-----अब जबकि अफसरशाही को वास्तव में कुछ कर गुजरने का मौका मिला है, तो उसे भी अकर्मण्यता का गर्द-गुबार झाड़ कर उठ खड़ा होना चाहिए। -----पिछले कुछ दिनों में प्रदेश में मंत्रियों ने पद संभालते ही अपने-अपने विभागों में छापेमारी अभियान चलाया। तमाम कार्यालयों में कर्मचारी से लेकर अधिकारी तक नदारद मिले। लेटलतीफ पहुंचने वालों की संख्या भी कम न थी। कार्यालयों में फाइलों के रख-रखाव की स्थिति दयनीय मिली। जगह-जगह गंदगी का अंबार भी दिखा। सोमवार को कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने कृषि विभाग में छापा मारकर गेट में ताला लगवा दिया। छापे में मंत्री को गंदगी भी दिखी। यह स्थिति तब थी जब इन अधिकारियों और कर्मचारियों ने स्वच्छता का संकल्प प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पद संभालने के साथ ही ले लिया था।मुख्यमंत्री ने शासन में बैठे बड़े अफसरों की जवाबदेही तय करते हुए कहा है कि योजनाओं की जमीनी हकीकत जानने को वे लोग गांवों का दौरा करें। इतना ही नहीं खुद भी मंत्रियों के साथ योजनाओं का निरीक्षण करेंगे। इन सब बातों को देखते हुए लग रहा है कि प्रदेश में पांच साल नौकरशाहों के दिन बहुत कठिन गुजरने वाले हैं। क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाव-भाव में तेजी और दृढ़ व ताबड़तोड़ फैसलों से उन्हें अब तक रेंगती चल रही व्यवस्था को न केवल सरपट दौड़ाने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है, बल्कि मुख्यमंत्री से कदमताल मिलाने में भी उनके पसीने छूट रहे हैं। इसमें नौकरशाहों की भी कोई गलती नहीं दिखती। दरअसल भारतीय नौकरशाही की कुछ मजबूरी है। सरदार वल्लभ भाई पटेल भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) को भारत सरकार की मशीनरी का स्टील फ्रेम कहते थे लेकिन, स्वार्थपरक राजनीतिक व्यवस्था और सत्ता द्वारा सरकारी मशीनरी को टूल की तरह इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति ने हालात में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया। कामकाज की धुरी समझे जाने वाली ब्यूरोक्रेसी मजबूर होती गई। मशीनरी का स्टील फ्रेम बनने की बजाय राजनीतिक व्यवस्था उनके लिए स्टील का पिंजरा बन गई। इस निराशाजनक माहौल में अफसरशाही भी बेफिक्र, लापरवाह, आरामतलब, असंवेदनशील, शाहखर्च और सत्ता की पिछलग्गू होने से खुद को नहीं बचा सकी। नतीजतन अब उस पर अकर्मण्यता का ठप्पा लग चुका है लेकिन, अब जबकि अफसरशाही को वास्तव में कुछ कर गुजरने का मौका मिला है, तो उसे भी अकर्मण्यता का गर्द-गुबार झाड़ कर उठ खड़ा होना चाहिए। फिलहाल अपनी क्षमता प्रदर्शन की चुनौती नौकरशाही के सामने है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]