17 दलों वाले वाममोर्चा को नेतृत्व देने वाली माकपा की बंगाल इकाई में इस समय व्यापक फेरबदल की तैयारी चल रही है। अब तक पश्चिम बंगाल में माकपा की कमान विमान बोस, बुद्धदेव भïट्टाचार्य, मदन घोष जैसे बुजुर्ग कामरेडों के हाथों में रही है लेकिन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले माकपा अपने ऊपर लगे बुजुर्गों की पार्टी के टैग को हटाकर युवाओं को आगे लाने की तैयारी कर रही है। ऐसे में बार-बार पार्टी से मुक्ति मांगने वाले वरिष्ठ कामरेड व पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भïट्टाचार्य हो या फिर अन्य नेता, उन सभी को सेवानिवृत्त किया जा सकता है। यानी बुद्धदेव व विमान बोस जैसे नेता युवा नेतृत्व को पार्टी की कमान सौंपकर सक्रिय राजनीति से संन्यास ले सकते हैं। वैसे भी बुद्धदेव भïट्टाचार्य की तबीयत ठीक नहीं रहती है जिसके चलते राज्य के बाहर होने वाली पार्टी की किसी भी बैठक में वह शामिल नहीं होते हैं। यहां तक कि पार्टी कांग्रेस में भी वे शामिल नहीं हुए थे। अब जब कि वाममोर्चा व खासकर माकपा एक बार फिर बंगाल में अपने पुराने तेवर के साथ आंदोलन तेज कर रही है, तो शीर्ष नेतृत्व की मौजूदगी जरूरी मानी जा रही है। ऐसे में बुजुर्ग नेताओं के हाथों से कमान लेकर युवा नेतृत्व के हाथों में देना ही शीर्ष नेतृत्व लाजिमी समझ रहा है। इसकी वजह यह है कि पिछले एक माह में वाममोर्चा ने जो भी आंदोलन किया, वह प्रभावी रहा है। इसके बल पर आंदोलन और तेज करने की रणनीति पर माकपा नेतृत्व आगे बढ़ रहा है। ऐसे वक्त में यदि युवाओं को नेतृत्व क्षमता नहीं दी जाती है तो आगामी विधानसभा चुनाव में स्थिति विकट हो सकती है। वामपंथी दलों के कार्यकर्ता एकजुट हो रहे हैं। विमान बोस व बुद्धदेव सरीखे नेता अब उस स्थिति में नहीं रह गए हैं कि वह आंदोलन का नेतृत्व अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर दे सके। पिछले तीन-चार आंदोलन के दौरान जिस तरह से पुलिस ने लाठीचार्ज व बल प्रयोग किया है, उस स्थिति में बुजुर्ग कामरेडों से काम नहीं चल सकता है। संभवत: इसी बात को ध्यान में रखते हुए अब तक माकपा प्रदेश मुख्यालय अलीमुद्दीन स्ट्रीट का प्रबंधन करने वाले बुजुर्ग नेताओं को पार्टी मुक्ति देकर शीर्ष नेतृत्व नए सिरे से संगठन को मजबूत करने की तैयारी में है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर बंगाल में माकपा की कमान किन युवा नेताओं के हाथों में दी जाएगी? क्योंकि माकपा की जो नीति रही है उसमें पार्टी के शीर्ष पर वही नेता आसीन होते रहे हैं जिनकी उम्र साठ के पार होती थी। ऐसे में इतनी जल्दी बेहतर नेतृत्व देने वाले युवा पार्टी में कहां से आएंगे? इतना जरूर है कि शीर्ष नेतृत्व कुछ सोच कर ही इस दिशा में आगे बढ़ रहा है।

[स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल]