चिटफंड कंपनी सारधा समूह के हजारों करोड़ रुपये के घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की पड़ताल से जो सनसनीखेज तथ्य उजागर हुए हैं उससे तृणमूल कांग्रेस की किरकिरी हुई है। ईडी को घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं के शामिल होने के सुराग मिले हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसके लिए सीधे वित्त मंत्री पी चिदंबरम पर हमला बोला और मतदान प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद ईडी की सक्रियता पर सवाल उठाया है। उसके बाद राज्य के वित्तमंत्री अमित मित्रा और तृणमूल कांग्रेस के महासचिव मुकुल राय ने भी ईडी की जांच को राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित बताया। अब आईटी मंत्री व तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के साथ चिटफंड मुद्दे पर पार्टी के बचाव में आगे आए हैं। उनका कहना है कि वाममोर्चा के शासन में चिटफंड कंपनियों में हजारों करोड़ रुपये का घोटाला हुआ लेकिन उसे दबा दिया गया। चटर्जी ने वामो के समय चिटफंड घोटाले पर पूर्व वामपंथी अर्थ मंत्री अशोक मित्रा की पुष्टि का हवाला देते हुए कहा है कि वामो सरकार के समय राज्य में ओवरलैंड और संचयिता के घोटाले में माकपा ने कोई कदम नहीं उठाया। जबकि पूर्व वित्त मंत्री अशोक मित्रा ने स्वीकार किया है कि संचयिता के 4000-5000 करोड़ रुपये का कुछ पता नहीं चल सका। चटर्जी का दावा है कि चिटफंड कंपनियों की शुरूआत वाममोर्चा के शासन में हुई। वाममोर्चा के लंबे शासन में राज्य में चिटफंड कंपनियां कुकुरमुत्ते की तरह फैलीं। वर्ष 2001-2002 में राज्य में 17 चिट फंड कंपनियां सक्रिय थी जिसमें आम जनता का 20 करोड़ रुपया फंसा था। देखते-देखते 2010-2011 में राज्य में चिटफंड कंपनियों की संख्या एक हजार 249 तक पहुंच गई, जिसमें आम जनता के 55 हजार करोड़ रुपये फंसे। गरीब जनता का पैसा दिलाने के लिए वाममोर्चा सरकार ने कुछ नहीं किया जबकि तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व की सरकार ने सारधा समूह के कर्णधार सुदीप्त सेन को गिरफ्तार किया। न्यायिक जांच आयोग गठित किया गया और जमाकर्ताओं का पैसा लौटाने की प्रक्रिया शुरू की गयी है। चटर्जी के इस दावे में दम हो सकता है लेकिन सारधा समूह से तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेता प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद कुणाल घोष सारधा समूह के मीडिया विभाग के सीईओ थे। घोटाला प्रकाश में आने के बाद कुणाल की गिरफ्तारी हुई लेकिन इससे चिटफंड घोटाला में तृणमूल पर लगा धब्बा मिट नहीं जाता है। वामो सरकार में चिटफंड कंपनियां शुरू हुई तो इसका मतलब यह नहीं है कि तृणमूल कांग्रेस अपने शासन में उसे जनता का पैसा लूटने की छूट दे। वामो सरकार में कोई गलत परंपरा की शुरूआत हुई तो सत्ता में आने के बाद तृणमूल कांग्रेस को उस पर तत्काल रोक लगा देनी चाहिए थी।

[स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल]