लिए आवाजाही का बड़ा जरिया हैं। हर दिन हजारों यात्री निगम की बसों में सफर करते हैं। परिवहन निगम ने आम बसों के साथ-साथ एसी बसें भी चला रखी हैं। कुछ साल पहले की तुलना में अब गंतव्य स्थान तक पहुंचने में लगने वाले समय में थोड़ी कमी आई है। इसका एक कारण सुपरफास्ट और नॉन स्टॉप बस सर्विस का शुरू होना भी है।

बसों को खड़ा करने के समय में कमी की गई है। पठानकोट, होशियारपुर और सोलन-सिरमौर के साथ लगते पड़ोसी राज्यों की कुछ जगहों को छोड़ दें तो बाहरी राज्यों के अधिकतर रूट निगम की बसों के हैं। आठ-दस घंटे के सफर में अधिकतर यात्रियों को बीच में खाना भी होता है। कुछ साल पहले यह देखने को मिलता था कि बसें चालक-परिचालक की मर्जी से खड़ी होती थीं। जहां उन्होंने ब्रेक लगा दी, उसी ढाबे में खाना होता था। इसके पीछे बड़ा कारण उनका अपना फायदा रहता था। यात्रियों को गुणवत्तायुक्त खाना न मिलने और पैसा वसूली की शिकायतें मिलने लगीं तो सरकार जागी। उसके बाद परिवहन निगम ने ढाबों के खाने की गुणवत्ता और शौचालयों की सुविधा को देखते हुए यह तय कर दिया था कि उसके बताए ढाबों पर ही बसें रुका करेंगी। अब ऐसा हो रहा है। पर क्या लोगों को असल में वह सब मिल रहा है, जिसके लिए सरकार ने कसरत की थी?

चालक-परिचालक को अब भी यात्रियों से अलग खाना परोसा जा रहा है। यह हर बस का हाल है। एक वीडियो वायरल हुआ है। यह वीडियो उस ढाबे का है, जिसे एचआरटीसी ने अपनी रिपोर्ट में खरा बताया है। वीडियो वायरल करने वाले व्यक्ति ने उस ढाबे की गुणवत्ता पर सवाल उठाए हैं। जहां खाने की चीजें होंगी, वहां चूहे आएंगे। बात घर की हो या किसी ढाबे की। पर इन चूहों के अलावा कुछ दूसरे तर्क भी हैं।

भराड़ीघाट में ऐसे मंजूरशुदा ढाबे का एक उदाहरण। चालक-परिचालक को अलग से खाना परोसा गया। बड़ी बात यह है कि यह वह खाना नहीं था, जिसे बस यात्रियों को दिया गया था। बात जब पैसे के भुगतान की आई तो परिचालक ने नाममात्र के पैसे दिए। ऐसा ही दिल्ली-चंडीगढ़ की तरफ जाने वाली निगम की बसों में हो रहा है। चालक-परिचालक को सरकार के आदेशों के तहत बस यात्रियों के अच्छे-बुरे का ध्यान रखना चाहिए।

[हिमाचल प्रदेश संपादकीय]