कालेधन के खिलाफ मुहिम के तहत प्रवर्तन निदेशालय की ओर से चुनिंदा शहरों में तीन सौ से अधिक दिखावटी कंपनियों के यहां छापेमारी यही बताती है कि किस तरह वैध कारोबार करने की आड़ में अवैध काम किए जा रहे हैं। छापेमारी की चपेट में आईं कंपनियों के बारे में संदेह है कि नोटबंदी की घोषणा के बाद उनमें बड़े पैमाने पर कालेधन को खपाया गया। इनमें से कई कंपनियों पर यह भी शक है कि उन्होंने पैसा विदेश भेजा। इस छापेमारी से यह भी पता चल रहा है कि प्रधानमंत्री के बार-बार चेताने के बावजूद किस तरह उद्योग-व्यापार जगत के कुछ लोग कालेधन के कारोबार से बाज नहीं आ रहे हैं। सबसे लज्जाजनक यह है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट जैसे सम्मानित पेशे के लोग इस गोरखधंधे को खाद-पानी दे रहे हैं। जब करीब एक दर्जन शहरों में ही तीन सौ से अधिक दिखावटी कंपनियां कालेधन का कारोबार करती दिखीं तो फिर यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि देश भर में ऐसी कितनी कंपनियां होंगी? पिछले साल संसद में दी गई एक जानकारी के अनुसार आयकर विभाग ने एक हजार से अधिक ऐसी कंपनियों को चिह्नित किया था जिन पर 13 हजार करोड़ रुपये से अधिक कालेधन को सफेद करने का संदेह था। यदि देश का उद्योग-व्यापार जगत अपनी प्रतिष्ठा के लिए तनिक भी चिंतित है तो उसे दिखावटी कंपनियों के जरिये नियम-कानूनों को धता बताकर कालेधन को सफेद बनाने की प्रवृत्ति का परित्याग करना होगा। यह जरूरी है कि उद्योग-व्यापार जगत अपने बीच की काली भेड़ों को अलग-थलग करने के साथ ही उनकी पहचान भी करे, क्योंकि गलत काम कुछ लोग करते हैं और बदनामी के दाग सब पर लगते हैं।
नि:संदेह केवल इतने से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि प्रवर्तन निदेशालय तीन सौ संदिग्ध कंपनियों की छानबीन करने में लगा हुआ है। यह ठीक नहीं कि वैध कारोबार करने के नाम पर कोई भी आसानी से कंपनी खोल ले और फिर उसके जरिये कालेधन को सफेद करने का काम करने लगे। सरकार और उसकी एजेंसियां इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकतीं कि यदि वे डाल-डाल हैं तो कालेधन के कारोबारी पात-पात। वे नियम-कानूनों को ठेंगा दिखाने और सरकारी तंत्र को गुमराह करने में माहिर हो चुके हैं। कई बार कालेधन खपाने का जरिया बनीं कंपनियों के बारे में भनक तब लगती है जब वे बड़े पैमाने पर हेरफेर कर चुकी होती हैं। यह गंभीर बात है कि ऐसी कंपनियां केवल टैक्स चोरी का ही जरिया नहीं हैं। वे आपराधिक तरीके से अर्जित किए गए धन को खपाने का माध्यम भी हैं। एक समस्या यह भी है कि आयकर विभाग से लेकर प्रवर्तन निदेशालय की कार्यप्रणाली कोई बहुत भरोसा नहीं जगाती। आखिर ऐसे कितने मामले हैं जिनमें प्रवर्तन निदेशालय कालाधन खपाने वाली फर्जी कंपनियों के संचालकों को सजा दिलाने में कामयाब रहा? भले ही आयकर विभाग या फिर प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई से जनता को यह संदेश जाता हो कि कालेधन वालों पर शिकंजा कस गया, लेकिन वास्तव में ऐसा मुश्किल से ही होता है। बेहतर हो कि सरकार अपने उन सभी विभागों की कार्यप्रणाली को प्रभावी और साथ ही विश्वसनीय बनाए जिनके जरिये कालेधन के खिलाफ मुहिम जारी है।

[ मुख्य संपादकीय ]