राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गांधी को मारा, अपने इस बयान के लिए अदालती कार्यवाही का सामना कर रहे राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट ने उचित ही फटकार लगाई कि या तो वह माफी मांगें अथवा मुकदमे का सामना करने के लिए तैयार रहें। उन्हें सुप्रीम कोर्ट से ऐसी ही हिदायत इसके पहले भी मिल चुकी है, लेकिन वह अपने रुख पर अड़े हैं। शायद उन्हें किसी ने यह समझा दिया है कि इससे बहादुर नेता के तौर पर उनकी छवि निखरेगी। विचित्र यह है कि एक ओर तो वह अदालती कार्यवाही का सामना करने की बहादुरी दिखा रहे हैं और दूसरी ओर उससे बचने के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की ताजा फटकार के बाद कांग्रेस की ओर से नए सिरे से स्पष्ट किया गया कि राहुल महात्मा गांधी की हत्या के लिए संघ को जिम्मेदार बताए जाने संबंधी अपने बयान पर खेद प्रकट करने के लिए तैयार नहीं। शायद उन्हें ऐसी सलाह इस मकसद से दी गई है कि इससे वह संघ का राजनीतिक रूप से सामना करते हुए दिखेंगे, लेकिन इसे सस्ती राजनीति के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। आम तौर पर इस तरह की राजनीति राजनीतिक दलों का नेतृत्व करने वाले नेता नहीं ही करते। आधे-अधूरे तथ्यों के साथ उकसावे वाले बयान देने वाले नेता हर दल में हैं। ऐसा लगता है कि राहुल गांधी ने दिग्विजय सिंह और मणिशंकर अय्यर सरीखे नेताओं को मात देने की ठानी है। यदि ऐसा कुछ नहीं है तो इसका क्या औचित्य कि वह इसके बावजूद अपने रुख-रवैये में बदलाव के लिए तैयार नहीं कि सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि किसी संगठन को बदनाम करने वाला काम नहीं किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने राहुल को यह सलाह भी दी थी कि इस मामले को शालीनता के साथ सुलझाया जाना हितकर होगा। चूंकि उन्हें सुप्रीम कोर्ट की यह सलाह रास नहीं आई इसलिए इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा और कोई राह नहीं कि वह जानबूझकर शालीन राजनीति का परित्याग करना चाह रहे हैं। यह सही है कि एक समय नाथूराम गोडसे संघ का कार्यकर्ता था, लेकिन इसके आधार पर इस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता कि गोडसे की हरकत के लिए संघ जिम्मेदार था। हर संगठन में कुछ न कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो गैर कानूनी गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं। ऐसे तत्व राजनीतिक दलों में भी होते हैं और राहुल गांधी अथवा अन्य कोई कांग्रेस नेता इससे इन्कार नहीं कर सकता कि ऐसे तत्व कांग्रेस में भी रहे हैं। कांग्रेस के एक नेता ने तो हवाई जहाज का अपहरण तक किया था। अब क्या इसके जरिये कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करना उचित होगा? अच्छा हो कि राहुल गांधी के सलाहकार उन्हें यह भी बताएं कि यदि जवाहर लाल नेहरू ने संघ पर प्रतिबंध लगाया था तो कुछ समय बाद उसके लोगों को गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने की अनुमति भी दी थी। क्या राहुल गांधी यह कहना चाहते हैं कि नेहरू ने ऐसा करके गलती की थी? राहुल गांधी का संघ से वैचारिक मतभेद हो सकता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वह उसे बदनाम करें। राहुल गांधी का रुख-रवैया उन्हें चर्चा में ला सकता है और हो सकता है कि उनके इस रवैये के चलते कांग्रेस को कुछ राजनीतिक लाभ भी मिल जाए, लेकिन इससे कुल मिलाकर राहुल गांधी की अपनी छवि पर बुरा असर पड़ेगा।

[ मुख्य संपादकीय ]