चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पूरे होने के मौके पर विभिन्न आयोजनों के पीछे का उद्देश्य हमें समझना होगा। इसे महज शताब्दी वर्ष मान लेने से आयोजनों की 'आत्मा' कुंठित होगी। आने वाला वक्त भी हमारी भावी पीढ़ी पर नाज न कर सकेगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि यदि दस फीसद युवा भी गांधी के विचारों को आत्मसात कर लेते हैं तो समाज में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। गौर करें तो इन आयोजनों की आत्मा इसी विचार में रची बसी है। इन आयोजनों से शासन की नीयत भी साफ होती है। दूरदर्शिता झलकती है। शासन के स्तर पर ऐसा प्रयास कम ही देखने को मिलता है। सिर्फ सामाजिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में गांधी के विचारों की प्रासंगिकता और उसे कार्य व्यवहार में लाने के रास्ते की तलाश की जा रही है। राज्य सरकार ने गांधी के विचारों को हर चौखठ तक पहुंचाने का संकल्प लिया है। इसके रास्ते भी तय किए गए हैं। वास्तव में यह बड़ा टास्क है, लेकिन इसके सकारात्मक प्रभाव की कल्पना की जा सकती है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि हम सिर्फ विकास की नहीं, बल्कि न्याय के साथ विकास की बात करते हैं। उन्होंने माना कि गांधी जी के विचार ही उनके मार्गदर्शक सिद्धांत रहे हैं। राज्य में शराबबंदी के बाद अब नशा मुक्ति का अभियान चलाया जा रहा है। दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी शासन ने कमर कसी है। इन लक्ष्यों में वाकई गांधी के विचारों का दर्शन होता है। यह सच है कि समाज में नशाखोरी और दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों का आसानी से उन्मूलन संभव नहीं, लेकिन समाज के जागरूक लोग संघर्ष करें तो असंभव भी नहीं। बापू का चंपारण सत्याग्रह हमें इसी संघर्ष की सीख देता है। चंपारण सत्याग्रह में संघर्ष के साथ-साथ सादगी, साफ-सफाई और रोजगारपरक शिक्षा के संदेश भी रचे बसे हैं। इनसे मानव का जीवन सरल बनता है। वर्तमान समाज हर प्रकार की हिंसा से ग्र्रस्त है। जमाखोरी चरम पर है। मितव्ययिता का घोर अभाव है। सुख सुविधाओं के आग्र्रही बगैर समाज की परवाह किए अपने काम को अंजाम दे रहे हैं। गांधी की हिंसा और सत्य के रास्ते का अनुसरण मात्र से कल्पना की जा सकती है कि समाज किस ऊंचाई को छू लेगा। विचारकों का मानना है कि गांधी के विचारों पर चलकर नव उपनिवेशवाद से मुकाबला किया जा सकता है। आने वाली पीढ़ी को ध्यान में रखकर मुकाबला जरूरी है।
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हाईलाइटर
गांधी के विचारों की प्रासंगिकता को मानव समाज वैश्विक स्तर पर महसूस करता रहा है। हालांकि कुछ ही हैं जो इन विचारों को जीने की कोशिश करते हैं। अपने कार्य व्यवहार में ढालते हैं। बापू के विचारों के रास्ते अब नव उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष जरूरी हो गया है।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]