राष्ट्रपति चुनाव का परिणाम वैसा ही रहा जैसा प्रत्याशित था। सत्तापक्ष के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार को आसानी से पीछे छोड़ने में सफल रहे। विपक्ष को इससे भिन्न नतीजे की उम्मीद नहीं रही होगी, लेकिन शायद ही उसने यह सोचा हो कि उसके खेमे के कुछ वोट रामनाथ कोविंद के खाते में चले जाएंगे। आश्चर्यजनक रूप से ऐसा कई राज्यों में हुआ। गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा आदि राज्यों में रामनाथ कोविंद के पक्ष में क्रास वोटिंग होना विपक्ष की कमजोरी को रेखांकित करता है। लगता है अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील का उलटा असर हुआ। भले ही क्रास वोटिंग ने रामनाथ कोविंद के जीत के अंतर को बहुत अधिक न बढ़ाया हो, लेकिन वह विपक्षी दलों और खासकर कांग्र्रेस और तृणमूल कांग्र्रेस के मनोबल पर गहरा असर डालने वाली साबित हो सकती है। यह देखना दयनीय है कि एक समय जिस आंध्र प्रदेश में कांग्र्रेस की तूती बोलती थी वहां से मीरा कुमार को एक भी वोट नहीं मिला। इसी तरह जिस त्रिपुरा में भाजपा का एक भी विधायक नहीं वहां से रामनाथ कोविंद को सात विधायकों के वोट मिले। ये सातों विधायक तृणमूल कांग्र्रेस के माने जा रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने के बाद विपक्ष यह कहकर खुद को दिलासा दे सकता है कि उसे उलटफेर की आशा नहीं थी, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भाजपा के खिलाफ अपनी गोलबंदी को मजबूत दिखाने की उसकी कोशिश नाकाम रही। विपक्ष एक एकजुट होने के बजाय बिखरता दिखा।
हालांकि राष्ट्रपति का पद दलगत राजनीति से परे है, लेकिन यह उल्लेखनीय तो है ही कि भाजपा रामनाथ कोविंद के रूप में पहली बार अपनी विचारधारा वाले व्यक्ति को इस सर्वोच्च पद पर निवार्चित करने में सफल रही। राष्ट्रपति चुनाव में रामनाथ कोविंद की आसान जीत के साथ भाजपा अपने राजनीतिक प्रभुत्व का प्रदर्शन करने के साथ-साथ एक जरूरी सामाजिक संदेश देने में भी सफल रही। दूसरी बार दलित समाज के सदस्य को राष्ट्रपति पद पर आसीन करके भाजपा यह दावा करने में कहीं अधिक सक्षम होगी कि उसे दलित-वंचित समाज की सचमुच परवाह है और इस समाज को उसे खुद के हितैषी के रूप देखना चाहिए। राष्ट्रपति के रूप में रामनाथ कोविंद का निर्वाचन देश की जनता को यह संदेश देने में सहायक बनना चाहिए कि जातिगत भेदभाव के खिलाफ अभी लड़ाई लड़ी जानी शेष है। वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि राष्ट्रपति चुनाव का नतीजा आने के बाद रामनाथ कोविंद के इन शब्दों ने दलित-पिछड़े समाज को प्रोत्साहित करने के साथ प्रेरित भी किया होगा कि उन्हें गरीबी में बिताया गया अपना बचपन अभी भी याद है और वह उनके ही प्रतिनिधि बनकर राष्ट्रपति की कुर्सी पर आसीन होने जा रहे हैं। एक साधारण परिवार के शख्स का देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होना भारतीय लोकतंत्र की महिमा का बखान है। इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता कि राष्ट्रपति के रूप में रामनाथ कोविंद का निर्वाचन उनकी जैसी पृष्ठभूमि वाले करोड़ों लोगों को प्रेरणा प्रदान करने वाला है। इससे भारतीय लोकतंत्र को न केवल और बल मिलेगा, बल्कि उसका यश भी बढ़ेगा।

[ मुख्य संपादकीय ]