दैवीय आपदा की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड में प्रशासनिक अधिकारियों को आपदा प्रबंधन का बुनियादी प्रशिक्षण देने की दिशा में राज्य सरकार जो कदम उठाने जा रही है, वह निश्चित तौर पर बेहद जरूरी व स्वागतयोग्य है। आपदा प्रबंधन सेल को यदि राज्य के प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान का स्थायी अंग बनाया जाता है, तो इससे प्रदेश के अधिकारियों में न सिर्फ प्राकृतिक आपदा को लेकर संवदेनशीलता व गंभीरता का भाव विकसित होगा, बल्कि आपदा से निपटने समेत राहत व बचाव की मुहिम में भी अधिकारी बेहतर ढंग से काम करते हुए गुणात्मक परिणाम दे सकेंगे। दैवीय आपदा की घटनाओं के दौरान राहत-बचाव कार्यों में प्रशासनिक मशीनरी की निर्णय क्षमता व गंभीरता पीडि़तों का जीवन बचाने में बेहद अहम साबित होती है। ऐसे में यदि रेस्क्यू ऑपरेशन में आपदा प्रबंधन का विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले अधिकारियों की सहभागिता होगी, तो नतीजे और बेहतर होंगे। दरअसल, उत्तराखंड भूकंपीय संवेदनशीलता के जोन-चार व पांच में आता है। भूकंप, भूस्खलन, अतिवृष्टि व बाढ़ जैसी घटनाएं प्रदेश में आम हो चुकी हैं। जाहिर है इन बड़े खतरों से निपटने के लिए सरकारी व प्रशासनिक स्तर पर ठोस तैयारी की जरूरत है। राज्य सरकार ने इस दिशा में कई पहल तो की हैं, मगर जरूरत इन कागजी पहल को वास्तव में धरातल पर उतारने की भी है। मसलन, विभिन्न सरकारी महकमों में विकास योजनाओं का खाका तैयार करते वक्त आपदा के संभावित खतरों के ठोस उपायों का ध्यान रखने के लिए भी राज्य सरकार ने 'डिजास्टर रिस्क रिडक्शन के दिशा निर्देश तैयार किए हैं, मगर इन दिशा-निर्देशों का पालन फिलहाल नियोजन की प्रक्रिया में होता नहीं दिख रहा है। नदी-नालों के बाढ़ संभावित इलाके को अतिक्रमण से मुक्त करने के लिए राज्य सरकार ने बाढ़ परिक्षेत्रण अधिनियम बनाया है, मगर धरातल पर इस कानून का पालन होता नहीं दिख रहा है। प्रदेश में शायद ही ऐसी कोई नदी या नाला होगा, जिसके बाढ़ संभावित क्षेत्र में मलिन बस्तियां या अवैध अतिक्रमण न पसरा हुआ हो। पर्वतीय क्षेत्रों में, जहां भूस्खलन व अतिवृष्टि के साथ ही भूकंप से नुकसान की अधिक आशंका रहती है, वहां भवन निर्माण के मानकों को आपदा न्यूनीकरण की कसौटी पर कसना भी बेहद जरूरी है। हिमालयी राज्य में दैवीय आपदा जैसे बड़े खतरे से निपटने के लिए सुरक्षा के इन बुनियादी उपायों को सख्ती से लागू करने पर सरकार को गंभीर रुख अपनाने की जरूरत है। खासतौर पर जून 2013 की आपदा में भीषण त्रासदी झेलने के बाद प्रदेश को यह सबक लेना ही होगा। तभी सुरक्षित व समृद्ध उत्तराखंड की परिकल्पना साकार हो सकेगी।

[स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड]