बिहार राज्य कर्मचारी चयन आयोग (बीएसएससी) में एएनएम की भर्ती में अपने लोगों की पैरवी करने वाले नेता अपनी सफाई में यह कह रहे हैं कि वे सामाजिक जीवन में हैं तो सिफारिश करनी ही पड़ेगी। नेताओं के पास लोग पैरवी के लिए आते ही हैं और पैरवी करना सामान्य बात है। किसी मामले का भंडाफोड़ होने पर नेताओं का ऐसी दलीलें देना पुरानी परंपरा जैसा है। अपराधियों के साथ दिखने पर भी ऐसी दलील दी जाती है। हालांकि उनकी यह सफाई कतई अनैतिक है। किसी के इलाज के लिए या किसी गरीब बच्चे को किताब दिलाने के लिए पैरवी करना तो अच्छी बात है। पैरवी उस मामले में भी उचित है, जहां किसी को नुकसान नहीं हो रहा हो। परंतु, किसी बड़े आदमी, मंत्री, विधायक, पूर्व केंद्रीय मंत्री का 'कैंडिडेट' होने के नाते नौकरी में प्राथमिकता पाना बेहद अनुचित है। फिर उन लोगों ने क्या गलती की थी, जो किसी नेता को नहीं जानते थे, किसी मंत्री के पास नहीं पहुंच सकते थे। एएनएम की भर्ती में जिस पैरवी को लेकर मंत्री और विधायक चर्चा में हैं, वह सिर्फ नौकरी की थी। नर्सिंग की पढ़ाई करने के बाद हजारों महिलाओं ने एएनएम बनने के लिए परीक्षा दी थी। साक्षात्कार हुआ, सभी जरूरतमंद थीं। किसी खास कैंडिटेट की पैरवी यहां अनैतिक थी। आप सामाजिक जीवन में हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि किसी को फायदा पहुंचाने के लिए किसी योग्य व्यक्ति के अधिकार को छीनने की कोशिश की जाए।
दरअसल, हमारी सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था ही ऐसी है कि प्रभावशाली व्यक्ति की बात सुनी जाती है। बीएसएससी में नौकरियां फाइनल करने के अधिकार रखने वाले अधिकारी भी सरकार और समाज के हिस्सा हैं। जाहिर है उनके पास किसी मंत्री या विधायक का फोन या मैसेज आएगा, तो वे उसे तवज्जो देंगे ही। बिहार राज्य कर्मचारी चयन आयोग के माध्यम से एएनएम की भर्ती में कैसी धांधली हुई, किन लोगों को उपकृत किया गया, किनकी पैरवी सुनी गई, यह अभी जांच की जद में है। पुलिस इस संबंध में अपना काम कर रही, लेकिन सामाजिक जीवन में नैतिकता के सवाल पर बहस जरूरी है। नेताओं और मंत्रियों को ऐसी पैरवी से बचना चाहिए। जन सरोकार का मतलब यह नहीं होता कि अनैतिक तरीके से किसी की मदद की जाए।
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(फ्लैश)
योग्यता के आधार पर नौकरी मिलनी चाहिए। जरूरतमंद और पिछड़े लोगों के लिए संविधान ने आरक्षण की व्यवस्था की है। इसके बावजूद मंत्री और विधायक अगर नौकरी दिलाने में पैरवी कर 'कोटा' तय करने लगें, तो यह अनुचित ही माना जाएगा।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]