यदि सरकारी स्कूलों का स्तर भी निजी स्कूलों के समान कर दिया जाए तो निश्चित रूप से कोई अभिभावक निजी स्कूलों की मनमानी सहने को विवश नहीं होगा।

हर साल की तरह इस साल भी शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही निजी स्कूलों की मनमानी भी आरंभ हो गई है। सरकार, अदालत, मानव संसाधन मंत्रालय और सीबीएसई के आदेश और नियमों को ताक पर रखकर निजी स्कूल री-एडमिशन फीस व अन्य फंडों के नाम पर अभिभावकों को निचोड़ रहे हैं। इसे लेकर हर साल की तरह इस साल भी पंजाब के लगभग सभी जिलों में प्रदर्शन हो रहे हैं। मंगलवार को जालंधर कैंट से कांग्रेस विधायक परगट सिंह के घर के बाहर भी एक छात्रा ने धरना दिया। जो हालात हैं उनसे तो ऐसा प्रतीत होता है कि निजी शिक्षण संस्थानों का एकमात्र लक्ष्य पैसा बनाना ही है। स्टेशनरी से लेकर वर्दी और किताबों के नाम पर लूट आसानी से देखी जा सकती है। ऐसा तब हो रहा है जबकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने निजी स्कूलों को नए सत्र में एनसीईआरटी की पुस्तकें लगाने की बात कही थी। इसके विपरीत निजी स्कूल अपनी मनमर्जी से निजी प्रकाशकों की बेहद महंगी किताबें ही बच्चों को थमा रहे हैं। हर साल इसके खिलाफ आवाज उठती है, लेकिन कोई हल सामने आता हुआ दिखाई नहीं देता है। प्रदेश सरकार ने निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए जिला स्तर की रेगुलेटरी कमेटियां बनाई थीं, लेकिन इन्हें किसी तरह का अधिकार नहीं दिया गया था, फलस्वरूप नख-दंत विहीन ये कमेटियां भी मनमानी रोकने में विफल रहीं। अब हालत यह है कि इससे जहां अभिभावकों पर अनावश्यक व अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है, वहीं सभी को शिक्षा का अधिकार कानून भी प्रभावित हो रहा है। आदेश के बावजूद निजी स्कूलों में उचित संख्या में गरीब बच्चों को दाखिला नहीं मिल पाता। सरकार को इसके खिलाफ कड़ा कदम उठाना चाहिए और ऐसी कमेटी का गठन करना चाहिए, जिसके पास कार्रवाई करने का पूरा अधिकार हो। इसके अतिरिक्त सरकारी स्कूलों की स्थिति में आमूलचूल सुधार के लिए भी ठोस प्रयास करने होंगे ताकि सरकारी स्कूलों में भी निजी स्कूलों की तरह ही सुविधाएं व शिक्षा मिल सके। यदि ऐसा होता है तो कोई अभिभावक निजी स्कूलों की मनमानी सहने को विवश नहीं होगा। साथ ही निजी स्कूलों को भी चाहिए कि वे महज पैसों के पीछे न भागें अपितु अपना नैतिक दायित्व भी समझें और जो भी नियम व कानून उनके लिए बनाए गए हैं उनका पालन सुनिश्चित करें।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]